बहुत याद आए नरसिम्हा राव
punjabkesari.in Saturday, Sep 23, 2023 - 05:13 AM (IST)

संसद के इतिहास में 18 सितम्बर 2023 का दिन हमेशा याद रहेगा जब इस बिल्डिंग में आखिरी बार लोकसभा तथा राज्यसभा के अंतिम सैशन किए गए। 1926 में अंग्रेजी साम्राज्य के दौरान इसे बनाया गया था। अंतिम दिन दोनों सदनों में सांसदों को बिना किसी रोक-टोक के अपने विचार रखने का मौका दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में लोकतंत्र परम्परा का वर्णन किया। बहुत अर्से बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू सहित उन सभी नेताओं का धन्यवाद किया गया जिन्होंने भारत का संविधान बनाया था।
इस कार्रवाई में सभी देशवासियों को सुनकर यह प्रसन्नता हुई कि पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को याद किया गया क्योंकि उन्होंने भारत की आॢथक अवस्था को गहराई से निकाल कर शिखर पर पहुंचा दिया था। आमतौर पर यह बात लोगों को कम ही याद है।
1984 में सैन्य कार्रवाई के बाद पंजाब में राष्ट्रपति शासन बहुत देर तक लगा रहा। 1985 में राजीव गांधी-लौंगोवाल समझौता हुआ जिस कारण पंजाब असैंबली के चुनाव हुए। सुरजीत सिंह बरनाला मुख्यमंत्री बने। जून 1987 में बरनाला सरकार तोड़ दी गई और फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया जो लगातार 5 वर्ष चला। जब जनरल मल्होत्रा पंजाब के राज्यपाल थे तो 1991 में पंजाब विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों ने अपने नामांकन पत्र दाखिल कर दिए और सारी कार्रवाई आरंभ हो गई। उस समय आतंकियों ने कई उम्मीदवारों को मौत के घाट उतार दिया। नरसिम्हा राव 1991 में भारत के प्रधानमंत्री बने थे। कांग्रेस पार्टी के कहने पर भारत सरकार ने पंजाब के विधानसभा चुनावों को रोकने की घोषणा कर दी। राज्यपाल मल्होत्रा ने विरोध स्वरूप अपना इस्तीफा दे दिया और पंजाब में फिर से राष्ट्रपति शासन एक साल के लिए बढ़ा दिया गया।
1992 में भारत सरकार ने पंजाब विधानसभा चुनावों की घोषणा कर दी। उस समय आतंकी समूहों ने अकाल तख्त पर बैठक बुलाई जिसमें स. प्रकाश सिंह बादल भी शामिल हुए और यह फैसला लिया गया कि चुनावों का बायकाट किया जाएगा। चुनाव हुए मगर केवल कांग्रेस पार्टी जिसके अध्यक्ष स. बेअंत सिंह थे, ने पूरा हिस्सा लिया। चुनावों में कांग्रेस जीत गई मगर उसे 17 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया जिसका अर्थ यह है कि समस्त पंजाब ने इस चुनावों का बायकाट किया। बेअंत सिंह मुख्यमंत्री बन गए मगर विरोध गांवों में चलता रहा। आतंकी लहर आगे से भी ज्यादा तीव्र हो गई और पुलिस मुकाबलों में मरने वालों की गिनती बढ़ती गई। उस समय के.पी.एस. गिल पुलिस प्रमुख थे। आतंकियों ने बड़े-बड़े पुलिस अधिकारी भी मारे और पंजाब में खूनी संघर्ष का वर्णन समाचार पत्रों में बढ़-चढ़ कर पेश होता रहा।
