गठबंधन की दरारों के बीच मोदी अभी भी श्रेष्ठ

punjabkesari.in Monday, Aug 14, 2023 - 05:35 AM (IST)

संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस विपक्ष का प्लान-बी था। चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में 3 महीने तक चली ङ्क्षहसा पर बयान देने से इंकार कर दिया था इसलिए विपक्ष ने एक बहस को एक फ्रेम के रूप में स्थापित किया, जिसके भीतर वह मणिपुर मामले में मोदी को घेर सकता था। मणिपुर एक शतरंज के खेल की तरह होगा जिसके दोनों ओर से खिलाड़ी अपनी-अपनी चालें चलेंगे। रणनीति ने मोदी को विपक्ष को चिढ़ाने और ताना मारने का मौका दिया। अपने 120 मिनट के भाषण में से 90 मिनट तक मणिपुर का जिक्र तक नहीं किया। केवल जब हताश विपक्ष वॉकआऊट कर गया और प्रधानमंत्री ने देखा कि आखिरी कुछ विपक्षी सदस्य नाराज हैं तो उन्होंने तेजी से मणिपुर का रुख किया। 

यह एक शरारत की तरह था। ऐसे लगा जैसे मोदी ने कहा हो, ‘‘मैं तुम्हें मणिपुर पर अपनी आवाज से भूखा मार दूंगा जब मैं आपकी पीठ देखूंगा तभी मैं सदन को उत्तर-पूर्व के बारे में अपनी राय बताऊंगा।’’ अपने भाषण के उत्तराद्र्ध में पहले की तरह उन्होंने बारी-बारी से कांग्रेस और विपक्षी दलों के नए गठबंधन के नाम ‘इंडिया’ पर हमला बोला। उन्होंने ‘इंडिया’ पर अपने विचार पर खूब हंसी उड़ाई। उन्होंने सुझाव दिया कि ‘इंडिया’ अहंकार का प्रतीक है। 

दूसरी बात पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में कही। मोदी के अनुसार 5 मार्च 1966 को इंदिरा गांधी ने मणिपुर पर हवाई बमबारी का आदेश दिया। उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को भी नहीं बख्शा। नेहरू को किस बात के लिए दोषी ठहराया जाए? खैर, 1962 में चीन के साथ पराजय के दौरान एक रेडियो प्रसारण में पं. नेहरू ने कहा था कि उनका दिल असम के लोगों के प्रति है। उत्तर-पूर्व के बारे में एक शब्द भी नहीं। जब मोदी के पास कांग्रेस के कुकर्मों की एक लम्बी सूची थी तो उन्होंने उन्हें एक-एक करके बाहर निकालना शुरू किया। इसके बाद जो कुछ हुआ वह इस तरह है : 

मोदी : मणिपुर पर हवाई हमले का आदेश किसने दिया? 
टैरेजरी बैंच ने एक सुर में कहा : कांग्रेस! 


मोदी ने सिलसिलेवार ऐसा किया। उनके सांसदों ने संकेत ऐसे समझे जैसे वे वर्षों से इसका अभ्यास कर रहे थे। मुझे संदेह है कि क्या लोकसभा ने कभी ऐसी सर्कस देखी होगी? यह प्रदर्शन क्या केवल टी.वी. कैमरों के लिए था? विपक्ष अब तक वॉकआऊट कर चुका था। अपने झुंड पर मोदी का नियंत्रण अद्भुत है। इस ब्रिगेड के समक्ष एकदम सही कदम पर नवोदित ‘इंडिया’ था। गठबंधन की दरारों के बीच मोदी अभी भी श्रेष्ठ हैं। मोदी ने लगभग यह बता दिया कि वह नए गठबंधन को बाधित करने की पूरी कोशिश करेंगे। ‘इंडिया’ को अस्थिर रखने की एक सरल चाल 2024 के आम चुनावों को मोदी बनाम राहुल मुकाबले के रूप में पेश करना है। इस अनुमान से सहयोगी दल पूरी तरह डर जाएंगे और कुछ तो उछल भी सकते हैं। कार्रवाई के इस चरण में उठाया जाने वाला एक विघटनकारी मुद्दा है। यही कारण है कि यह मोदी की चुनाव मशीनरी के लिए उपयुक्त है जिसका मीडिया के एक बड़े वर्ग ने हिस्सा बनने के लिए चुना है ताकि 2024 के चुनावी कुरुक्षेत्र में मोदी और राहुल गांधी को प्रमुख लड़ाकू के रूप में खेला जा सके। 

