भाजपा-शासित राज्यों पर ‘अंकुश’ लगाएं मोदी

Monday, Nov 25, 2019 - 03:50 AM (IST)

सन 2014 में जिस लोकप्रियता की लहर पर सवार हो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में सबसे मकबूल नेता बने और 5 साल बाद भी दोबारा प्रधानमंत्री चुने गए, वह था गुजरात का ‘‘भ्रष्टाचार शून्य विकास’’ मॉडल। सैंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीच्यूट की एक ताजा जांच के अनुसार देश में जिन 425 पुलों का परीक्षण हुआ, उनमें से 281 का स्ट्रक्चर खराब निकला और इनमें 253 पिछले 5 से 7 साल में बने।

सबसे चौंकाने वाली बात है कि इनमें से सबसे ज्यादा 75 प्रतिशत गुजरात के पुल खराब पाए गए। इस खराबी का मूल कारण घटिया मैटीरियल का लगना बताया गया। आम तौर पर नए पुल को 100 साल चलना चाहिए लेकिन 15 पुलों पर तत्काल यातायात बंद करने की सिफारिश की गई है और बाकी पर अलग-अलग स्तर पर मुरम्मत का काम शुरू किया जाएगा। जन-जीवन की कीमत पर भ्रष्टाचार की जीती-जागती सरकारी रिपोर्ट के बावजूद केन्द्र और राज्यों की सरकार के चेहरे पर कोई शिकन नहीं दिखती। 

झारखंड में भी भ्रष्टाचार
पुलों के निर्माण में भ्रष्टाचार में दूसरा अग्रणी राज्य झारखंंड है। यह दोनों राज्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित हैं। उधर उत्तर प्रदेश में एक महिला मंत्री द्वारा एक पुलिस अधिकारी को धमकाने का वीडियो वायरल हुआ है। इस वीडियो में मंत्री महोदया एक बड़े बिल्डर के खिलाफ रिपोर्ट न लिखने की चेतावनी दे रही हैं और अधिकारी के नियमानुसार कार्य करने की बात कहने पर मुख्यमंत्री का नाम लेते हुए उसे हटाने की धमकी दे रही हैं। इसमें भी प्रशासनिक असंयम से ज्यादा भ्रष्टाचार की बू आती है।

तीसरी खबर में एक हफ्ते पहले बिहार भाजपा के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि राज्य में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत बनाई गई 14000 सड़कों में इंजीनियर-ठेकेदार भ्रष्टाचार में अधिकांश सड़कें घटिया मैटीरियल से बनाई गई हैं। पश्चिमी चंपारण का उदाहरण देते हुए राज्य पार्टी प्रमुख ने बताया कि जिस सड़क को बाढ़-प्रभावित बताया गया वहां आजतक कभी बाढ़ नहीं आई और लगभग 50 लाख का भुगतान प्रशासनिक अधिकारियों और इंजीनियरों ने ठेकेदार को कर दिया। नीतीश कुमार की सरकार के सूचनामंत्री और उनकी पार्टी के प्रवक्ता ने सहज भाव से बताया कि यह बात सरकार के संज्ञान में है और उस ठेकेदार को हटा दिया गया। 

नहीं घटा भ्रष्टाचार
इसमें कोई दो-राय नहीं है कि मोदी के शासन काल में गुजरात में दलाल,भ्रष्ट अधिकारी-ठेकेदार सांठ-गांठ का बोलबाला खत्म हो गया था। देश का शासन सम्भालने के बाद भी जनता को यही अपेक्षा थी, और आज भी है, कि देश में पहला हमला भ्रष्टाचार पर होगा। लेकिन आज जबकि देश के दो-तिहाई राज्य भाजपा के शासन में हैं, भ्रष्टाचार का बोलबाला कहीं भी कम नहीं दिखता, बल्कि कुछ राज्यों में बढ़ा ही है।

