क्या मोदी सरकार ‘पंजाब के साथ न्याय’ करेगी

punjabkesari.in Monday, Jul 15, 2019 - 04:15 AM (IST)

शिरोमणि अकाली दल (शिअद) स्वतंत्रता के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार भारी बहुमत से बनी दूसरी गैर-कांग्रेसी राजग गठबंधन सरकार में सांझीदार है। इसके अध्यक्ष एवं पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने संसद में अपने पहले बेबाकी भरे भाषण में केन्द्र सरकारों द्वारा पंजाब के साथ की जा रही धक्केशाही तथा नाइंसाफियों का तथ्यों व तर्कों सहित उल्लेख करके सभी को दांतों में उंगली दबाने को मजबूर कर दिया। विश्व इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो बार-बार जितने बड़े जुल्म, धक्केशाहियां, आर्थिक बर्बादियां तथा नस्लघात पंजाब की धरती पर हुई, अन्य कहीं नहीं हुई। इसके इतिहास का प्रत्येक पन्ना रक्तरंजित दास्तानों से लबरेज है। 

15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर किया गया था। विश्व इतिहास में देशों का बंटवारा तो कई बार हुआ लेकिन आबादी की बांट कभी नहीं हुई। मगर इस विभाजन में धार्मिक आधार पर जानलेवा बंटवारा हुआ। सिख अल्पसंख्यक समझते थे कि पाकिस्तान की बजाय भारत में उन्हें पूरी सुरक्षा, सम्मान तथा न्याय मिलेगा अत: उन्होंने हिन्दू भाइयों के साथ पाकिस्तान छोड़ कर भारत में आकर बसने का निर्णय लिया। इस धार्मिक बंटवारे ने पंजाब के 10 लाख हिन्दू, सिखों तथा मुसलमानों की बलि ली लेकिन स्वतंत्र भारत में पंजाब, पंजाबियों तथा विशेष करके सिख अल्पसंख्यकों पर एक योजनाबद्ध जुल्म, जबर, धक्केशाहियों, नाइंसाफियों तथा नस्लघात का दौर शुरू हुआ। ये वे लोग थे जिन्होंने देश की आजादी हेतु 80 प्रतिशत कुर्बानियां दी थीं। 

पंजाबी सूबे के लिए मोर्चा
भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों की बांट के लिए 1953 में गठित फजल अली आयोग ने पंजाब को नजरअंदाज कर दिया जिस कारण शिअद ने पंजाबी सूबे के गठन हेतु मोर्चा शुरू कर दिया। एक नवम्बर 1966 को गठित पंजाब से इसकी राजधानी चंडीगढ़, पंजाबी भाषी इलाके, दरियाई हैडवक्र्स का नियंत्रण तथा पानी आदि छीन लिए गए जिनकी आज तक कहीं सुनवाई नहीं हुई। 10-12 वर्षों के शासकीय तथा गैर-शासकीय आतंकवाद की त्रासदी में जहां 35000 पंजाबी मारे गए, वहीं 30-35 हजार सिख नौजवान झूठे पुलिस मुकाबलों में मार दिए गए। जून 1984 में आप्रेशन ब्लूस्टार और उसके बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्तूबर 1984 को हत्या के उपरांत दिल्ली सहित अनेक स्थानों पर सिखों का कत्लेआम किया गया। फिर बेरोजगारी के कारण लाखों नौजवान विदेशों में चले गए, जो यहां रह गए वे नशों के चंगुल में फंसे हुए हैं। 

पंजाब की अर्थव्यवस्था कंगाली का शिकार बनी हुई है। आज राज्य के सिर भारी कर्ज चढ़ा हुआ है। हालत यह है कि उसका ब्याज केन्द्र सरकार तथा एजैंसियों को चुकाने हेतु बाजार से कर्ज लेना पड़ता है। अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार द्वारा पड़ोसी पहाड़ी राज्यों को औद्योगिकीकरण के लिए नाममात्र कीमत पर जमीनें तथा टैक्स हॉलीडे देने के कारण पंजाब में आतंकवाद के कारण बर्बाद हुए बचे-खुचे उद्योग भी उन राज्यों की ओर पलायन कर गए। आज आर्थिक बदहाली तथा कर्जे के बोझ तले दबे रोज दो-तीन किसान तथा नशीले पदार्थों के शिकार दो-तीन नौजवान खुदकुशियां कर रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि कोई भी केन्द्र सरकार इसे आॢथक बदहाली से निकालने के लिए आगे नहीं आई। 

