अब चीन द्वारा दुनिया पर धातु हमला
punjabkesari.in Friday, Jul 14, 2023 - 05:21 AM (IST)

चीन, जो अपनी आक्रामक तथा विस्तारवादी नीतियों के कारण हमेशा चर्चा में रहता है, ने एक बार फिर अपने इरादे दुनिया के सामने रखते हुए विश्व भर में नई तकनीक के माध्यम से शुरू हुई तरक्की के रास्ते में रुकावट डालने के लिए बहुत ही कम मात्रा में उत्पन्न होने वाली दो धातुओं जर्मेनियम तथा गेलियम के निर्यात पर रोक लगाने की घोषणा कर दी है, जिससे इन धातुओं से बनाई जाने वाली वस्तुओं-इलैक्ट्रानिक्स, रक्षा उपकरण, सैमी-कंडक्टर, ऑप्टिकल फाइबर तथा प्रिंटेड सर्किट बोर्ड आदि की कीमतों में बेहिसाब वृद्धि होने की चिंता पैदा हो गई है।
इन दोनों धातुओं जर्मेनियम तथा गेलियम का उत्पादन सबसे अधिक चीन करता है और रिपोर्टों के अनुसार सारी दुनिया में जर्मेनियम का 60 प्रतिशत हिस्सा तथा गेलियम का 80 प्रतिशत हिस्सा अकेले चीन में पैदा किया जाता है। खास बात यह है कि यह दोनों धातुएं अनेक तकनीक आधारित कलपुर्जों, जैसे कि इंटरनैट, एल.सी.डी., कम्प्यूटर, सोलर पावर पैनल, कैमरा सैंसर, रात में देखने वाले यंत्र, डाटा को तेजी से एक स्थान से दूसरी जगह ट्रांसफर करने वाले यंत्र आदि तैयार करने के लिए जरूरी है।
यहां तक कि वायुसेना के लिए बनाए जाने वाले लड़ाकू विमानों तथा आधुनिक कारों के लिए भी इन धातुओं से बनने वाले पुर्जे बहुत जरूरी हैं। चीन द्वारा यह रोक लगाने के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया जा रहा है जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ने यह कदम अमरीका द्वारा चीन को ताईवान तथा जापान के माध्यम से सैमी कंडक्टर चिप मार्कीट से बाहर निकालने के लिए किए जा रहे प्रयासों के जवाब में उठाया है।
अमरीका बेशक यह कह रहा है कि वह सप्लाई चेन को टूटने नहीं देगा और इन धातुओं की पूर्ति अन्य स्रोतों से कर लेगा लेकिन इन धातुओं के उत्पादन के लिए एक बड़ा आधारभूत ढांचा चाहिए। इनको सीधे तौर पर उत्पादित नहीं किया जा सकता बल्कि यह जिंक तथा एल्युमीनियम के उत्पादन के समय बाई-प्रोडक्ट के तौर पर पैदा होती हैं। जर्मेनियम जिंक ओर से प्राप्त किया जाता है तथा यह कुछ विशेष किस्म की दवाइयों तथा खाने वाले सप्लीमैंटों में भी इस्तेमाल किया जाता है।
गेलियम धातु तरल रूप में होती है, जो खास किस्म के कैंसर के इलाज में भी इस्तेमाल की जाती है। चीन ने इन धातुओं पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर कुछ शर्तों के साथ लाइसैंस प्राप्त करने के बाद ही किसी को ये धातुएं निर्यात करने का फैसला किया है। मगर इसने पूरी दुनिया को एक नए ढंग से सोचने को मजबूर कर दिया है और विश्व के विकास के लिए जरूरी चीजों के उत्पादन की मांग पूरी करने के लिए नए ढंग-तरीके खोजने के लिए प्रोत्साहित किया है।
बेशक बाहरी तौर पर दुनिया के अधिकतर विकसित देश इसे एक बड़ी चुनौती नहीं मान रहे मगर इसका प्रभाव तुरन्त पडऩा शुरू हो गया है। गत एक सप्ताह के दौरान ही इन दोनों धातुओं की कीमतों में करीब 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अमरीका में इलैक्ट्रॉनिक्स, सोलर तथा इलैक्ट्रिक कारों की बड़ी कंपनियों पर इस कार्रवाई का सीधा असर पडऩा लाजिमी नजर आता है।
बेशक भारत के आई.पी. राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि भारत के लिए इन धातुओं की सप्लाई चेन में कोई रुकावट नहीं आएगी क्योंकि अमरीका तथा भारत के बीच तकनीक बारे हुई संधि के अनुसार हमें जरूरी तकनीक मिलती रहेगी, मगर इस सबके बावजूद वेदांता द्वारा लगभग 1.54 लाख करोड़ रुपए की लागत से ताईवान की फॉक्सकोन कम्पनी से मिलकर लगाए जाने वाले सैमीकंडक्टर प्लांट से फॉक्सकोन कम्पनी ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं जिससे भारत की इंडस्ट्री में एक मील पत्थर लगता-लगता रह गया है। -इकबाल सिंह चन्नी (भाजपा प्रवक्ता पंजाब)