ट्रम्प की तुलना में अधिक ‘संयम’ से काम लेते हैं मोदी

Sunday, May 21, 2017 - 11:53 PM (IST)

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गत वर्ष चुनाव जीतने के लिए अपने ऐतिहासिक अभियान दौरान बहुत बड़े-बड़े वायदे किए थे। इनसे सबसे अधिक रोचक यह था कि वह ‘दलदल को सुखा देंगे।’ इसका अभिप्राय: यह था कि वह वाशिंगटन की सफाई करेंगे जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसे दलदलीय इलाके में ही बसाया गया था। 

यह दावा बहुत उपहासजनक लगता है क्योंकि ट्रम्प न तो राजनीति में कोई कार्यकुशलता रखते हैं और न ही गवर्नैंस में। चुनावी प्रचार दौरान उन्हें ऐसे प्रस्तुत किया गया था जैसे वह अनूठी तरह के ‘जीनियस’ हों लेकिन व्हाइट हाऊस में उनके प्रथम कुछ महीनों ने यह दिखा दिया है कि वह एक विदूषक से बढ़कर कुछ नहीं और वह भी ऐसा विदूषक जो बेवजह  घमंड और क्रोध का शिकार रहता है तथा अपने प्रशासन पर न्यूनतम नियंत्रण बनाने के भी योग्य नहीं। वैसे तो ऐसी बातें स्पष्ट रूप में दिखाई नहीं देतीं लेकिन जिस प्रकार रोजाना ट्वीट करना ट्रम्प की जीवनशैली बन चुका है उससे उनके व्यवहार की विचलन बहुत विराट रूप में दिखाई देने लगी है। 

वह लगातार दूसरों को अपनी राय पेश करते रहते हैं और बहुत उत्तेजना की स्थिति में रहते हैं। उन्हें विस्मयजनक प्रयुक्त करने का जरूरत से अधिक ही शौक है और इस प्रकार वह उन लोगों का काम काफी कठिन कर देते हैं जिन पर उनकी छवि निखारने की जिम्मेदारी है। इस मामले में ट्रम्प हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एकदम विपरीत हैं। वैसे तो नरेन्द्र मोदी भी ट्विटर के बहुत दीवाने हैं लेकिन वह इसे ट्रम्प की तुलना में बहुत ही अलग ढंग से  प्रयुक्त करते हैं। 

दोनों ही नेताओं के 3-3 करोड़ से अधिक फालोअर हैं और दोनों ही अपने मतदाताओं तक सीधी पहुंच बनाने के लिए सोशल मीडिया को प्रयुक्त करते हैं। इसका कारण यह है कि दोनों ही पत्रकारों पर अधिक भरोसा नहीं करते। ट्रम्प का तो यह मानना है कि पत्रकार उनके साथ न्याय नहीं करते और उनकी अतुल्य प्रतिभा को न तो मान्यता ही दी जाती है और न ही उनके विरोधी तथा मीडिया इसकी प्रशंसा करते हैं। दूसरी ओर मोदी का मानना है कि उनके इतिहास को साम्प्रदायिक हिंसा से दागदार करके उनके विरुद्ध प्रयुक्त किया जाता है जबकि उन्होंने कोई भी गलती नहीं की। 

सोशल मीडिया लगातार उदीयमान है और यह सिलसिला गुजरात में मोदी के पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरू हुआ था। मोदी को लगा कि यह अपने और मतदाताओं के बीच मीडिया को अप्रासंगिक बनाने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है और उन्होंने इस काम को बहुत ही प्रभावी ढंग से अंजाम दिया। जब तक ट्विटर नहीं आया था उनका पत्रकारों के साथ लगातार पंजा लड़ता रहता था। यहां तक कि करण थापर के साथ एक सीधे प्रसारित हो रहे साक्षात्कार के दौरान वह इतने गुस्से में आ गए कि उठ कर ही चले गए थे। यह इस बात का प्रमाण है कि उन्हें  ट्रम्प की तरह गुस्सा और खीझ आती है लेकिन अब वह इसे बहुत अलग ढंग से हैंडल करते हैं। 

दोनों महानुभावों के ट्विटर प्रयुक्त करने के तरीके में अंतर सर्वप्रथम विषय वस्तु की भिन्नता के कारण पैदा होता है। ट्रम्प अक्सर ही किसी न किसी विषय पर अपने विचार प्रकट करते रहते हैं और अपना गुस्सा या नाराजगी व्यक्त करने से डरते नहीं।   18 मई को उनके अपने ही न्याय विभाग ने रूसियों के साथ उनके चुनाव अभियान के कथित संबंधों  के मुद्दे पर जांच पड़ताल शुरू कर दी। इस पर ट्रम्प ने ट्वीट किया : ‘‘अमरीकन इतिहास में यह किसी राजनीतिज्ञ  के विरुद्ध बदलाखोरी का इकलौता और सबसे बड़ा उदाहरण है।’’ 

