भाजपा की इस अढ़ाई चाल के मायने
punjabkesari.in Friday, Sep 29, 2023 - 04:30 AM (IST)

भाजपा के चुनाव रणनीतिकार विपक्ष को चौंकाने में विश्वास रखते हैं। चुनावी शतरंज की बिसात पर विपक्ष जब प्यादे की चाल मानकर रणनीति बना रहा होता है, तो अक्सर भाजपा अपना घोड़ा चल देती है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूची जारी करने का सिलसिला जारी रखा है। सूचियों में कई चौंकाने वाले नाम हैं। कुछ तो इतने चौंकाने वाले हैं कि जिन्हें टिकट मिला है, वे ही चौंक गए हैं।
इस सूची में दिल्ली पर राज करने वाली मोदी सरकार के 3 मंत्रियों के नाम हैं, जो अब मध्य प्रदेश से विधायक के लिए चुनाव लड़ेंगे। इनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को मुरैना जिले की दिमनी सीट से टिकट दिया गया है। दूसरे हैं खाद्य एवं प्रंसस्करण राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल, जिन्हें नरसिंहपुर विधानसभा सीट से टिकट दी गई है। तीसरे हैं केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते।
कुलस्ते को भाजपा ने निवास विधानसभा से विधायक का चुनाव लड़ाने की घोषणा की है। वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा इन तीनों में से सिर्फ नरसिंहपुर की टिकट जीती थी। यहां से जीतने वाले जालम सिंह पटेल की टिकट काट दी गई है। टिकट कटने के बाद जालिम सिंह पटेल ने आग्रह किया है कि उन्हें पार्टी कहीं और से टिकट न दे। वह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि अपने बड़े भाई प्रह्लाद पटेल के लिए चुनाव में काम करेंगे। प्रह्लाद पटेल अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। इसी तरह निवास विधानसभा सीट पर हुआ है।
महाकौशल इलाके की इस टिकट के लिए भाजपा की टिकट के संभावित दावेदार पूर्व विधायक रामप्यारे कुलस्ते थे, लेकिन उनका नाम काटकर उनके बड़े भाई फग्गन सिंह कुलस्ते को यहां से विधानसभा के लिए टिकट दिया गया। भाजपा के कुछ चुनाव रणनीतिकार अपने इस दाव को ‘गिव अप योर टिकट’ प्लान कह रहे हैं, जिसमें संभावित उम्मीदवार की जगह उनके परिवार के अन्य सदस्यों को टिकट दी जा रही है।
भाजपा ने वापसी करने के लिए अपने कद्दावर नेता और केंद्रीय राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को यहां से उतारा है। इसी तरह दिमनी सीट पर भाजपा के शिव मंगल सिंह तोमर पिछला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के गिर्राज दर्ण्डोतिया से 18 हजार वोटों के ज्यादा अंतर से हार गए थे। बाद में गिर्राज सिंधिया के साथ भाजपा में आ गए। सिर्फ केंद्रीय मंत्रियों को ही नहीं, चार सांसदों को भी विधानसभा का टिकट दिया गया है। इनमें सीधी से रीति पाठक, जबलपुर पश्चिम से राकेश सिंह, सतना से गणेश सिंह और गाडरवारा से उदय प्रताप सिंह को प्रत्याशी बनाया गया है। भाजपा के दिग्गज महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को भी इंदौर-एक से टिकट दिया गया है।
दूसरी सूची में भाजपा ने जिन 39 सीटों से उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें से 36 सीटें पिछले चुनाव में भाजपा हार गई थी। उसे सिर्फ सीधी, मैहर और नरसिंहपुर से जीत मिली थी। मगर इस बार जीतने वाले तीनों विधायकों के भी नाम काट दिए गए हैं। इस बार जिन्हें टिकट दिया गया है, उनमें से कम से कम 4 नेता तो मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे हैं। ये हैं नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते।
ये सभी नेता अपने-अपने क्षेत्र में दिग्गज हैं और यहां उनकी बोलती भी है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर ये चारों जीतकर आते हैं तो क्या होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछड़े वर्ग के बड़े चेहरे हैं। पार्टी की नैया पार लगाते रहे हैं। लाडली योजना आदि लागू कर कांग्रेस के अगुआ कमलनाथ की चालों पर मात देते रहे हैं। उम्र अभी महज 64 वर्ष है और उनकी लंबी राजनीतिक पारी बाकी है। अब सवाल यह उठाया जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया पर यह प्रयोग क्यों नहीं किया गया। वजह एक और है। सिंधिया अभी भाजपा के लिए नए मोहरे हैं और मध्य प्रदेश में भाजपा या संघ कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहेगी कि जिससे संदेश जमीनी कार्यकत्र्ताओं के लिए विपरीत जाएं।
दरअसल विधानसभा के लिए इस तरह का भारी-भरकम टिकट वितरण कर पार्टी ने एक साथ कई संकेत दिए हैं। अप्रत्यक्ष संदेश यह कि पार्टी मान रही है कि मध्य प्रदेश में इस बार कांग्रेस से मुकाबला काफी कड़ा रह सकता है, इसलिए अपनी अधिकतम ताकत का इस्तेमाल किया जाए, ताकि कोई चूक न रह जाए। नेता बड़ा नहीं है, पार्टी बड़ी है। दूसरा संदेश पार्टी के उन नेताओं के लिए है, जो सांसद और केंद्र में मंत्री बनने को अपना बड़ा प्रोमोशन मान लेते हैं, खुद को बड़ा नेता या राष्ट्रीय नेता मानने लगते हैं। उन्हें स्पष्ट बता दिया गया है कि आपको किसी भी मोर्चे पर पार्टी भेज सकती है। आपको विधायक का चुनाव भी लडऩा पड़ सकता है।
ऐसा नहीं है कि भाजपा यह प्रयोग पहली बार कर रही है। इससे पहले उसने गुजरात के चुनाव में भी ऐसा किया था। पश्चिम बंगाल के चुनाव में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो समेत पांच सांसदों को विधानसभा के चुनाव में उतारा था। इनमें से बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी और राज्यसभा सांसद स्वप्नदास गुप्ता चुनाव हार गए थे। हिमाचल में उसने आंशिक रूप से ऐसा किया और सफलता भी मिली। भाजपा ने यह काम-‘पूरे घर को बदल दूंगा’ की मुद्रा में किया है। इसलिए जिन मंत्रियों को मध्यप्रदेश के चुनाव मैदान में उतारा गया है, उनके सियासी भविष्य पर उनकी जीत-हार का असर तो अवश्य पड़ेगा। अगर ये सभी जीत जाते हैं तो निश्चित ही पार्टी से ईनाम के हकदार होंगे मगर यदि हारते हैं तो एस.पी. सिंह बघेल या प्रतिमा भौमिक की तरह भाग्यशाली रहेंगे या उन्हें बाबुल सुप्रियो की तरह मंत्रिपद गंवाना होगा, यह चुनाव बाद के समीकरणों से ही तय होगा।-अकु श्रीवास्तव