मोदी को विपक्षी मुख्यमंत्रियों की भी सुननी चाहिए

punjabkesari.in Friday, May 28, 2021 - 06:02 AM (IST)

जैसे संघीय लोकतंत्र की ताकत नेतृत्व की गुणवत्ता पर निर्भर करती है, केंद्र तथा इसके राज्यों दोनों जगह पर। अतीत में, लगभग 5 वर्ष पूर्व अधिकतर नेताओं को ‘सैल्फ सीकर्स’ का नाम दिया गया था जिसका अर्थ यह है कि वे मुख्य रूप से अपने राजनीतिक तथा निजी हितों की चाह रखते हैं। इसे साबित करने के लिए बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं। 

स्वतंत्रता से पूर्व तथा इसके शीघ्र बाद विभिन्न पार्टियों से संबंधित अधिकतर नेता अपने व्यवहार में नैतिक मानदंडों के प्रति निष्ठावान थे। वे नियमों तथा विचारों पर लक्षित थे और इसके बावजूद अच्छी तरह से मिट्टी से जुड़े थे। समय के साथ पुराने समय के आत्म बलिदानी नेताओं की छवि में नाटकीय बदलाव आया। अधिकतर राजनीतिक नेताओं ने समय के साथ सत्ता के इच्छुक के तौर पर अपना असल रंग दिखाना शुरू कर दिया। अपने व्यवहार में वे तानाशाहीपूर्ण हैं। इस प्रक्रिया में शिक्षित नागरिकों के बीच यह एहसास बढ़ता जा रहा है कि उनके ‘देवताओं’ के पांव मिट्टी के हैं। 

इसका सर्वाधिक चमकदार उदाहरण संसदीय मानदंडों तथा विधायकों की गुणवत्ता में गिरावट है। व्यक्तिगत राजनीति की संस्कृति कुछ नेताओं के लिए आगे आ गई है जो व्यक्तिगत वफादारी, चापलूसी तथा धन, बल की शक्ति पर फलफूल रहे हैं। इसने राजनीतिक माहौल को विषैला बना दिया है। यह मुझे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ भड़कने की याद दिलाता है। उन्होंने जिला मैजिस्ट्रेट्स के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक वर्चुअल मीटिंग के दौरान मु यमंत्रियों को नहीं बोलने देने का बहुत बुरा मनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह एक अनौपचारिक, लॉप बैठक थी। हम मु यमंत्रियों ने खुद को अपमानित महसूस किया। उन्होंने घोषणा की कि ‘हम कठपुतलियां नहीं हैं’। 

हम इस संबंध में ममता बनर्जी पर प्रश्न नहीं उठाएंगे। ऐसा बर्ताव ‘सहकारी संघवाद’ के विचार के खिलाफ जाता है जिसके बारे में एक बार प्रधानमंत्री मोदी भी बोल चुके हैं। डी.ए स. के साथ अपनी बैठक के दौरान प्रधानमंत्री ने रूप बदलने वाले रोगाणु से लड़ने के लिए मजबूत आंकड़ों तथा समीक्षा के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने अधिकारियों को बच्चों तथा युवाओं में वायरस फैलने संबंधी जानकारी एकत्र करने को कहा। निश्चित तौर पर पेचीदा कोविड दृष्टांत पर सूचना एकत्र करना आज महत्वपूर्ण जरूरत है।

हालांकि मैं यह अवश्य कहूंगा कि इस उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपनाया गया तानाशाहीपूर्ण मार्ग गलत है। प्रधानमंत्री ने सच्चे संघवाद की भावना को नजरअंदाज किया। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि संघवाद की भावना में राज्यों से राजनीतिक, वैधानिक, आर्थिक, वित्तीय तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में कार्यकारी स्वायत्तता निभाने की आशा की जाती है, बिना केंद्र के सामने झुके हुए। दरअसल भाजपा नीत राजग शासन में संघीय ढांचे के भीतर बढ़ रहा तनाव मु य रूप से संघीय मुद्दों तथा मामलों से सही तरीके से न निपटने के कारण उत्पन्न हुआ है। 

आमतौर पर इस संबंध में राजनीतिक दिशा-निर्देशों का इस्तेमाल गलत कारणों तथा गलत उद्देश्यों के लिए किया जाता है। सत्ता तथा अधिकारों का उल्लेखनीय रूप से दुरुपयोग किया गया है। यहां तक कि अपने राजनीतिक उद्देश्य हासिल करने के लिए सत्ताधारी वर्ग द्वारा निरंतर संवैधानिक प्रावधानों का शोषण किया गया है। कोई हैरानी की बात नहीं कि हम नई दिल्ली में सत्ता तथा अधिकारों के केंद्रीयकरण के प्रति बढ़ते रुझानों को देख रहे हैं। इससे कई तरह की पेचीदगियां उत्पन्न हुई हैं। निश्चित तौर पर भारतीय प्रणाली में सत्तावादी रुझान दिखाई देते हैं। राजनीति की इस पेचीदा प्रवृत्ति को देखते हुए संघीय व्यवस्था के सभी स्तरों पर कार्यशाली विकेंद्रीयकरण हेतु गंभीर प्रयासों की जरूरत है ताकि केंद्र-राज्य संबंधों की कार्यप्रणाली सुगमता से चल सके। 

बेशक राजनीति हेर-फेर की एक कला है लेकिन संवैधानिक प्रावधानों तथा संघीय नियमों का न केवल अपनाने बल्कि केंद्र तथा राज्यों द्वारा उन पर चलने की भी जरूरत है अन्यथा मामले हाथों से निकल जाएंगे जैसा कि आमतौर पर होता है। यह कोई रहस्य नहीं है कि केंद्र तथा विपक्ष शासित राज्य टीकाकरण मामलों तथा ऑक्सीजन की कमी को लेकर एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं।  इन मामलों ने मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री मोदी के बीच कलह पैदा कर दी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाल ही में कहा था कि ‘प्रधानमंत्री केवल अपने मन की बात करते हैं।’ 

हालांकि भाजपा ने सुश्री बनर्जी पर बैठक के राजनीतिकरण का आरोप लगाया है। निश्चित तौर पर ऐसा नहीं है। केंद्र तथा राज्यों को बहुमुखी कोविड समस्याओं के खिलाफ लड़ाई में वांछित परिणाम पाने के लिए सहयोग की भावना दिखानी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी को चीजों को संकीर्ण राजनीतिक नजरिए से नहीं बल्कि व्यापक परिप्रेक्ष्य में देख कर सीखना चाहिए।-हरि जयसिंह


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