मोदी सिखों के जख्मों पर मरहम लगाने वाले एकमात्र प्रधानमंत्री

punjabkesari.in Wednesday, Jun 05, 2024 - 05:32 AM (IST)

कड़कती धूप तथा भीषण गर्मी के साथ-साथ जून का पहला हफ्ता पंजाब तथा विशेषकर सिख कौम के लिए कड़वीं यादें लेकर आता है। इस जून को हम साका नीला तारा की 40वीं बरसी मना रहे हैं। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थान श्री हरिमंदिर साहिब काम्पलैक्स को निशाना बनाकर एक बड़ी फौजी कार्रवाई का आदेश दिया गया था। इस विनाशकारी हमले ने हजारों की तादाद में निर्दोष नागरिकों का जानी नुकसान किया, जो पांचवीं पातशाही श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस को मनाने के लिए देश के कोने-कोने से दरबार साहिब में एकत्र हुए थे। इस फौजी कार्रवाई ने सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक श्री अकाल तख्त साहिब को तबाह कर दिया जिसे सेना द्वारा टैंकों तथा अन्य भारी हथियारों से निशाना बनाया गया था।

श्री अकाल तख्त साहिब की हुई बेअदबी वाली तस्वीर आज तक सामूहिक सिख मानसिकता को बेचैन करती है। श्री हरिमंदिर साहिब काम्पलैक्स को अतीत में विदेशी हमलावरों द्वारा निशाना बनाया गया था और अपमानित किया गया था जिनमें अहमद शाह अब्दाली भी शामिल था, जो मानते थे कि सिख इस पवित्र स्थान तथा ‘अमृत सरोवर’ से शक्ति प्राप्त करते हैं। मगर लोकतांत्रिक ढांचे में अपनी ही सरकार द्वारा गोलियों तथा मोर्टार से हमला करना सिख भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली ऐसी कार्रवाई थी, जो सिख मनों से कभी जा नहीं सकती।

कांग्रेस से कुछ वफादार आज तक भी इस न-माफी योग्य पाप के लिए ‘तर्क’ प्रदान करने की हिम्मत रखते हैं। मगर क्या समस्त भाईचारे तथा ऐसे घिनौने हमले के लिए कोई तर्क हो सकता है? इतिहासकारों तथा सत्ता के विभिन्न ओहदों पर मौजूद व्यक्तियों ने यह बात सामने लाई है कि साका नीला तारा के विकल्प इंदिरा गांधी को सुझाए गए थे, ऐसे विकल्प जिनसे धार्मिक स्थलों को कोई नुकसान नहीं होता या कम जानी नुकसान होता परन्तु इंदिरा गांधी ने उन सभी विकल्पों को रद्द करने का फैसला किया और इस निर्णय के साथ आगे बढ़ी जो श्री अकाल तख्त साहिब को अधिक से अधिक नुकसान के अलावा सिख मानसिकता को भी न पूरा होने वाला नुकसान पहुंचाने वाला था।

जून 1984 के बाद इसी संदर्भ में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली तथा उत्तरी भारत के अन्य शहरों की सड़कों पर निर्दोष सिखों का खुलकर कत्लेआम हुआ। 1984 की इस सिख नस्लकुशी के लिए जिम्मेदार लोगों को कांग्रेस की केवल सरपरस्ती ही नहीं मिली बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने यह भी सुनिश्चित किया कि मानवता के विरुद्ध अपराधों के दोषियों को किसी कानून का सामना न करना पड़े। इस तथ्य का जिक्र जूलियो एफ. रिबेरो ने अपनी पुस्तक ‘ए बुलेट फॉर ए बुलेट’ में किया है। कांग्रेस शासन के दौरान सिखों को इंसाफ की कोई झलक नहीं मिली बल्कि इसके विपरीत खौफनाक ‘काली सूचियों’ ने यह यकीनी बनाया कि विदेशों में रहते सिख अपनी मातृभूमि की ओर वापस न आ सकें।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के आने के साथ ही सिख कौम को 1984 के बाद पहली बार उम्मीद की किरण दिखाई दी। मोदी 1984 के कत्लेआम के लिए सिख कौम को इंसाफ दिलाने के वायदे के साथ सत्ता में आए थे। 10 वर्षों की सत्ता में मोदी ने यह साबित कर दिया है कि यह कोई कोरा चुनावी वायदा नहीं था और सिख कौम के साथ उनका संबंध प्रशंसनीय तथा सम्मानयोग्य है।

कांग्रेस पार्टी ने हमेशा 1984 की सिख नस्लकुशी को  ‘दंगे’ के तौर पर रद्द करने की कोशिश की। सिख कौम की यह लम्बे समय से मांग थी कि नवम्बर 1984 की घटनाओं को ‘नस्लकुशी’ के तौर पर मान्यता दी जाए। 2014 से पहले अपने चुनावी भाषणों में मोदी ने नवम्बर 1984 को ‘नस्लकुशी’ कहा है। कोई यह कह सकता है कि चुनावी भाषण रस्मी मान्यता से अलग होते हैं। मोदी ने फरवरी 2022 में संसद के फ्लोर पर कहा था कि नवम्बर 1984 के ‘नरसंहार’ के लिए कांग्रेस सीधे रूप से जिम्मेदार है।

विश्व सिख भाईचारे के दर्द को आवाज देने के लिए नरेंद्र मोदी भारत के इतिहास में पहले प्रधानमंत्री बनकर उभरे हैं। मोदी केवल शब्दों पर ही नहीं रुके, उनकी सरकार ने यह यकीनी बनाया कि सिख कौम के 1984 के कत्लेआम के लिए जिम्मेदार लोगों को कानून के अंतर्गत उनके अमानवीय कार्यों का पूरा परिणाम भुगतना पड़े। मोदी सरकार द्वारा कांग्रेस के क्लीनचिट देकर बंद किए मुकद्दमे पुन: खोल कर ठोस कानूनी लड़ाई लड़ते हुए कांग्रेस के सीनियर नेता सज्जन कुमार को 1-2 नवम्बर 1984 को निर्दोष सिखों के कत्लेआम में निभाई भूमिका के लिए उम्रकैद की सजा भुगतने के लिए मजबूर कर दिया।

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश की सरकार ने 2019 में एस.आई.टी. का गठन किया था जिस कारण कानपुर में सिख नस्लकुशी के दोष में 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। अगस्त 2023 में प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में बोलते हुए साका नीला तारा को ‘श्री अकाल तख्त साहिब पर हमला’ कह कर निंदा की थी। मोदी ने आप्रेशन नीला तारा तथा भारत में सिख नस्लकुशी के वृत्तांत को अकेले ही बदल दिया है, जिससे भारत के प्रधानमंत्री द्वारा सिख कौम की चिरलंबित मांग को मान्यता दी गई है।

मगर क्या हम कह सकते हैं कि इससे जून 1984 की घटनाओं का इंसाफ हो गया है? यकीनन नहीं। भारत सरकार को सिख कौम के प्रश्रों के जवाब देने चाहिएं। साका नीला तारा से संबंधित सरकारी दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए ताकि सच्चाई सामने आ सके। अब समय आ गया है कि भारत सरकार को सिख मानसिकता को ठेस पहुंचाने के लिए सिख कौम से रस्मी माफी मांगनी चाहिए। (मैनेजिंग डायरैक्टर, रेडियो इंडिया, सरी,कनाडा) -मनिंद्र गिल


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