एक ऐतिहासिक कार्रवाई जिसका मैं गवाह हूं, वह पाठकों के समक्ष रखना चाहता हूं। स. हरचरण सिंह अजनाला, स्पीकर पंजाब का जनवरी 1994 में देहांत हो गया तथा अजनाला असैंबली सीट खाली हो गई। गिद्दड़बाहा और नकोदर क्षेत्र के एम.एल.ए. भी इलैक्शन पटीशन में से हट गए। उस समय नरसिम्हा राव ने मुझे बुलाया और कहा कि वह पंजाब में अमन-शांति लाने में अकाली पार्टी की मदद चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि अकाली पार्टी असैंबली का बायकाट छोड़ दे और इन तीन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को खड़ा कर दे। नरसिम्हा राव अकालियों को विश्वास देना चाहते थे कि इन चुनावों में पंजाब सरकार कोई दखलअंदाजी नहीं करेगी और निष्पक्ष चुनाव करवाए जाएंगे।
उन्होंने मुझे चंडीगढ़ भेजा और मैं प्रकाश सिंह बादल को उनके घर मिला। मैंने उन्हें प्रधानमंत्री का संदेश दिया और उन्हें पूरा विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया। उन्हें टैलीफोन पर नरसिम्हाराव से बात करवाने के लिए कहा। टैलीफोन पर प्रधानमंत्री आ गए और उन्होंने सारी बात बताई कि बादल साहब मेरे पास बैठे हैं और उन्हें आपका संदेश दे दिया है। प्रधानमंत्री ने खुद बात करनी चाही मगर बादल ने इंकार कर दिया। इसके बावजूद नरसिम्हाराव ने ऊंची आवाज में बादल साहब को अपील की कि चुनाव लड़ा जाए और इसी से अकाली दल और पंजाब दोनों को फायदा है। उन्होंने कहा कि यदि अकाली यह चुनाव जीत जाएं तो 1997 के विधानसभा चुनावों में अकालियों का रास्ता खुल सकता है। प्रकाश सिंह बादल ने मुझे कहा कि वह टैलीफोन पर बात नहीं करना चाहते थे और तुरन्त फैसला नहीं ले सकते थे। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि वह अपने साथियों के साथ विचार-विमर्श कर आगे की घोषणा करेंगे।
इतिहास गवाह है कि 1994 को अजनाला सीट से अकाली डा. रतन सिंह अजनाला जीत गए और गिद्दड़बाहा सीट से मनप्रीत सिंह बादल ने जीत हासिल की मगर कुलदीप सिंह वडाला नकोदर से सीट हार गए। सारे पंजाब में अकालियों के जीत के जश्न मनाए गए और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह मायूस हुए। इस तरह अकालियों का असैंबली बायकाट टूट गया। नरसिम्हा राव ने अपना वायदा पूरा किया और चुनाव निष्पक्ष हुए। इसी उत्साह में जब 1997 में विधानसभा चुनाव हुए तो अकाली पार्टी पंजाब में पूरे बहुमत से जीत गई और प्रकाश सिंह बादल राज्य के मुख्यमंत्री बने। बादल के कहने पर मैंने उनकी ओर से नरसिम्हा राव का धन्यवाद किया कि उन्होंने पंजाब और देश के हित में यह प्रयास किया है।
मैं यहां यह भी लिख देना चाहता हूं कि नरसिम्हाराव ने ही मेरी अपील पर योगी भजन और उसके सभी अमरीकी सिखों को 10 साल से चली आ रही ब्लैकलिस्ट से बाहर निकाला तथा वह भारत आए और प्रधानमंत्री को जाकर मिले। स. दीदार सिंह बैंस, जो वल्र्ड सिख कौंसिल के अध्यक्ष थे, को भी भारत आने की मंजूरी प्रधानमंत्री ने दी थी। नरसिम्हा राव जी का ऐतिहासिक योगदान डा. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाना था। उन्हें केवल मंत्री ही नहीं बल्कि पूरे अधिकार भी दे दिए गए और भारत की आॢथक तरक्की में उन्होंने अपना योगदान दिया। पिछले वर्ष हैदराबाद में झील के किनारे नरसिम्हा राव का बुत भी लगाया गया है।-तरलोचन सिंह (पूर्व सांसद)