‘सबका साथ सबका विकास’ वाले नारे पर कायम रहें मोदी

punjabkesari.in Sunday, Jan 19, 2020 - 03:31 AM (IST)

मोदी सरकार-2 के गठन को 8 माह हो चुके हैं। भारी बहुमत से जीत कर यह सरकार अपने दूसरे कार्यकाल की ओर अग्रसर है। सरकार चुनावी वायदों को पूरा करने में तेजी दिखा रही है। वहीं जनसंख्या के एक वर्ग से इसको विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिससे यह संकेत जाता है कि सरकार मनमानी नहीं कर सकती। वहीं मोदी सरकार 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पूरा करने का सपना संजोए हुए है। सुस्त पड़ी हमारी अर्थव्यवस्था के दौरान उपभोग में गिरावट जारी है। कोई भी निवेश करने को तैयार नहीं। दो दशकों से ज्यादा समय से भारत सरकार आटोमोबाइल से लेकर कपड़ा उद्योग में ही निवेश जुटा पाई है, जहां पर इसके एक बिलियन से भी ज्यादा उपभोक्ता थे। चीन के अलावा कोई भी दूसरा देश इतने बड़े बाजार को पेश नहीं करता। दुर्भाग्यवश नवम्बर 2019 के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 40 वर्षों के दौरान उपभोक्ता की खर्च करने की रुचि में गिरावट आई है। 

नागरिकता संशोधन कानून ने देश में अस्थिरता फैला दी। लोगों की जेबें खाली दिखाई दीं। कई स्थानों पर प्रदर्शनों के डर से इंटरनैट सेवाएं बंद कर दी गईं। वहीं माइक्रोसाफ्ट के सी.ई.ओ. सत्य नडेला ने इन घटनाओं पर अपनी चिंताएं जाहिर कीं। दूसरी ओर लोगों को सरकार का एक और चाबुक पडऩे का खतरा सता रहा है। ज्यादातर भारतीय इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हिन्दी प्रथम भारतीय भाषा बन जाएगी। यह सुझाव सितम्बर 2019 में गृह मंत्री अमित शाह ने दिया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत गणराज्य है।

सोचिए कि स्पेन निवासी डच या फ्रैंच को अपनी प्रमुख राष्ट्रीय भाषा के तौर पर स्वीकार करते हैं क्योंकि यूरोपीय संघ का मुख्यालय ब्रसेल्स में है। सरकार लोगों (यहां तक कि अल्पसंख्यक) की भावनाओं को नकार नहीं सकती। सरकार यह भी उम्मीद नहीं कर सकती कि उसके विचारों को चुनौती नहीं दी जाएगी। देश में बढ़ते हुए आक्रोश तथा प्रदर्शनों से व्यापार पर असर पड़ रहा है। लोग सरकार से भरोसा खो चुके हैं। ऐसी बातों से अर्थव्यवस्था का पहिया थम कर रह गया है। भारत सरकार को याद रखना होगा कि पैसे से ही सब कुछ बनता है। 

सशक्त अर्थव्यवस्था के बिना भारत अपनी छवि को धूमिल कर लेगा। यह अर्थव्यवस्था का आकार ही है, जो राष्ट्रों तथा उसके नेताओं को गति प्रदान करता है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 1993 में जॉर्ज बुश सीनियर को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। उन्होंने उस समय की अमरीकी अर्थव्यवस्था को मूर्ख करार दिया था। ऐसी बात को ध्यान में रखते हुए आर्थिक वृद्धि बहुत ही अहम है। भारत को विश्व में अपनी जगह नहीं खोनी होगी। यदि भारत प्रफुल्लित होता है तो देश के नागरिक ही प्रफुल्लित होंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘सबका साथ सबका विकास’ वाले नारे को कायम रखना होगा, तभी मतदाता उनको याद रख पाएंगे।                          


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