लोगों के मनों में उठते प्रश्नों के जवाब नहीं दे सके मोदी

Thursday, Aug 23, 2018 - 01:26 AM (IST)

क्या लाल किले और चांदनी चौक में फासला बढ़ रहा है? 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का भाषण सुनते वक्त यह सवाल बार-बार मेरे जहन में कौंध रहा था। टी.वी. पर विपक्षी नेता और कई एंकर शिकायत कर रहे थे- प्रधानमंत्री का भाषण बहुत राजनीतिक है। मुझे इसकी चिंता नहीं थी। स्वतंत्रता दिवस को प्रधानमंत्री का भाषण राजनीतिक होता है, होना भी चाहिए। यह भाषण प्रधानमंत्री के लिए एक मौका है देश की जनता को अपने राजकाज का लेखा-जोखा देने का। इसमें एतराज क्यों होना चाहिए?

मेरी चिंता कुछ और थी। क्या प्रधानमंत्री अपने भाषण में उन सवालों का जवाब दे रहे हैं जो जनता के मन में हैं? कुछ ही दिन बाद मुझे एक प्रमाण मिल गया जिसने मेरे संदेह को और भी पुख्ता कर दिया। ‘इंडिया टुडे’ और ‘आज तक’ ने कारवी एजैंसी के साथ अपना छमाही राष्ट्रीय जनमत सर्वेक्षण जारी किया। देशभर में 12 हजार के एक प्रतिनिधि सैंपल से बात कर यह ‘मूड ऑफ  द नेशन सर्वे’ हर 6 महीने बाद हमारे सामने जनमत का आईना पेश करता है। इस बार का सर्वेक्षण यह प्रमाणित करता है कि देश के शासकों के मन की बात और देश की जनता के मन की बात में कितना बड़ा फासला है।

सर्वे के मुताबिक, देश की जनता की सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी है। पिछले साल भर में बेरोजगारी को देश की सबसे बड़ी समस्या बताने वालों की संख्या 27 प्रतिशत से बढ़कर 34 प्रतिशत हो गई है। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या सरकार के प्रयास से पिछले 4 सालों में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं या नहीं, तो सिर्फ 14 प्रतिशत ने सकारात्मक उत्तर दिया जबकि 60 प्रतिशत ने कहा कि रोजगार की हालत पहले से खराब हुई है। यही नहीं, जब इस सर्वे में लोगों से मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बताने को कहा गया तो भी नम्बर एक पर बेरोजगारी का नाम आया।

यानी सिर्फ नौजवान ही नहीं बल्कि पूरा देश बेरोजगारी के सवाल पर ङ्क्षचतित है। लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने इस चिंता को पहचाना था और 2 करोड़ नौकरियां प्रतिवर्ष देने का वादा किया था। वह दिन है और आज का दिन, 2 करोड़ नौकरियों का तो जिक्र भी प्रधानमंत्री नहीं करते। कभी पकौड़े तलने की नौकरी का दावा करते हैं, कभी मुद्रा योजना, भविष्य निधि के आंकड़ों को मसलकर उससे रोजगार वृद्धि के निष्कर्ष निकालने की चेष्टा करते हैं। सब कुछ करते हैं, लेकिन रोजगार के सीधे-सपाट आंकड़े देश के सामने नहीं रखते। और तो और जो लेबर ब्यूरो का सर्वे यह आंकड़ा इकट्ठा किया करता था उसे भी बंद करवा दिया है। लाल किले की प्राचीर से अपने कार्यकाल के अंतिम भाषण में प्रधानमंत्री ने देश की सबसे बड़ी चिंता पर एक शब्द भी नहीं बोला।

सर्वे के मुताबिक देश की दूसरी सबसे बड़ी चिंता है महंगाई। यह चिंता भी पिछले एक साल में 19 प्रतिशत से बढ़कर अब 24 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इस पर भी प्रधानमंत्री लाल किले से चुप्पी साध गए। उन्हें अर्थशास्त्रियों ने बता दिया होगा कि मनमोहन सिंह सरकार की तुलना में इस सरकार के कार्यकाल में मुद्रास्फीति की दर कहीं कम रही है। बात सही भी है लेकिन जब लोगों से पूछा जाता है कि पिछले 4 सालों में महंगाई का क्या हाल है तो 70 प्रतिशत कहते हैं कि महंगाई बढ़ी है और सिर्फ  11 प्रतिशत कहते हैं कि महंगाई में कमी आई है।

सच यह है कि जब आम आदमी महंगाई की शिकायत करता है तो वह सिर्फ मुद्रास्फीति की बात नहीं कर रहा होता। वह यह शिकायत कर रहा होता है कि उसकी जरूरत की वस्तुएं उसकी जेब से बाहर हो गई हैं। वह सिर्फ  बाजार में भाव की शिकायत नहीं कर रहा बल्कि अपनी आय की कमी को दर्ज कर रहा है।

