मोदी की पार्टी का संघीय राजनीति में रचनात्मक व्यवहार नहीं

punjabkesari.in Friday, Jun 11, 2021 - 05:27 AM (IST)

कोई रहस्य नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मन की करते हैं। वह ‘हां प्रधानमंत्री मोदी जी’ ब्रांड मंत्रियों तथा पार्टी सदस्यों को पसंद करते हैं न कि उनको जो उनके तथा भाजपानीत राजग शासन की नीतियों के आलोचक हैं। प्रधानमंत्री मोदी के अंतर्गत ऐसा दिखाई देता है कि व्यक्तिगत नेतृत्व पर काफी दबाव है तथा संस्थाओं पर उनकी कार्यात्मक स्वायत्तता पर भी। उसके परिणामस्वरूप राज्य के विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों, पार्टी प्रणाली, संसद, नौकरशाही और कानून व्यवस्था के तंत्र की प्रभावशीलता में तीव्र क्षरण हुआ है। 

इससे पसंदीदा राजनीतिक क्षेत्रों में तानाशाही तथा भेदभावपूर्ण दखलअंदाजी में भी वृद्धि हुई है। इससे भी खराब बात यह कि जनहित के मुद्दों को नजरअंदाज करने तथा सत्ता को व्यक्तिगत हितों के लिए इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति में बढ़ौतरी हुई है। ऐसी व्यवस्था में राजनीति का तानाबाना आमतौर पर छिन्न-भिन्न हो जाता है। मैंने ये मुद्दे आपदा प्रबंधन कानून के अंतर्गत पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय को मोदी सरकार द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस की रोशनी में उठाए हैं। इससे तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी तथा केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सत्ताधारी भाजपा के बीच शब्द युद्ध शुरू हो गया है। 

अल्पन बंदोपाध्याय अत्यंत शिक्षित, सक्षम, समझदार तथा अनुभवी आई.ए.एस. अधिकारी के तौर पर जाने जाते हैं। उन्हें सेवा से 31 मई को सेवानिवृत्त होना था। केंद्र ने राज्य सरकार के उन्हें सेवा विस्तार देने के निवेदन को स्वीकार करते हुए तीन महीनों का सेवा विस्तार दिया था। स्थिति ने उस समय नाटकीय मोड़ ले लिया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चक्रवातीय तूफान यास की समीक्षा बैठक से मु यमंत्री ममता बनर्जी के साथ निकल जाने के कुछ घंटों बाद उन्हें अचानक नई दिल्ली में तलब कर लिया गया।

मुख्यमंत्री ने बंदोपाध्याय को छोडऩे से इंकार कर दिया। ममता बनर्जी ने केंद्र के इस कदम को ‘असंवैधानिक’ तथा ‘गैर-कानूनी’ करार दिया। इस बीच उन्होंने बंदोपाध्याय को एक निश्चित समय के लिए मुख्यमंत्री के मुख्य सलाहकार के पद पर नियुक्त कर दिया। 

इस घटनाक्रम के चलते कई पूर्व शीर्ष आई.ए.एस. नौकरशाहों ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मु य सचिव के खिलाफ केंद्र के कदम की आलोचना की है। उन्होंने सेवानिवृत्ति से एक दिन पूर्व केंद्र द्वारा सचिव स्तर के अधिकारी की नियुक्ति पर प्रश्र उठाया है। ऐसी नियुक्तियों में ज्वाइङ्क्षनग का समय आमतौर पर 6 दिन जमा यात्रा का समय होता है। पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लई का मानना है कि केंद्र के कदम ने एक खराब रिवायत डाली है तथा इससे सिविल सॢवसेज के मनोबल में गिरावट आएगी। 

यह याद करना दिलचस्प होगा कि ठीक 10 वर्ष पूर्व नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री  के तौर पर कांग्रेस नीत केंद्र सरकार पर ‘राज्यों के अधिकारों को हड़पने, जांच एजैंसियों के दुरुपयोग, वैधानिक तथा संवैधानिक इकाइयों के शोषण तथा राज्यों का राजनीतिक एजैंटों के तौर पर इस्तेमाल’ करने का आरोप लगाया था। केंद्र में जो कोई भी पार्टी सत्ता में हो भारत में संघीय राजनीति इसी तरह काम करती है। वर्तमान मामले में ऐसा दिखाई देता है कि यू.पी.ए. का जूता भाजपा नीत राजग के पांव में है। स्वाभाविक है कि भाजपा नीत केंद्र सरकार की कार्रवाइयां संघवाद के मूलभूत नियमों के खिलाफ हैं जो शर्म की बात है। 

प्रणाली में मौजूद पेचीदगियों के चलते केंद्र बंदोपाध्याय मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ शत्रुता रोके। प्रधानमंत्री मोदी को इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि ममता को हालिया विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के लोगों की ओर से व्यापक शासनादेश मिला है। क्या प्रधानमंत्री मोदी अभी भी उनकी शानदार चुनावी सफलता से पीड़ित हैं? क्या वे भूल गए हैं कि गुजरात के मु यमंत्री के तौर पर उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि केंद्र राज्य प्रशासन की गरिमा तथा स्वायत्तता का स मान करे। मैं प्रधानमंत्री मोदी से आशा करता हूं कि वह सहकारी संघवाद के उसी नियम से जुड़े रहेंगे जिसकी कभी उन्होंने वकालत की थी। 

आपदा प्रबंधन कानून 2005 के अंतर्गत केंद्र की कार्रवाई सबसे पहले महामारी के दौरान लागू की गई थी। बंगाल के पूर्व मु य सचिव के खिलाफ ऐसा कदम पूर्णतय: गलत तथा बदले की कार्रवाई दिखाई देता है। प्रधानमंत्री मोदी जैसे उच्चपदेन व्यक्ति को ऐसा बदले वाला व्यवहार शोभा नहीं देता। इतनी ही अफसोसनाक यह बात है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ ने भी अपने भेदभावपूर्ण कदमों से प्रधानमंत्री मोदी व ममता बनर्जी के बीच समीकरण बिगाडऩे में योगदान दिया है। ऐसा दिखाई देता है जैसे वह भाजपानीत केंद्र सरकार के प्रचार के लिए काम कर रहे हों। 

78 विधायकों के साथ भाजपा के पास खुद को पश्चिम बंगाल विधानसभा में एक विश्वसनीय विपक्षी दल के तौर  पर स्थापित करने का अवसर है। लेकिन ऐसा दिखाई देता है कि इस तरह अधिक झुकाव ममता बनर्जी की चुनी हुई सरकार के लिए राज्य में काम करना मुश्किल बनाना है। यह दिखाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी देश की संघीय राजनीति में एक रचनात्मक तरीके से व्यवहार नहीं कर रही।-हरि जयसिंह
 


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