मोदी का विजन और विभाजनकारी विचार

punjabkesari.in Sunday, Aug 25, 2024 - 05:04 AM (IST)

यह स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का लगातार 11वां भाषण था, जो एक तरह से रिकॉर्ड है। यह नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से दिया गया सबसे लंबा भाषण (98 मिनट) था। यह उनके तीसरे कार्यकाल की शुरूआत थी और उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अगले 5 वर्षों के लिए सरकार के लिए अपना विजन पेश करेंगे। भाजपा नेताओं ने भाषण को एक साहसिक नए विजन को सामने लाने वाला बताया। अगर ऐसा था, तो मुझे डर है कि यह एक ऐसा विजन था जो लोगों के एक वर्ग को लक्षित करता था। प्रधानमंत्री ने कहा, हम संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं, हम बहुत आगे जा रहे हैं, लेकिन एक और सच्चाई यह है कि कुछ लोग हैं जो भारत की प्रगति को पचा नहीं सकते।
कुछ लोग भारत के लिए अच्छी चीजों की कल्पना नहीं कर सकते क्योंकि उनके अपने निहित स्वार्थ पूरे नहीं होते, इसलिए उन्हें किसी की प्रगति पसंद नहीं आती। ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोगों की कोई कमी नहीं है। देश को ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। 

लोकतंत्र के प्रति तिरस्कार : ‘कुछ लोग’ कौन हैं? मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता जो कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष आदि में भारत की प्रगति पर गर्व न करता हो। क्या प्रधानमंत्री उन 262 मिलियन मतदाताओं की ओर इशारा कर रहे थे जिन्होंने उनके और एन.डी.ए. के खिलाफ वोट दिया? या उन युवाओं की ओर जो बढ़ती बेरोजगारी के लिए उनकी आलोचना करते हैं? या उन गृहणियों की ओर जो बढ़ती महंगाई के बोझ की शिकायत करती हैं? या उन सैनिकों और पूर्व सैनिकों की ओर जो चीन द्वारा भारतीय क्षेत्र पर बेशर्मी से कब्जा किए जाने के बावजूद भारत के चुपचाप पीछे हटने से हैरान हैं? भारत के लिए एक दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से दिए गए भाषण में, प्रधानमंत्री ने वास्तव में अपनी सरकार की गलत नीतियों के कारण लोगों के बीच विभाजन को और बढ़ा दिया। अपनी सरकार के विरोधियों को ‘विकृत’ कहना लोकतांत्रिक फैसले के प्रति तिरस्कार दर्शाता है। अगर हमने सोचा था कि भाजपा के 240 सीटों पर सिमट जाने के बाद कुछ मुद्दे पीछे छूट जाएंगे, तो हम गलत थे। जाहिर है, प्रधानमंत्री अभी भी समान नागरिक संहिता (यू.सी.सी.) और एक राष्ट्र-एक चुनाव (ओ.एन.ओ.ई.) के विचार की कसम खाते हैं। 

उन्होंने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में दोनों का उल्लेख किया। उन्होंने मौजूदा व्यक्तिगत कानून संहिताओं को ‘सांप्रदायिक नागरिक संहिता’ करार दिया और कहा- आधुनिक समाज में ऐसे कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है जो देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करते हैं और वर्ग भेदभाव का आधार बनते हैं। मैं कहूंगा, और यह समय की मांग है कि देश में एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता होनी चाहिए। हमने सांप्रदायिक नागरिक संहिता के तहत 75 साल बिताए हैं। अब हमें एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की ओर बढऩा होगा। तभी हम धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों के कारण होने वाली दरार से राहत पा सकेंगे। यह कथन त्रुटि, खराब समझ और पूर्वाग्रह का मिश्रण था। हर व्यक्तिगत कानून संहिता धर्म पर आधारित है, जिसमें हिंदू संहिता भी शामिल है, लेकिन इससे संहिता सांप्रदायिक नहीं हो जाती। विवाह पर एक धर्मनिरपेक्ष संहिता है, जिसका नाम विशेष विवाह अधिनियम है, लेकिन यह भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं है। आम आदमी (हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख या पारसी) को यह महसूस नहीं होता कि उसके पड़ोसी पर किसी दूसरे कोड का शासन है। यह बहुत बढिय़ा होगा अगर सभी धार्मिक समूह और समुदाय एक समान नागरिक संहिता पर सहमत हो जाएं, लेकिन ऐसा कहना आसान है, करना मुश्किल। 

विभाजनकारी बयानबाजी : यू.सी.सी.या ओ.एन.ओ.ई.  का  विचार  ही  खतरे  की  घंटी बजाता है और सबसे पहले डर को दूर करना जरूरी है। मैंने पिछले कॉलम (पंथ पूजा और परिणाम,पंजाब केसरी, 21 अप्रैल, 2024) में यू.सी.सी.और ओ.एन.ओ.ई.के छिपे हुए एजैंडे के बारे में बताया था। यू.सी.सी.के लिए सभी धार्मिक समूहों और समुदायों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करना जरूरी है। ओ.एन.ओ.ई. के लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन करना जरूरी है। 
प्रधानमंत्री का भाषण मुद्दों पर बहस की शुरूआत या अंत नहीं है। इसके विपरीत, इसका मतलब यह होगा कि विभाजनकारी मुद्दे उठाए जाएंगे और संसद के माध्यम से कानून पारित किए जाएंगे जो लोगों को और विभाजित कर सकते हैं। 
लोकसभा चुनाव में बहुत विभाजनकारी बयानबाजी देखने को मिली। कांग्रेस के घोषणापत्र 2024 पर हमला करते हुए मोदी ने कहा- 

- कांग्रेस लोगों की जमीन, सोना और अन्य कीमती सामान मुसलमानों में बांट देगी।
-कांग्रेस आपका मंगलसूत्र और स्त्रीधन छीनकर उन लोगों को दे देगी जिनके अधिक बच्चे हैं।
- अमित शाह ने कहा, ‘कांग्रेस मंदिरों की संपत्ति जब्त करके उन्हें बांट देगी।’ 
-राजनाथ सिंह ने कहा, ‘कांग्रेस लोगों की संपत्ति हड़पकर उन्हें घुसपैठियों में बांट देगी।’ 

चुनाव के नतीजों ने प्रधानमंत्री को नहीं रोका है, लेकिन सत्ता खोने के डर ने उनकी सरकार को कई मुद्दों पर पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। पूंजीगत लाभ के लिए इंडैक्सेशन लाभ बहाल कर दिया गया है, वक्फ विधेयक को एक प्रवर समिति को भेज दिया गया है, प्रसारण विधेयक को वापस ले लिया गया है और केंद्र सरकार के पदों पर पाश्र्व प्रवेश की योजना को स्थगित कर दिया गया है। अधिक विभाजनकारी विचारों का डर तभी खत्म होगा जब सी.ए.ए., यू.सी.सी. और ओ.एन.ओ.ई.को अंतत: वापस ले लिया जाएगा। -पी. चिदम्बरम


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