इस सर्वे के मुताबिक अपनी आर्थिक स्थिति को पहले से बदतर बताने वालों का अनुपात पिछले एक साल में 13 प्रतिशत से बढ़कर अब 25 प्रतिशत हो गया है। जी.एस.टी. से फायदा हुआ, यह बताने वालों से ज्यादा संख्या उनकी है जो कहते हैं कि उन्हें नुक्सान हुआ। शुरू में नोटबंदी लोकप्रिय हुई थी लेकिन उसे अच्छा बताने वाले सिर्फ 15 प्रतिशत हैं और बुरा बताने वाले 73 प्रतिशत। जाहिर है प्रधानमंत्री नोटबंदी पर भी चुप्पी साध गए।

देश की जनता की तीसरी सबसे बड़ी चिंता भ्रष्टाचार की है। यहां भी पिछले 4 सालों में सरकार की कारगुजारी से जनता संतुष्ट नहीं है। सिर्फ 23 प्रतिशत लोग कहते हैं कि भ्रष्टाचार घटा है, 28 प्रतिशत मानते हैं कि वह जस का तस है और 48 प्रतिशत कहते हैं कि पिछले 4 साल में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। प्रधानमंत्री और उनके समर्थक बार-बार कहते थे कि पिछले 4 सालों में कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आया।

विरोधी कहते थे कि सरकार ने सी.ए.जी., सतर्कता आयुक्त और न्यायपालिका तक पर पहरे डाल रखे हैं तो कोई घोटाला बाहर कैसे आएगा। इसलिए बिरला-सहारा डायरी का मामला चुपचाप दफन हो गया लेकिन अब जबकि फ्रांस से राफेल विमान की खरीद में बड़े घोटाले का आरोप सामने आया है तो यह अपेक्षा थी कि प्रधानमंत्री इस मामले का पूरा सच देश के सामने रखते। उन्होंने ऐसा नहीं किया। अविश्वास प्रस्ताव के समय यह सवाल संसद में उठा था। तब भी प्रधानमंत्री दो-चार वाक्य बोल कर टाल गए थे। रक्षा मंत्री जितना बोलीं, उससे आरोप और भी ज्यादा गंभीर नजर आए। भ्रष्टाचार का सवाल उठ रहा है लेकिन जवाब नहीं मिल रहा।

इस सर्वे के मुताबिक देश की चौथी बड़ी चिंता किसानों की आत्महत्या और कृषि के संकट की है। इसका आंकड़ा और भी बढ़  सकता था लेकिन कई किसानों ने अपनी समस्या को बेरोजगारी या महंगाई के तहत बताया होगा। इस सवाल पर प्रधानमंत्री खूब बोले लेकिन अफसोस, जितना बोले अर्धसत्य बोले। उन्होंने एक बार फिर यह झूठ दोहराया कि किसानों को उनकी मांग के अनुरूप पूरी लागत का ड्योढ़ा न्यूनतम समर्थन मूल्य दे दिया गया है, जबकि सच यह है कि सरकार ने आंशिक लागत पर ड्योढ़ा दाम घोषित किया है। प्रधानमंत्री ने गिनाया कि 99 बड़ी सिंचाई योजनाओं पर काम चल रहा है, लेकिन यह नहीं बताया कि उनमें से आधी से ज्यादा समय सीमा के बाद भी अधूरी पड़ी हैं। उन्होंने कृषि में निर्यात बढ़ाने का संकल्प जताया, मगर यह नहीं कबूला कि उनके शासनकाल में कृषि का निर्यात गिर गया है। उन्होंने किसानों की आय दोगुनी करने का जुमला दोहराया लेकिन यह नहीं बताया कि पिछले 4 सालों में किसानों की आय वास्तव में कितनी बढ़ी है?

टी.वी. पर इस सर्वे की सारी चर्चा सिर्फ इस पर सिमट गई कि भाजपा को कितनी सीटें आ सकती हैं, किस गठबंधन की जरूरत होगी और महागठबंधन की क्या संभावनाएं हैं लेकिन मुझे इसमें कम दिलचस्पी थी। मुझे इस जनमत सर्वेक्षण में दिख रहे जनमत के आईने में दिलचस्पी थी। मुझे चिंता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि लाल किले के सरकारी बोल और चांदनी चौक में खड़ी जनता के कान में फासला बढ़ता जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि प्रधानमंत्री का भाषण सुनते वक्त उनकी बातों से ज्यादा जनता को उनकी चुप्पी याद रहेगी?   -योगेंद्र यादव

Yaspal

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