मोदी की वापसी मुमकिन है बशर्ते...

Tuesday, Mar 05, 2019 - 03:55 AM (IST)

भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन की सकुशल घर वापसी के साथ ही देश सामान्य होता जा रहा है। दोनों बड़े राष्ट्रीय दल (भाजपा और कांग्रेस) चुनावी रैलियां खेलने लगे हैं। एक-दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री मोदी अपनी चुनावी सभाओं की शुरूआत में जिस तरह से नारे लगवा रहे हैं उससे साफ है कि भाजपा उग्र राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव लडऩे जा रही है।

उधर कांग्रेस इस मोर्चे पर तो फिलहाल बैकफुट पर नजर आ रही है लेकिन उसे लग रहा है कि सीमा पर तनाव अगले कुछ दिनों में और ज्यादा कम होगा व तब एक बार फिर किसानों के दर्द और बेरोजगारों की निराशा को चुनावी मुद्दा बनाया जा सकेगा। उधर छोटे दलों को गठबंधन पर भरोसा है। भाजपा को लग रहा है कि 2014 में जिस तरह से धर्म ने जाति को तोड़ा था व हिंदुत्व ने उसे चुनाव जितवा दिया था, उसी तरह इस बार राष्ट्रवाद जाति को तोड़ेगा और मोदी सरकार की फिर से वापसी होगी।

देश का चुनावी मौसम बदला
पुलवामा में सी.आर.पी.एफ. के काफिले पर हमले और बालाकोट में भारतीय वायु सेना के हमले के बाद देश में चुनावी मौसम पूरी तरह से बदल गया है। आज जहां भी जिस तबके के लोगों से बात करो, सभी पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात करते हैं और सभी को लगता है कि मोदी सरकार ने पाकिस्तान को झुका दिया है, दबा दिया है, उसका दाना-पानी बंद कर दिया है, टमाटर खाने से वंचित कर दिया है और आगे से भारत में आतंकवादी भेजने से पहले पाकिस्तान हजार बार सोचेगा।

कुछ हुआ है, कुछ हवा टी.वी. चैनलों ने बनाई है और कुछ भाजपा के प्रचार-प्रसार विभाग का कमाल है। पिछले दस दिनों में राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, बिहार और यू.पी. में जितने लोगों से बात हुई, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि आज अगर चुनाव होते हैं तो भाजपा आसानी से सरकार बनाने जा रही है। बहुत संभव है कि यह आंकड़ा तीन सौ पार कर जाए।

पुलवामा हमले से पहले सभी चुनावी सर्वे भाजपा को 200 से कुछ ज्यादा और राजग को 240 के आसपास सीटें दे रहे थे। लेकिन अब इसमें अगर 20-30 सीटों का इजाफा कर दिया जाए तो भाजपा या यूं कहा जाए कि राजग फिर से सरकार बनाता नजर आ रहा है। हालांकि राजनीति में कुछ भी संभव है और एक हफ्ता भी बहुत ज्यादा होता है। यहां तो पहले चरण के चुनाव में एक महीने से ज्यादा समय बाकी है। जिस तरह से येद्दियुरप्पा जैसे नेताओं के बयान आ रहे हैं कि पाक पर हमले के बाद भाजपा की कर्नाटक में सीटें 17 से बढ़कर 22 हो जाएंगी, ऐसे बयानों का उलटा असर भी पड़ सकता है।

आखिर हमने देखा है कि पायलट अभिनंदन के पकड़े जाने की खबर के सामने आने पर टी.वी. चैनलों पर लड़ाई का उन्माद पचास फीसदी कम हो गया था। सोशल मीडिया पर भी जिस तरह से युवा वर्ग इस कामयाबी के लिए सेना की पीठ थपथपा रहा है उससे भी भाजपा को सावधान हो जाना चाहिए कि उसकी चुनावी रणनीति ऐसी होनी चाहिए जहां जवान सामने रहे और मोदी जी का पराक्रम थोड़ा पीछे।

