शरर्णाथियों के कारण मुसीबत में मिजोरम

punjabkesari.in Monday, Aug 28, 2023 - 06:14 AM (IST)

मणिपुर  में बीते 100 दिनों से चल रही ङ्क्षहसा ने करीबी राज्य मिजोरम की दिक्कतें और बढ़ा दी हैं। जहां भी कुकी लोगों को खतरा लग रहा है वे पलायन कर करीबी राज्य में चले  जा रहे हैं। म्यांमार में लम्बे समय से चल रही अशांति से उपजे पलायन का बोझ तो पहले से ही मिजोरम उठा रहा था एक तो शरणार्थियों का आर्थिक और सामाजिक बोझ, दूसरा  इस इलाके में उभरती सामरिक और आपराधिक दिक्कतें। विदित हो भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की सीमा है जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा हिस्सा है।

मिजोरम के 6 जिलों की कोई 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से लगती है और अधिकांश खुली हुई है। महज 12.7 लाख के आबादी वाले  छोटे से राज्य मिजोरम में इस समय म्यांमार और बांग्लादेश से आए 40,000 से अधिक  शरणार्थी शरण पाए हुए हैं। कोविड और केंद्र सरकार से मिलने वाले केन्द्रीय कर का हिस्सा न मिलने के कारण राज्य सरकार पर पहले से ही वित्तीय संकट मंडरा रहा है। हजारों शरर्णाथियों के आवास, भोजन और अन्य व्यय पर राज्य सरकार को 3 करोड़ रुपए हर महीने खर्च करने पड़ रहे हैं और इसके चलते बहुत से सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पैंशन का सही समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है।

पिछले साल अगस्त-सितम्बर में भी जब म्यांमार में  सुरक्षा बलों और  भूमिगत  संगठन अरकान आर्मी के बीच खूनी संघर्ष हुआ था तो  सैंकड़ों शरणार्थी भारत की सीमा में लावंग्तालाई जिले में वारांग और उसके आसपास के गांवों आ गए थे। लावंग्तालाई जिले में ही कोई 5909 शरणार्थी हैं। चम्फाई और सियाहा जिलों में इनकी बड़ी संख्या है। राज्य के गृह मंत्री लाल्चामालियान्न विधान सभा में बता चुके  हैं कि राज्य में इस समय 35 हजार म्यांमार के शरणार्थी हैं और इनमें से 30,177 लोगों को कार्ड भी जारी कर दिए गए हैं।

इसके अलावा चटगांव पहाड़ी (बांग्ला देश) में शांति के कारण कोई एक हजार लोग वहां के हैं। 12,600 शरणार्थी अभी तक मणिपुर से पहुंच चुके हैं। आज यहां  शरणाॢथयों की वैध संख्या 50,000 हो चुकी है। हाल ही में राज्य सरकार  ने बताया है कि बढ़ते शरणाॢथयों का बोझ अब वहां सरकारी विद्यालयों पर पड़ रहा है। अभी कोई 8100 शरणार्थी बच्चे यहां के स्कूल्स में हैं। इनमें 6366 म्यांमार के, 250 बांग्लादेश और  1503 मणिपुर से हैं। इन बच्चों के लिए मिड डे मिल से ले कर किताबों तक का अतिरिक्त बोझ राज्य सरकार पर है।

पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनीतिक संकट के चलते हमारे देश में हजारों लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं।  यह तो सभी  जानते हैं कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को ‘शरणार्थी’ का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है। यही नहीं भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

हमारे यहां शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहां की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है इसलिए उन्हें अपनी जान बचाने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी। लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यांमार से शरर्णाथियों का संकट बढ़ रहा है।

उधर असम में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में  सक्रिय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन  शरर्णाथियों की आड़ ले रहे हैं। यह बात भी उजागर है कि पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय कई अलगाववादी संगठनों के शिविर और ठिकाने म्यांमार में  ही हैं और चीन के रास्ते उन्हें इमदाद मिलती है। ऐसे में असली शरणार्थी और संदिग्ध में विभेद का कोई तंत्र विकसित हो नहीं पाया है और यह अब देश की सुरक्षा का मुद्दा भी है। गौर करना होगा कि पिछले कुछ महीनों में राज्य पुलिस ने 22.93 किलोग्राम हैरोइन और 101.26 किलोग्राम मेथामफेटामाइन की गोलियों सहित विभिन्न ड्रग्स बरामद किए हैं, जिनकी कुल कीमत 39 करोड़ है।

भारत के लिए यह विकट  दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आए रोहिंग्या के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं-यही नहीं रोहिंग्या के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बौद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के समर्थक बन गए हैं। म्यांमार से आ रहे शरणाॢथयों का यह जत्था केन्द्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है। असल में केन्द्र नहीं चाहता कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहां आकर बसे क्योंकि रोहिंग्या के मामले में केन्द्र का स्पष्ट नजरिया है लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर  शरणाॢथयों से दुव्र्यवहार करने के आरोप से  दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती है।

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोर्नाथान्ग्मा इस बारे में एक खत लिख कर बता चुके हैं कि-यह महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है। यह लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन चुका  है। मिजोरम सरकार केन्द्रीय गृह मंत्रालय को स्पष्ट बता चुकी है कि वह म्यांमार में शांति स्थापित होने तक किसी भी शरणार्थी को जबरदस्ती  सीमा पर नहीं धकेलेगी। जब विदेश के शरणाॢथयों को वापस नहीं भेजा जा सकता तो अपने ही देश के दूसरे राज्यों के लोगों को तो रोक सकते नहीं। -पंकज चतुर्वेदी


सबसे ज्यादा पढ़े गए