मोदी ने एक ही झटके में विपक्ष से हमले का केंद्रीय मुद्दा छीन लिया

punjabkesari.in Tuesday, Nov 23, 2021 - 04:16 AM (IST)

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी झुकने के लिए नहीं जाने जाते। यद्यपि राजनीतिक बाध्यताओं ने उन्हें गत सप्ताह विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को वापस लेने को बाध्य कर दिया है। उन्होंने महसूस किया कि जब कभी भी राजनीतिक विपक्ष तथा जन आंदोलन साथ आते हैं तो यह राजनीति को प्रभावित करता है। एक चतुर राजनीतिज्ञ होने के नाते उन्होंने वापसी करना चुना। 

शुक्रवार को अपने राष्ट्रीय टैलीविजन संबोधन में उन्होंने माफी मांगते हुए कहा कि, ‘आज मैं अपने देशवासियों से माफी मांगता हूं तथा शुद्ध हृदय तथा ईमानदारी से कहता हूं कि संभवत: कुछ कमियां रह गई होंगी।’ मोदी ने प्रदर्शनकारी किसानों, अपने अनुयायियों के साथ-साथ अपने विरोधियों को भी हैरान कर दिया। एक ही झटके में उन्होंने आने वाले संसदीय सत्र तथा 7 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में विपक्ष से हमले का केंद्रीय मुद्दा छीन लिया है। संसद के शीतकालीन सत्र से पहले इस घोषणा का समय भी बहुत अच्छा था। 

मोदी के प्रशंसक विरोधियों से अधिक दुविधा में थे। वे इतने जोरदार तरीके से कृषि कानूनों का बचाव कर रहे थे कि उन्होंने इस वापसी को अपने साथ एक तरह से विश्वासघात माना। मगर मोदी जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं, यहां तक कि अपनी छवि को कमजोर करने की कीमत पर। कृषि कानून वापस लेने से उन्हें प्रशंसा के साथ-साथ आलोचना भी मिली है। भारत तथा विदेशों में सुधार समर्थक लॉबी को मोदी द्वारा कानून वापस लेने से झटका लगा क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे सुधार प्रक्रिया रुक जाएगी जिस कारण नई तकनीकें तथा निवेश आना था। उन्हें मोदी से आशा है कि वह सुधार शुरू करेंगे। विशेषकर मजदूर तथा कृषि क्षेत्रों में। 

किसान समर्थक लॉबी किसानों की विजय पर उत्साहित है, जिन्होंने सर्दी तथा गर्मी और यहां तक कि कोविड को सहते हुए भी अपने प्रदर्शनों को एक वर्ष तक जारी रखा। विपक्ष का भी मानना है कि किसानों को उनके समर्थन की विजय हुई है। दिलचस्प बात यह है कि कृषि कानून वापस लेने का परिणाम भाजपा तथा विपक्ष दोनों के लिए चुनावी रणनीति में बदलाव के रूप में निकल सकता है। 

भाजपा मणिपुर, गोवा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात में शासन कर रही है तथा कांग्रेस केवल पंजाब में सत्तासीन है। उत्तर प्रदेश को जीतना भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पार्टी खुश है कि विपक्ष एकजुट नहीं है तथा भाजपा ने अपना प्रचार अभियान तेज और पार्टी मशीनरी को सक्रिय कर दिया है। भाजपा के पास पर्याप्त धन तथा बाहुबल के साथ-साथ अच्छी तरह से सक्रिय पार्टी मशीनरी भी है। 

विपक्ष की ओर से प्रतिक्रिया दिलचस्प है। कांग्रेस राहुल गांधी की दूरदृष्टि को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है जिन्होंने भविष्यवाणी की थी कि मोदी को कृषि कानून वापस लेने पड़ेंगे। मगर मजबूत संगठन के बिना चुनावी राज्यों को जीतना कठिन होगा। उदाहरण के लिए, कांग्रेस वर्तमान में उत्तर प्रदेश में चौथे स्थान पर है। यह केवल अपनी स्थिति में सुधार कर सकती है, राज्य को जीत नहीं सकती। समाजवादी पार्टी केंद्रीय चुनावी मुद्दे के तौर पर किसानों के आंदोलन का इस्तेमाल करने की आशा कर रही थी। पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन करने के लिए भी तैयार हो रही है जिसे जाटों का समर्थन प्राप्त है। अब इसे अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से काम करना होगा। विभाजित विपक्ष का परिणाम एक त्रिशंकु विधानसभा के रूप में निकल सकता है। 

कांग्रेस पंजाब को आसानी से जीत सकती थी। मगर गांधी भाई-बहन ने गत माह कैप्टन अमरेन्द्र सिंह से छुटकारा पाकर सभी चीजों को गड़बड़ कर दिया है। कैप्टन ने अपनी पार्टी बना ली है और भाजपा के लिए गठजोड़ करने हेतु तैयार हो रहे हैं। कैप्टन बेशक चुनाव नहीं जीत पाएंगे मगर कांग्रेस को नुक्सान पहुंचा सकते हैं। आम आदमी पार्टी का उत्थान भी एक चिंता है। उत्तराखंड में ऊधम सिंह नगर जिला, जहां बड़ी संख्या में सिख किसान रहते हैं, आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत चेहरा भी नहीं है। अब तक कांग्रेस तथा भाजपा बारी-बारी से यहां शासन करती आ रही हैं। 

हरियाणा में विपक्ष अपनी ताकत आजमा रहा है और चुनावी परिदृश्य को बदल सकता है। मगर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस खंडित बना हुआ है जिसे धड़ेबाजी तथा अनुशासनहीनता का सामना करना पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस हालिया उप-चुनावों में अपनी जीत के कारण  उत्साहित है। हालिया उप-चुनावों में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिल पाई। इसके पास एक मजबूत मुख्यमंत्री का भी अभाव है। गोवा तृणमूल कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी जैसी बाहरी पार्टियों को आकर्षित कर रहा है। यद्यपि 2017 में कांग्रेस नंबर एक पार्टी के तौर पर उभरी, भाजपा ने गठबंधन बनाकर उससे यह राज्य छीन लिया। यही चीज मणिपुर में भी हुई तथा कांग्रेस खेल में हार गई। 

गुजरात, जो प्रधानमंत्री मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है, पहले ही मुख्यमंत्री के रूप में परिवर्तन देख चुका है। फिर भी यहां मुख्यमंत्री के एक सशक्त चेहरे का अभाव है। ऐसा ही मामला कांग्रेस के साथ भी है। लड़ाई काफी करीबी होगी। किसानों का मुद्दा अभी बंद नहीं हुआ है। किसान संघों ने अपना आंदोलन जारी रखने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य, बिजली कानूनों को वापस लेने तथा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने का फैसला किया है जो लखीमपुर खीरी हत्याओं के पीछे थे। वे इस आंदोलन में मारे गए करीब 600 किसानों के लिए मुआवजे की भी मांग कर रहे हैं। क्या सरकार इन मुद्दों पर मान जाएगी? हमें प्रतीक्षा करनी होगी।-कल्याणी शंकर
 


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