युद्ध के बाद भी चमत्कारिक सफलता नहीं
थोड़ा इतिहास में जाएं तो कहा जा सकता है कि पहले भी युद्ध के बाद हुए चुनावों में सत्ताधारी दल को वैसी चमत्कारी सफलता नहीं मिली है। 1999 के कारगिल युद्ध के बाद हुए चुनावों में वाजपेयी सरकार की सीटें 254 से बढ़कर 279 हो गई थीं लेकिन यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसमें तेदेपा की 29 सीटें शामिल थीं जो पहले राजग का हिस्सा नहीं थी। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाली इंदिरा गांधी को 1975 में आपातकाल लगाना पड़ा था और दो साल बाद हुए चुनाव में गद्दी गंवानी पड़ी थी। इसी तरह 1965 की भारत-पाक जंग के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस पहली बार कमजोर हुई थी और पहली बार एक दर्जन से ज्यादा राज्यों में विपक्ष सरकार बनाने में कामयाब हुआ था।

ये सारे उदाहरण भाजपा का दिल तोडऩे के लिए काफी हैं लेकिन यहां हमें यह भी देखना होगा कि 1965 की लड़ाई के बाद कांग्रेस में सत्ता का संघर्ष चरम पर आ गया था। कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग इंदिरा गांधी के खिलाफ खुलकर आ गया था और क्षेत्रीय क्षत्रप  बगावत पर उतर आए थे। यही वजह थी कि कांग्रेस 1967 के आम चुनावों में कमजोर पड़ी। इसका भारत-पाक युद्ध से उतना लेना-देना नहीं था।

1971 में बंगलादेश बनाने वाली इंदिरा गांधी के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट का अवैध ठहराना और आपातकाल लगाना उनकी 1977 में हार की वजह बना था, न कि 1971 की लड़ाई। आज भी लोग इंदिरा गांधी को उनके इस साहस के लिए याद करते हैं। इसी तरह 1999 में कारगिल की लड़ाई के बाद भाजपा या राजग का सत्ता को बरकरार रख पाना लड़ाई के कारण ही संभव हो सका। कहा जाता है कि अगर कारगिल नहीं होता तो वाजपेयी सरकार की वापसी नहीं होती।

अब बात 2019 की। 14 फरवरी को पुलवामा हमले से पहले मोदी सरकार चुनाव मैदान में दो शस्त्रों के साथ उतर रही थी। पहला, किसानों के खाते में 6000 रुपए सालाना डालना और दूसरा, सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देना। इसके अलावा मुद्रा, उज्ज्वला, सौभाग्य, आवास योजना जैसी योजनाओं के लाभार्थियों के रिटर्न गिफ्ट वोट का सहारा था। उधर विपक्ष किसानों के रोने और नौकरियों के नहीं होने को मुद्दा बना रहा था। साथ ही में गठबंधन कर रहा था ताकि भाजपा वोटों की गोलबंदी की जा सके।

मोदी का छक्का
कुल मिलाकर भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही थी क्योंकि राम मंदिर  मुद्दा चुनावों तक ताक पर रख दिया गया था जिसका जवाब भी उसे देना पड़ रहा था। सभी कह रहे थे कि भाजपा 180 पार नहीं जा पाएगी और उसे सरकार बनाने में दंड पेलने पड़ेंगे या फिर मोदी की जगह गडकरी प्रधानमंत्री बन सकते हैं आदि-आदि। लेकिन पुलवामा ने मोदी को मौका दिया और मोदी ने बालाकोट में हमला कर छक्का लगा दिया, विपक्ष के छक्के छुड़ा दिए।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभिनंदन की वापसी को भी भाजपा ने अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश की है और पाकिस्तान को टमाटर रोकने को भी चुनावी चर्चा का हिस्सा बना दिया है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि 1965, 1971 और 1999 में सोशल मीडिया नहीं था। इस बार है और उसका इस्तेमाल भाजपा कुशलतापूर्वक करती रही है। अगर येद्दियुरप्पा जैसे बयान नहीं आते हैं और विपक्ष तकनीकी गलती करता है तो मोदी आसानी से वापसी कर सकते हैं। लेकिन अगर जवान के आगे प्रधान (सेवक) आया तो फिर कुछ भी हो सकता है।-विजय विद्रोही

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