युवाओं की नाराजगी मोदी को महंगी पड़ेगी

Wednesday, Apr 04, 2018 - 04:40 AM (IST)

युवा क्रांति के, परिवर्तन के प्रतीक होते हैं, युवा खुशफहमियों को तोडऩे वाले होते हैं, सत्ता की ईंट से ईंट बजाने की शक्ति रखते हैं। शहीद भगत सिंह, खुदी राम बोस, तांत्या टोपे जैसे युवाओं ने अंग्रेजी शासन और गुलामी के प्रतीक अंग्रेजों के अहंकार और क्रूरता पर कील ठोंकी थी। सिर्फ  इतना ही नहीं बल्कि गुलामी के खिलाफ युवाओं की फौज खड़ी की थी। आजाद भारत में भी कई उदाहरण हैं जिनमें युवाओं ने सत्ता को धूल चटाई है। जयप्रकाश नारायण आंदोलन के कर्णधार युवा ही थे। पहले यह बिहार आंदोलन के नाम से जाना जाता था। 

जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में युवाओं का आंदोलन बिहार से निकल कर देशव्यापी हुआ था। इंदिरा गांधी को आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी थी, युवाओं के तेज से इंदिरा गांधी 1977 में सत्ता से बाहर हो गई थीं। यू.पी.ए.-2 की सरकार को सत्ता से बाहर करने में युवाओं की बड़ी भूमिका थी। अन्ना ने लोकपाल आंदोलन के माध्यम से युवाओं को भ्रष्टाचार और कदाचार तथा राजनीतिक सुधारों के लिए ललकारा था। खुद वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यू.पी.ए.-2 की सरकार को हराने के लिए युवाओं पर दाव लगाया था जिन्होंने कांग्रेस के भ्रष्टाचार, वंशवाद और तुष्टीकरण नीति के खिलाफ  प्रहारक और संहारक की भूमिका निभाई थी। 

कांग्रेस को युवाओं की नाराजगी भारी पड़ी थी। युवाओं को जोडऩे और उन्हें आकॢषत करने में कांग्रेस आज भी असफल है। भारतीय राजनीति में युवाओं की भूमिका सर्वश्रेष्ठ होती है, इसलिए युवाओं की नाराजगी और उनसे रार लेना कोई राजनीतिक पार्टी नहीं चाहती। पर कभी-कभी अराजक और अहंकारी सत्ता युवाओं की नाराजगी मोल ले लेती है। भूल या फिर निष्क्रियतावश युवाओं से रार ले ही लेती है। युवा वर्ग एक बार फिर आंदोलित है, एक बार फिर सत्ता से टकराने के लिए सक्रिय है। यह चिंतनीय विषय है कि नरेन्द्र मोदी की केंन्द्रीय सत्ता के खिलाफ  युवा क्यों आंदोलित हैं, क्यों धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं? जो युवा नरेन्द्र मोदी को आईकॉन मानता था, वही युवा अब मोदी को अपने भविष्य का संहारक क्यों मानने लगा है? 

नरेन्द्र मोदी के लिए यह एक गंभीर प्रश्न है पर दुखद यह है कि इस प्रश्न की भयावहता और नुक्सान बारे अभी नरेन्द्र मोदी को मालूम नहीं है। नरेन्द्र मोदी का यह अहंकार उसी तरह का है जिस तरह का अहंकार सोनिया और मनमोहन को सत्ता के दौरान था। उनकी सत्ता के दौरान युवाओं का आक्रोश और आंदोलन धीरे-धीरे बढ़ रहा था तथा कांग्रेस के हित के खिलाफ खतरनाक हो रहा था, पर कांग्रेस और उनकी तत्कालीन सत्ता हाथ पर हाथ धरे बैठी थी। उसी प्रकार से नरेन्द्र मोदी भी उदासीन हैं। युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे हैं, जो थे भी, वे भी आर्थिक मंदी, नोटबंदी और जी.एस.टी. की जटिलता में कम हो गए। रोजगार के क्षेत्र में नए अवसर कम हुए हैं, सरकारी नौकरियां पहले से ही न के बराबर हो गई हैं और निजी क्षेत्र में भी रोजगार सृजन के अवसर बन नहीं पा रहे हैं। 