फिर भी अधीर लोगों का एक समूह बना है। वे पूछते हैं कि राहुल गांधी ने जो नई छवि हासिल कर ली है वह कौन-सी है? खैर, भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद राहुल गांधी की छवि को काफी बढ़ावा मिला। साथ ही पार्टी अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे और एक टीम के रूप में राहुल गांधी का सुचारू कामकाज प्रशंसनीय है। राम मनोहर लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के वंशज अब नए गठबंधन में हैं। मोदी ने उन्हें लोहिया की नेहरू की तीखी आलोचना की याद दिलाई जिसमें नेहरू की उत्तर-पूर्व की उपेक्षा करना भी शामिल थी। यह गठबंधन पर हमलों का एक अंदाजामात्रा है जो चुनाव प्रचार तेज होने के साथ-साथ और तेज होता जाएगा। कई मायनों में बहस पर मोदी की प्रतिक्रिया उनका 2024 का पहला चुनावी भाषण था। अभियान का नारा दिन के उजाले की तरह स्पष्ट था : मुझे तीसरा कार्यकाल दीजिए और मैं गारंटी देता हूं कि ‘हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे’। 

‘इंडिया’ इससे पहले कि यह एक स्थिर मोर्चे में परिवर्तित हो जाए इसे कई मुश्किलों से गुजरना होगा। इसकी प्रगति में एक व्यक्ति बाधा डाल सकता है। वह है टी.आर.एस. (अब भारत राष्ट्र समिति)। राजनीतिक पंडितों के समीकरण ने कांग्रेस को रेस में तीसरे नंबर पर रखा था। असली खींचतान बी.आर.एस. और भाजपा के बीच थी। हाल ही में सट्टेबाज अपना दांव बदल रहे हैं। निकटतम मुकाबला बी.आर.एस. और कांग्रेस के बीच हो सकता है। यह तलवारें एक ही म्यान में कैसे रहेंगी? ‘इंडिया’ को घेरने वाले पूरे क्षेत्र में विरोधाभास बिखेरे हुए हैं। 

3 दिवसीय बहस में राहुल गांधी ने दूसरे दिन उपस्थित होने का विकल्प क्यों चुना जबकि बड़ी संख्या में टी.वी. देखने वालों को उनसे इसकी उम्मीद नहीं थी? पहले दिन काफी उम्मीदें थीं, यह मानते हुए कि पार्टी के पास एक मीडिया टीम थी। दूसरे दिन अपना स्थान बदल कर राहुल गांधी, कांग्रेस और ‘इंडिया’ ने सैंकड़ों, हजारों दर्शकों को खो दिया। उनके प्रदर्शन के बारे में दो व्यापक प्रश्र पूछे जा रहे हैं। क्या उनमें एक ऐसे राजनेता के गुण हैं जो अपने तथ्यों को पेश करता है और संसद जैसे मंच पर अपनी प्रस्तुति की वास्तुकला विकसित करता है? दूसरी बात यह है कि क्या राहुल अपने कुछ हद तक बचकाने व्यवहार से आगे निकल गए हैं? 

आइए इसका सामना करें, काफी संक्षिप्त के साथ वह तीखे सवालों से मोदी को घेरने में सक्षम थे। आप न तो मणिपुर गए और न ही उस राज्य पर क्यों बोले जो तीन महीने से जल रहा है? आप अपने हाथ में माचिस लेकर उस मिट्टी के तेल (साम्प्रदायिकता) का पीछा क्यों कर रहे हैं? जो आपने पूरे देश में छिड़का है। बेशक मोदी ने कुछ नहीं कहा। अफसोस की बात है कि विपक्षी खेमे या सत्ता पक्ष में ऐसा कोई नहीं था जो राहुल गांधी और उनके साथियों से पूछ सके कि, ‘आपने हरियाणा का दौरा क्यों नहीं किया जो 31 जुलाई से जल रहा है। यह तो मुश्किल से नई दिल्ली से एक घंटे की ड्राइव पर है।’-सईद नकवी
       


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