बिहार में अगर इसी पार्टी की राज्य इकाई का अध्यक्ष अगर चीख-चीख कर भ्रष्टाचार की बात कह रहा है और मीडिया को भी चिट्ठी लीक कर रहा है तो प्रश्न उठता है कि क्या ठेकेदार को हटाना और इस आकंठ डूबे भ्रष्टाचारियों के खिलाफ केवल इतना ही कहना काफी है कि जांच चल रही है, काफी है? क्या भाजपा भ्रष्टाचार के प्रति शून्य-सहिष्णुता रखती है और अगर हां, तो बिहार में नीतीश के साथ क्यों है? क्या प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की प्राथमिकताएं बदल गई हैं? गुजरात की उपरोक्त खबर के बाद क्या एक मुख्यमंत्री को सख्त चेतावनी देने की जरूरत नहीं या उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री द्वारा 5 लाख दीप जलाने से मोदी की छवि ज्यादा बेहतर होगी? 

शायद सत्ता की विवशताओं में सन् 2014 के पहले वाले मोदी की धार भी कुंद होती जा रही हैं। कहीं यह प्राथमिकताएं ओबामा से मुलाकात को देश की जनता के सामने ‘‘बराक’’ कहने और ‘हम गप्पें करते हैं’ बताने में और ट्रम्प के साथ हाथ मिलाकर 50 मीटर चलने में तो नहीं बदल गई है। वरना इतना ताकतवर प्रधानमंत्री, जिसकी जन-स्वीकार्यता से ही भाजपा के सभी मुख्यमंत्री आज शासन में हैं, के रहते इतना घटिया और भ्रष्ट प्रशासन यह मुख्यमंत्री न देते, खासकर मोदी के अपने गुजरात में। 

देश के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज पर भ्रष्टाचार का मुकद्दमा दर्ज करने की इजाजत सी.बी.आई. को दे दी है। तमाम जांच के बाद प्राथमिक तौर पर इस जज को भ्रष्टाचार में लिप्त होने के सबूत मिले। संविधान निर्माताओं ने न्यायपालिका, खासकर, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को नैतिकता की प्रतिमूर्ति मानते हुए उन्हें पद पर रहने के दौरान हर संवैधानिक सुरक्षा कवच से नवाजा था और उन्हें पद से हटाना एक जटिलतम प्रक्रिया के तहत लगभग नामुमकिन कर दिया था। जिस प्रजातंत्र को उन्होंने इतनी कुर्बानियां दे कर हासिल किया था उसके भावी अधोपतन का शायद उन्हें अंदाजा नहीं था। उत्तरप्रदेश और खासकर पूर्वी उत्तरप्रदेश को तो हाल के कुछ वर्षों में मोदी अपनी कर्मभूमि मानने लगे हैं। अगर वहां का शासन और मंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार या घटिया प्रशासन की छवि बने तो क्या यह मोदी की अपनी छवि के लिए शुभ-संकेत हैं। यह प्रदेश ताजा रिपोर्ट के अनुसार संगीन अपराध की श्रेणी में सबसे आगे है। 

एक ऐसे समय जब वैश्विक मंदी तेजी से भारत को भी अपने लौह-पाश में जकड़ रही है, राज्य सरकारों का अक्षम और भ्रष्ट होना इस संकट को और बढ़ाएगा। सरकारें सक्षमता और सही सोच से इस संकट से देश को निकाल सकती हैं बशर्ते वे हकीकत के प्रति ‘शुतुरमुर्गी भाव’ न रखें। भ्रष्टाचार के अलावा मोदी का अपना राज्य औद्योगिक मंदी की चपेट में है। लब्बो-लुआब यह कि सरकार खुशफहमी छोड़ कर देश को आसन्न आॢथक मंदी और राज्यों की भाजपा-शासित सरकारों में भ्रष्टाचार और विकासहीनता के अभेद्य चक्रव्यूह में फंसने से पहले बाहर लाए वरना देरी महंगी पड़ेगी। मोदी की छवि एक ईमानदार कर्मठ जन-नेता की है लेकिन उसे बनाए रखना तभी संभव है जब नेतृत्व इन बुराइयों के प्रति जीरो टॉलरैंस रखे।-एन.के. सिंह 
            

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