‘तेल के भंवर में फंसी मोदी सरकार’

Wednesday, Feb 24, 2021 - 04:08 AM (IST)

प्रिय देशवासियो! आज देश तेल के मूल्यों की मार झेल रहा है। पैट्रोल और डीजल के दाम देश के अनेक भागों में 100 रुपए प्रति लीटर और 83 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं। वर्ष 2017 में जब से तेल कंपनियों को तेल के मूल्यों में दैनिक आधार पर संशोधन करने की अनुमति दी गई है तब से तेल के दामों में निरंतर वृद्धि हो रही है और पिछले 15 दिनों में पैट्रोल और डीजल के दामों में निरंतर वृद्धि की गई है जिससे आत्मनिर्भर भारत में आम आदमी की समस्याएं और बढ़ी हैं। 

किंतु इसका सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने इसे धर्म संकट कहा है। आम जनता को खुश करने के लिए तेल के दामों में कटौती के अलावा इसका कोई समाधान नहीं है। इस संबंध में केन्द्र और राज्यों को पैट्रोल और डीजल के दामों को उचित स्तर पर लाने के लिए मिलकर कार्य करना होगा। पैट्रोलियम मंत्री प्रधान ने इसका कारण लाभ अर्जित करने के लिए विनिर्माता देशों द्वारा तेल के उत्पादन में कटौती बताया है। 

विपक्ष ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की तथा सरकार से कहा कि तेल के दामों में कटौती की जाए किंतु वह इसमें विफल रही क्योंकि उसकी अधिकतर आलोचना सोशल मीडिया तक सीमित रही और जमीनी स्तर पर उसे इस मुद्दे पर समर्थन नहीं मिला। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और उनकी मंडली ने इसका कारण आर्थिक कुप्रबंधन कहा। उन्होंने कहा सरकार को राजधर्म का पालन करना चाहिए तथा तेल के दामों में वृद्धि को वापस लेना चाहिए। साथ ही अपने आर्थिक कुप्रबंधन के लिए इसे पिछली सरकारों को दोष देना बंद करना चाहिए। 

तथापि आम जनता की चिंता के संबंध में उनके ये उद्गार केवल दिखावा हैं क्योंकि कोई भी सरकार आम आदमी की जिंदगी में वास्तविक बदलाव नहीं चाहती है जो आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया की मार झेल रहा है और न केवल पैट्रोल और डीजल अपितु फल, सब्जी, आटा, दाल, चीनी, तेल आदि के दामों में वृद्धि की मार भी झेल रहा है। आप इसे राजनीति का अर्थशास्त्र कह सकते हैं। हमारे नेताआें का मानना है कि लोग गतिशीलता चाहते हैं और यदि वे चीखें-चिल्लाएं फिर भी वे आगे बढऩे के लिए कोई भी काम करने के लिए तैयार रहते हैं। 

नेता भूल जाते हैं कि पैट्रोल और डीजल पर लगाए गए कर सरकार के लिए दुधारु गाय की तरह हैं। केन्द्र और राज्य दोनों सरकारों ने पैट्रोल और डीजल पर भारी कर लगाया है। हैरानी की बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में कटौती के बावजूद खुदरा बाजार में इसके दाम बढ़ रहे हैं। पैट्रोल के मूल्य में 61 प्रतिशत और डीजल के मूल्य में 56 प्रतिशत कर लगाया गया है और शेष 40 प्रतिशत कच्चे तेल का दाम है। 

पैट्रोल पर लगाए गए कुल 63 रुपए में से 32$90 रुपए प्रति लीटर और डीजल में 31$80 रुपए प्रति लीटर केन्द्र सरकर के कर हैं और इन करों में राज्यों का हिस्सा 25 रुपए प्रति लीटर है। इसके अलावा केन्द्र सरकार ने उत्पाद शुल्क पर विभिन्न प्रकार के उपकर भी लगाए हैं। पैट्रोलियम उत्पादों की खपत के 60 प्रतिशत के लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकारी अधिकारी अपने कार्य स्थल पर जाने के लिए सरकारी वाहन का उपयोग करते हैं और जब वह अपने कार्यालय में होते हैं तो उसकी सरकारी गाड़ी को वापस उसके घर उसके बच्चों को स्कूल से लाने-ले जाने, उसकी पत्नी की शापिंग कराने, उसके बाद फिर बच्चों को ट्यूशन आदि पहुंचाने के लिए किया जाता है। उसके बाद शाम को जब अधिकारी घर जाता है तो बच्चों के साथ रात्रि भोज या मनोरंजन के लिए बाहर जाते हैं और यह सब कुछ करदाताआें की कीमत पर किया जाता है। 

आज स्थिति एेसी बन गई है कि कुछ लोग सस्ता तेल खरीदने के लिए दूर की यात्राएं कर रहे हैं या पड़ोसी देशों से इसकी स्मगलिंग कर रहे हैं। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के अररिया और किशनगंज क्षेत्र के लोग तेल की स्मगङ्क्षलग के लिए नेपाल गए। वास्तव में मेरा भारत महान है। भारत अपनी आवश्यकता का 85 प्रतिशत तेल और 53 प्रतिशत गैस का आयात करता है। पैट्रोल और डीजल के दामों को क्रमश: 2010 और 2014 में विनियंत्रित किया गया किंतु यह विनियंत्रण केवल कागजों पर था। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार तेल के भंवर में फंस चुकी है।-पूनम आई. कौशिश

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