पंजाबी मंत्री व सांसद
आजादी के बाद केन्द्र सरकारों में कई पंजाबी मंत्री तथा संसद सदस्य रहे। ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति, डा. मनमोहन सिंह 10 साल प्रधानमंत्री रहे। बहुत थोड़े समय के लिए इन्द्रकुमार गुजराल भी प्रधानमंत्री रहे। गुजराल के अतिरिक्त किसी ने भी पंजाब को आॢथक बदहाली से बाहर निकालने का प्रयास नहीं किया। न ही जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, असम, आंध्र प्रदेश तथा नागालैंड आदि की तरह कोई पैकेज दिया। केन्द्र में पंजाब से संबंधित मंत्री या सांसद ने कभी भी संसद में बेधड़क होकर पंजाब की आर्थिक बदहाली तथा इसके साथ हुई नाइंसाफी की पूरी दास्तान बयान नहीं की ताकि सारा देश जान सकता। हां, सुखदेव सिंह ढींडसा, तरलोचन सिंह, भगवंत मान, प्रताप सिंह बाजवा, रवनीत बिट्टू आदि एकाध मुद्दों पर जरूर बोलते सुने जाते रहे। 

सुखबीर सिंह बादल ने अपने भाषण में प्रमुख चार मुद्दों को केन्द्र बिन्दू बनाया, पंजाब के साथ हो रही नाइंसाफियों की परतें खोलीं। उन्होंने मोदी सरकार तथा संसद को बताया कि पंजाब देश का एकमात्र बदकिस्मत राज्य है जिसकी कोई राजधानी नहीं। राज्यों के पुनर्गठन के समय राजधानी मूल राज्य को दी जाती रही है लेकिन पंजाब के साथ केन्द्र ने धक्का करते हुए ऐसा नहीं किया। राजधानी किसी भी राज्य की जी.डी.पी. 10 से 35 प्रतिशत हिस्सा डालती है। पंजाब से छीनी राजधानी और यहां स्थित उद्योगों के कारण उसकी वाॢषक जी.डी.पी. भी बिलियन डालरों में है। धक्के से इसको केन्द्र शासित राज्य बनाकर इसका राजस्व केन्द्र सरकारें ले जाती हैं। अत: यह नाइंसाफी समाप्त कर तुरंत चंडीगढ़ पंजाब को सौंपा जाना चाहिए। 

रिपेरियन कानून अनुसार जो दरिया जिस राज्य से निकलता है, उसके पानियों पर उसका पूरा हक होता है लेकिन पंजाब के दरियाओं का पानी छीन कर राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली को दिया गया है। पंजाब हरित क्रांति लाकर देश का अन्न भंडार बना और अनाज की पूर्ति की खातिर यह गेहूं तथा धान की बिजाई के कालचक्र में फंस गया। धान की फसल के लिए भूमिगत पानी इस्तेमाल करने लगा। राज्य में आज करीब 14 लाख ट्यूबवैल लगे हुए हैं, भूमिगत पानी 100 से 600 फुट नीचे चला गया है। परिणामस्वरूप, सैंट्रल ग्राऊंड वाटर बोर्ड की रिपोर्ट मुताबिक राज्य के 138 में 118 ब्लाक ‘डार्क जोन’ में आ गए हैं। फिर भी देश की धरती के 1.57 प्रतिशत हिस्से वाला यह राज्य केन्द्रीय अन्न भंडार में गेहूं का 45 तथा धान का 35 प्रतिशत हिस्सा डालता है। अगर यही हाल रहा तो अगले 20 सालों में पंजाब रेगिस्तान बन जाएगा। केन्द्र सरकार अन्य राज्यों को पानी के बदले पंजाब को रायल्टी दिलाए जैसे कि अन्य राज्य लोहे, कोयले, तेल, पत्थर की बिक्री पर लेते हैं। 

अति संवेदनशील राज्य
पंजाब अति संवेदनशील सीमांत राज्य है। इसकी 553 कि.मी. सीमा पाकिस्तान के साथ लगती है। आतंकवाद पर काबू पाने के लिए सीमा पर कांटेदार तार लगाने हेतु जो जमीन केन्द्र सरकार ने ली, उसका मुआवजा अभी मिलना बाकी है। तार के दूसरी ओर 220 गांवों के 11000 परिवारों की 21000 एकड़ जमीन है, जिस पर खेती के लिए बी.एस.एफ. से अनुमति पास लेने पड़ते हैं। इस दिक्कत को देखते हुए वाजपेयी सरकार ने वार्षिक 2500 रुपए प्रति एकड़ किसानों को देने की घोषणा की थी, जो कुछ समय बाद बंद कर दिया गया। हाईकोर्ट द्वारा 10000 रुपए प्रति एकड़ वार्षिक देने का जो फैसला सुनाया गया था, उसके अंतर्गत केन्द्र ने वर्ष 2014 तथा 2015 में देने के बाद बंद कर दिया।

आए दिन हैरोइन, स्मैक, चिट्टे की बड़ी खेपें पंजाब के माध्यम से पूरे देश में जाती हैं। अभी कुछ दिन पूर्व अटारी बार्डर पर 2700 करोड़ की हैरोइन नमक के बोरों में पकड़ी गई। केन्द्र या तो यह जमीन ले ले या किसानों को वार्षिक 20000 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा दे और नार्को आतंकवाद के साथ कड़े हाथों से निपटते हुए पंजाब के नौजवानों को नशों से निजात दिलाए।-दरबारा सिंह काहलों
 


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