नरेन्द्र मोदी ने स्किल्ड इंडिया योजना में हुंकार भरी थी कि इस योजना से देश के करोड़ों युवाओं को रोजगार मिलेगा, उन्हें अपना व्यापार खड़ा करने में बड़ी सहायता मिलेगी। मोदी की इस योजना ने आशा तो जगाई थी, पर विश्वास कायम नहीं हो पाया। वैसे इस योजना को सफल बनाने के लिए नरेन्द्र मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, पर नौकरशाही के जाल के कारण जमीनी स्तर पर यह योजना पहुंचने में असफल हो गई, इसलिए इस योजना के तहत भी युवाओं को रोजगार नहीं मिल सके। कम से कम दो अवसर ऐसे आए हैं जिनमें युवाओं का आक्रोश स्पष्ट तौर पर प्रकट हुआ है। देश की राजधानी में हजारों युवाओं ने प्रधानमंत्री आवास जाने के लिए मार्च किया और सरेआम नरेन्द्र मोदी पर युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। युवा कई दिनों तक दिल्ली में प्रदर्शन कर डटे रहे। 

सी.बी.आई. जांच के आश्वासन के बाद युवाओं ने धरना-प्रदर्शन करना बंद कर दिया पर उनकी नाराजगी समाप्त नहीं हुई है। पहला अवसर एस.एस.सी. के प्रश्न पत्र लीक होने का है। युवाओं का आरोप है कि एस.एस.सी. के प्रवेश परीक्षा पत्र लीक हो जाते हैं, जिसके कारण गरीब और अध्ययनशील युवाओं को सरकारी नौकरियों में अवसर नहीं मिलता है। यह सही है कि कई सरकारी नौकरियां देने वाली परीक्षाओं के प्रश्न पत्र पहले ही लीक हो जाते हैं। युवाओं की मांग रही है कि केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग को दुरुस्त करके युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए। युवाओं के आक्रोश को देखते हुए खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह को कूदना पड़ा था। उन्होंने एस.सी.एस. परीक्षा के लीक प्रश्न-पत्र के खिलाफ सी.बी.आई. जांच कराने की घोषणा की थी। फिर भी केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग के खिलाफ  छात्रों और युवाओं की नाराजगी कम नहीं हुई है। 

दूसरा अवसर सी.बी.एस.ई. के पेपर लीक होने का है। यह कांड लोमहर्षक है और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब छात्रों को फिर से तैयारी करनी होगी, उनके होश उड़े हुए हैं। सी.बी.एस.ई. के परीक्षा प्रश्नपत्र लीक कांड के तार न सिर्फ दिल्ली बल्कि हरियाणा, बिहार और झारखंड से भी जुड़े हुए हैं। इस कांड पर मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना था कि सी.बी.एस.ई. के परीक्षा प्रश्न लीक होने से उनकी रात की नींद हराम हो गई है। प्रकाश जावड़ेकर का कथन यह साबित करता है कि प्रसंग कितना भयानक और नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए संहारक है। नरेन्द्र मोदी सरकार भी पुराने ढर्रे पर चल रही है। भ्रष्टाचार और कदाचार पर लीपापोती का खेल जारी है। कांग्रेस सरकार के दौरान असली और जिम्मेदार अधिकारी दंडित होने की जगह पुरस्कार ग्रहण कर लेते थे, पर मोदी की सरकार में भी असली गुनहगारों की गर्दन नापी नहीं जा रही है। सी.बी.एस.ई. के परीक्षा प्रश्न पत्र लीक कांड को ही उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। इस कांड के लिए सी.बी.एस.ई. के अध्यक्ष और अन्य बड़े अधिकारियों की गर्दन नापी जानी चाहिए थी। 

अगर जिम्मेदार और बड़े अधिकारी चाक-चौबंद होते तो प्रश्नपत्र लीक होते ही नहीं। अब छोटे अधिकारियों को दंडित कर इस लोमहर्षक कांड पर पर्दा डाला जा रहा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे सिर्फ सी.बी.एस.ई. की परीक्षा देने वाले छात्र ही प्रभावित नहीं हो रहे हैं बल्कि उनके परिजन भी प्रभावित हो रहे हैं। नरेन्द्र मोदी युवाओं की नाराजगी और आक्रोश को कम करने की राजनीतिक प्रक्रिया चलाने में भी असफल रहे हैं। नरेन्द्र मोदी का अहंकार टूटना जरूरी है। अगर उनका अहंकार नहीं टूटा और युवाओं का आक्रोश इसी तरह बढ़ता रहा, एस.एस.सी. और सी.बी.एस.ई. जैसे कांड होते रहे तो फिर मोदी सरकार का पतन भी निश्चित है।-विष्णु गुप्त

Pardeep

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