उन्होंने खुद की अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति से भी तुलना की और कहा कि उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं हो रहा : ‘‘किं्लटन और ओबामा प्रशासनों के दौरान जितने भी अवैध काम हुए उनके संबंध में तो कभी भी इस प्रकार के विशेष जांचकत्र्ता की नियुक्ति नहीं की गई।’’ ट्रम्प का व्यवहार अशिष्टता भरा होता है और वह अपने ट्विटर अकाऊंट के माध्यम से पत्रकारों तथा अन्य लोगों पर हल्ला बोलने से नहीं झिझकते। 12 मई को ट्रम्प ने ट्वीट किया, ‘‘जालसाज मीडिया रात-दिन सक्रिय है।’’ 

यह कहा जा सकता है कि ट्रम्प का इस प्रकार का व्यवहार उनके ईमानदार होने का सबूत है। फिर भी यह निर्णय करना मुश्किल है कि इस प्रकार का बचकाना व्यवहार क्या किसी ढंग से ट्रम्प की सहायता करेगा। यही वह बिन्दु है जिस पर मोदी  ट्रम्प से एकदम अलग हैं। मैं कह चुका हूं कि दोनों व्यक्ति मीडिया के बारे में एक जैसी भावना रखते हैं लेकिन मोदी औपचारिक संवाद के दौरान बहुत अधिक संयम से काम लेते हैं। उनकी ट्विटर ‘फीड’ आमतौर पर दिन भर में किए जाने वाले कामों की सूची मात्र होती है। 

उदाहरण के तौर पर 19 मई को उन्होंने ट्वीट किया : ‘‘आज मैंने नागालैंड जनजाति परिषद के एक शिष्टमंडल के साथ बातचीत की।’’ या फिर  अपने ट्वीट में मोदी  लोगों, और खासतौर पर अन्य राजनीतिज्ञों को उनके जन्मदिवस पर शुभकामनाएं देते हैं। जैसे कि 17 मई का उदाहरण देखिए: ‘‘किसानों के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री श्री एच.डी. देवेगौड़ा को उनके जन्मदिवस पर शुभकामनाएं। भगवान उनको स्वस्थ और लम्बी आयु प्रदान करे।’’ और 19 मई को  उन्होंने ट्वीट किया : ‘‘प्रिय राष्ट्रपति ञ्च अशरफ गनी, काश आपका जन्मदिन बहुत आश्चर्य चकित करने वाला हो। खुदा आपको लम्बी आयु तथा स्वस्थ जीवन प्रदान करे।’’ 

मोदी नीतिगत घोषणाओं की विज्ञापनबाजी भी ट्वीट के माध्यम से करते हैं। हालांकि वह सामान्यत: अपने ट्वीटों को समाचारपत्रों में छपी रिपोर्टों की बजाय अपनी सरकारी वैबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्टों से लिंक करते हैं। उनकी ट्विटर फीड पढ़कर यह अनुमान लगाना असंभव है कि भारत के प्रधानमंत्री के दिमाग में क्या चल रहा है जबकि अमरीकी राष्ट्रपति के मामले में ऐसा नहीं है। पत्रकार तो बहुत आसानी से यह भी अंदाजा लगा लेते हैं कि ट्रम्प कौन-से टी.वी. चैनल देखते हैं क्योंकि टी.वी. देखने के तुरन्त बाद ही वह इस पर प्रतिक्रिया दिखाते हुए ट्वीट जारी कर देते हैं। 

ट्रम्प और मोदी दोनों ही व्यवस्था को स्वच्छ बनाने के वायदे लेकर राजनीति में आए हुए अजनबी व्यक्ति हैं। एक तो 3 वर्ष से अधिक समय से अपने इस काम में जुटा हुआ है जबकि दूसरे को अभी मुश्किल से 3 महीने हुए हैं लेकिन ट्रम्प को न केवल विफलताओं के साथ जोड़ा जा रहा है बल्कि अधिकतर लोगों द्वारा उन्हें एक अक्षम व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। ऐसे लोगों में कुछ तो उनके अपने ही समर्थक, दूसरी ओर मोदी ने भी गलतियां की हैं तथा जरूरत से अधिक बड़े वायदे किए हैं। फिर भी उनकी सतर्क और संयम पूर्ण पहुंच ने उन्हें आलोचना के विरुद्ध एक कवच उपलब्ध करवाया हुआ है। ट्रम्प हर रोज बच्चों की तरह रूठने की नौटंकी करते हैं और छाती पीट कर दुहाई देते हैं कि किस प्रकार लोग उनके विरुद्ध काम कर रहे हैं और उनसे दुव्र्यवहार करते हैं। विश्व के सबसे शक्तिशाली पद पर बैठे व्यक्ति  का ऐसा व्यवहार बहुत परेशान करने वाला है।

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