शूरवीरों की धरती पंजाब में मौत के सौदागर

punjabkesari.in Sunday, Sep 25, 2022 - 05:54 AM (IST)

पंजाब गुरुओं, पीरों, पैगंबरों, ऋषि-मुनियों, शूरवीरोंं तथा देशभक्तों की कर्मभूमि है। यहां तक कि विश्व के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद की रचना भी पंजाब की धरती से हुई। ऐसा भी समय था जब देश के शासक गबरू जवानों, चट्टानों की तरह फौलादी, मौत का मजाक उड़ाने वाले छैल-छबीलों तथा अलबेले युवकों की खोज की खातिर विभाजन से पूर्व वाले पंजाब के गांवों में पहुंच जाते थे।

आजकल के समय में अरबों-खरबों के काले धंधे करने वाले मौत के सौदागर तथा राक्षस प्रवृत्ति के लोग हमारे घर की दहलीजों पर दस्तक देने लग पड़े हैं। कोई भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब नशों की चपेट में आए युवकों के घरों में विलाप नहीं होता। खौफनाक दृश्य तो यह भी है कि अब लड़कियां भी सरेआम नशों का सेवन कर रही हैं। गत दिनों गुरु की नगरी अमृतसर के थाना मकबूलपुरा के अंतर्गत पड़ते क्षेत्र में नशे का शिकार हुई तथा सुर्ख रंग के पहरावे में डगमगाती एक महिला के कदम एक दुखद कहानी बयां करते हैं। इस तरह तरनतारन के एक स्कूल के निकट नशे में चूर महिला बेहोशी की हालत में मिली।

हमें सबसे बड़ा सदमा उस समय पहुंचा जब चोहला साहिब के निकट पड़ते गांव धुन्न-ढाहेवाला के लोग जहां एक ओर सारागढ़ी के शहीद नायक लाल सिंह की 125वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारियों में जुटे थे, दूसरी ओर 32 वर्षीय युवक अंग्रेज सिंह जोकि गुजरात में किसी फैक्टरी में नौकरी कर रहा था, अपनों का समाचार लेने के लिए अपने गांव पहुंचा। नशे की ओवरडोज लेने के उपरांत 25 अगस्त को वह मृत पाया गया। उसका छोटा भाई भी गुजरात से जब गांव पहुंचा तो वह भी नशे का टीका लगाने के उपरांत भाई के भोग से एक दिन पूर्व यानी कि 2 सितम्बर को चल बसा।

धुन्न ढाहेवाला वह महत्वपूर्ण गांव है जहां पर हम ब्रिटिश आर्मी डैलीगेशन के साथ वर्ष 2019 में इस गांव में नायक लाल सिंह को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। अब यह बात स्पष्ट है कि नशों का छठा दरिया कई सरहदों को पार कर केवल गुजरात ही नहीं बल्कि देश भर में बाढ़ का रूप धारण कर चुका है। इस क्षेत्र के मेरे बहुत ही काबिल साथी सूबेदार रशपाल सिंह तथा हवलदार सुरजीत सिंह गत एक दशक से नशों के खिलाफ मुहिम छेड़ चुके हैं मगर असर कुछ न हुआ। इसका समाधान क्या होगा? जिक्रयोग्य है कि जब मुझे ‘इंटरनैशनल मैडीकल हैल्पलाइन एंड  एंटी ड्रग सोसाइटी’ (जिसके सरपरस्त शिकागो के बाबा दलजीत सिंह थे) बतौर आप्रेशन डायरैक्टर शामिल कर लिया।

एक बार कुराली के निकट गांव में नशा बांटने तथा बेचने वाले सक्रिय थे तो हम एक टी.वी. चैनल सहित वहां पहुंचे, तब वहां पर भगदड़ मच गई। वहां पर न तो कोई सरपंच, न कोई पंच और न ही कोई मर्द की जात मिली। केवल रोती-बिलखती महिलाएं तथा उनके भूखे-प्यासे नंगे बच्चे ही नजर आए। सोसाइटी की ओर से 2010 के दशक में करवाए गए सर्वेक्षण के अनुसार 16 से 25 साल की आयु वाले 63 फीसदी युवक नशे की चपेट में थे। अब शायद यह गिनती 80 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यहां तक कि तीसरी-चौथी कक्षा में पढ़ते बच्चों के बस्तों में जरदे तथा बीडिय़ां इत्यादि मिले।

चीन की नशों पर जीत
सदियों पहले चीन एक गुलाम देश था। इस कारण वहां पर गरीबी, भुखमरी तथा बेरोजगारी झेल रहे लोगों ने अपने बच्चे बेचने शुरू कर दिए। बहुत-सी महिलाएं देह व्यापार करने पर बीमारियों का शिकार हो गईं। अमरीका तथा यूरोपीय देशों की ओर से नशों को जबरन चीन पर थोपा गया। वर्ष 1839 में ब्रिटिश शासकों ने नशीले पदार्थों के जहाज भर कर चीन की ओर भेजने शुरू कर दिए। ऐशप्रस्त शासकों तथा पूंजी निवेशकों ने नशे वाली गोलियां बनाने वाले पदार्थों का जोर-शोर से कारोबार किया तो देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा गया।

चीन के महान नेता माओ त्से तुंग ने अपनी जनता को गरीबी की दलदल में से निकालने के लिए ‘पहले शासक भगाओ, फिर नशे छुड़ाओ’ के संकल्प से पूरे देश में जनांदोलन शुरू कर दिया। इसके नतीजे में पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी (पी.एल.ए.) की स्थापना हुई जिसने दमनकारी सेना को 1949 में हराकर पहली बार लोगों की अपनी सरकार स्थापित की। माओ ने अपनी सूझबूझ से 1951 के अंतिम दौर तक नशों पर नियंत्रण डाल कर चीन से इसे जड़ से खत्म किया।

बाज वाली नजर
पीछे की ओर देखते हुए यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भ्रष्ट राजनेता, कमजोर प्रशासनिक प्रणाली, मजबूत पुलिस तथा अयोग्य नौकरशाह मुख्य तौर पर नशों के प्रसार के लिए जिम्मेदार हैं जिस कारण आम जनता को संताप भोगना पड़ रहा है। नशों का काला धंधा देश की अंदरुनी सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है। विदेशी मुल्कों की खुफिया एजैंसियां एक गहरी साजिश के तहत हमारे देश के भीतर नशों का जाल बिछाकर दो बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकती हैं। एक तो हमारी युवा पीढ़ी को नशेड़ी बनाकर इतना कमजोर  कर दिया जाए कि वह सेना में भर्ती होने के काबिल ही न रहें फिर यह युद्ध कौन लड़ेगा तथा कौन जीतेगा? दूसरा पहलू यह है कि विदेशी खुफिया तंत्र अक्सर इस किस्म के मौकों की तलाश में रहता है ताकि देश को कमजोर किया जा सके।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)


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