मोदी-किशिदा भेंट, चीन की उड़ी नींद

punjabkesari.in Wednesday, Mar 29, 2023 - 05:40 AM (IST)

हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने भारत की यात्रा की। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान जापानी प्रधानमंत्री किशिदा ने फ्री एंड ओपन इंडो-पैसिफिक पर बात की, यानी मुक्त और खुला हिन्द-प्रशांत। 

दरअसल जापान चीन की बढ़ती आक्रामकता से परेशान है और इसके समाधान के लिए ही किशिदा भारत आए थे। दरअसल चीन हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को एशिया-प्रशांत क्षेत्र कहता है, लेकिन इस क्षेत्र के आसपास बसने वाले देश जिसमें अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत आते हैं ये चारों देश इस क्षेत्र को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र कहते हैं। ये देश इस क्षेत्र में चीन का दबदबा नहीं मानते। इन देशों का कहना है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में कानून का राज चलेगा, किसी एक देश की आक्रामकता को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 

हिन्द-प्रशांत क्षेत्र जिसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भी कहते हैं, इसकी रचना तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने वर्ष 2006 में की थी। जिससे इस क्षेत्र में किसी एक देश का बाहुबल न चले और एक अकेला देश पूरे क्षेत्र में बसने वाले देशों की सीमा को अपने मन से एकतरफा न बदले। 

अब इसे नया रूप देने के लिए जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने चार मुख्य स्तंभ बनाए हैं जिस पर वह प्रधानमंत्री मोदी के साथ काम करना चाहते हैं। पूरी हिन्द-प्रशांत रणनीति का आधार ये चार स्तंभ होंगे जिनमें कुछ मुख्य बातें शामिल हैं -पहला स्तंभ है शांति के लिए सिद्धांत और समृद्धि के लिए कानून। पहले स्तंभ के तहत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के हर देश की सार्वभौमिकता और स्वतंत्रता का सम्मान किया जाएगा, इसके साथ ही अगर कोई एक देश एकतरफा किसी देश की सीमा में बदलाव करता है तो क्षेत्र के बाकी देश उस पीड़ित देश की इकट्ठा होकर मदद करेंगे। 

यह कहने की बात नहीं है कि यहां पर चीन का नाम लिए बिना उसके बारे में सारी बातें कही गई हैं और चीन पर नकेल कसने की पूरी तैयारी हो रही है। शिन्जो आबे के समय ये बातें नहीं थीं लेकिन समय को देखते हुए इस समय वैश्विक पटल पर ये बातें की जा रही हैं। पहला स्तंभ है- यह कानून क्षेत्र के सभी देशों के हित में है और चीन को छोड़कर सारे देश इस कानून को मानेंगे। 

दूसरा स्तंभ है-गर्म होती धरती का, इस पूरे क्षेत्र में कई देश ऐसे हैं जो बढ़ते समुद्र के स्तर से डूबने की कगार पर हैं। मॉलदीव्स, पॉलीनेशिया और माइक्रोनेशिया जैसे बहुत सारे देश हैं जो महज कुछ द्वीपों पर सिमटे हुए हैं, अगर एक मीटर भी समुद्र का पानी और बढ़ा तो इनमें से  कई देश समुद्र में डूब जाएंगे। पर्यावरण में बदलाव पर लगाम लगाना बहुत जरूरी है। तीसरा स्तंभ कहता है कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के सभी देशों में बेहतर संपर्क होना चाहिए जिससे ये न सिर्फ एक-दूसरे का सहयोग कर अपनी स्थिति को मजबूत बना सकें बल्कि चीन की आक्रामकता को करारा जवाब देने के लिए भी एक-दूसरे से जुड़े रहें। 

इसका चौथा स्तंभ कहता है कि सुरक्षा और पूरे क्षेत्र के समुद्र और वायु का सुरक्षित उपयोग करना, चौथा स्तंभ जुड़ा है सैन्य सुरक्षा से, इसके लिए सभी देशों में आपसी सहयोग बहुत जरूरी है। वहीं दूसरी तरफ चीन हमेशा विकासशील और गरीब देशों के सामने अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखकर उन्हें अपने ऋण जाल में फंसा लेता है। ये देश चीन की गैर-पारदर्शी शर्तों को मानते हुए उससे ऋण ले लेते हैं। 

किशिदा की भारत यात्रा का समय भी बहुत कुछ कहता है क्योंकि जिस समय चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पुतिन से मिलने मॉस्को पहुंचे थे ठीक उसी समय किशिदा भारत में थे और भारत के साथ समझौते कर रहे थे। किशिदा चीन को यह दिखाना चाहते थे कि अगर तुम रूस के साथ गठबंधन करने जाओगे तो हम भी भारत के पास आएंगे जो तुम्हारा धुर विरोधी है और इस समय तुम्हें सीमा गतिरोध और आर्थिक क्षेत्र में पीछे छोड़ रहा है। चीन को सबक देने के लिए जरूरी है कि भारत और जापान सैन्य सहयोग के क्षेत्र में भी आगे बढ़ें, इससे चीन न सिर्फ डरेगा बल्कि अपनी आक्रामकता में भी कमी लाएगा और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के कानून का मजबूरी में ही सही लेकिन पालन जरूर करेगा। 


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