‘अब चेहरों से गायब होने लगे मास्क’

Sunday, Feb 07, 2021 - 03:06 AM (IST)

शुरू में जैसे-जैसे भयंकर कोविड महामारी के फैलने के समाचार आए वैसे ही इससे डरे लोगों ने स्टोरों पर उपलब्ध तड़क-भड़क वाले मास्क तलाशने शुरू कर दिए। कुछ ने मोटे तो कुछ ने लम्बे मास्क पहनने शुरू कर दिए। दुकानदार भी लोगों को कहते नजर आने लगे कि मास्क उन्हें वायरस से सुरक्षित ही नहीं रखेगा बल्कि उन्हें धूप से भी बचाएगा। कुछ लोगों ने तो ‘बैटमैन और फैंटम’ के चेहरों वाले मास्क पहनने शुरू कर दिए। 

लम्बी चर्चाएं होने लगीं कि आखिर कौन-सा मास्क बेहतर है और यदि गलती से कोई व्यक्ति मास्क की जगह चेहरे पर रूमाल बांधे नजर आ जाता था तो पूरी भीड़ ही उस गरीब व्यक्ति को कोसने लग जाती थी और उस पर शाब्दिक बाण चलाए जाते थे। मगर बीते काल की बिकिनी की तरह मास्क के साथ भी ऐसा ही हुआ जिससे एक बार ऐसा महसूस किया जाने लगा कि इसे पहनना वैसे ही है जैसे एक कम्बल को महिला के शरीर के इर्दगिर्द लपेट दिया जाता है जिससे उसका दम घुटने लगता है। समय के साथ-साथ बिकिनी भी छोटी होती गई और इसी तरह मास्क भी। शायद इसे पहनने वाले अपने नाक, मुंह और कानों को ढकने के बाद असहज महसूस करते होंगे। 

लोगों को चेहरे पर अतिरिक्त बोझ लगने लगा। इस कारण मास्क भी पतले होते चले गए और बाजार में ऐसे मास्क भी बिकने के लिए आए जो पारदर्शी थे। कई महीनों तक अपनी मुस्कान छुपाने वाले लोगों ने आखिरकार अपना चेहरा दिखाना शुरू कर दिया। वायरस से लडऩे के लिए चेहरे पर लगाए गए मास्क धीरे-धीरे अब गले तक आ गए। जैसे बिकिनी के ऊपर नैकलैस पहन लिया जाए वैसे ही बत्तख की तरह गर्दन तक मास्क लटकते दिखाई देने लगे। ऐसा खूबसूरत महिलाएं ही नहीं करने लगीं बल्कि बाऊंसरों तथा हृष्टपुष्ट युवाओं ने भी अपने मास्क गले तक उतार दिए। अब मास्क नीचे तक गिर गए हैं और किसी एक फैशन विवरण की तरह नजर आने लगे। 

जैसे युद्ध लड़ने के दौरान पुराने समय में योद्धा अपने चेहरों को बचाने के लिए कवच पहनते थे उसी तरह खाकी यूनीफार्म में पुलिसकर्मी भी मास्क पहनने लगे। मास्क को सरकारी जुर्माने से बचने के लिए भी चेहरे पर पहना जाने लगा। जैसे ही खाकी वर्दीधारी पुलिस गायब हो जाते वैसे ही मास्क भी चेहरे से उड़ जाते। अब मास्क उतार दिए गए। राजधानी दिल्ली के बाहर आंदोलनकारी किसानों से सड़कों पर लगे तीखे कीलों को देखा। अवरोधकों पर कंटीली तारें लगे देखा। किसानों के इर्दगिर्द खाइयां खोद दी गईं और आंदोलनकारी किसान एक-दूसरे को देख हताश होने लगे। 

अंतत: उन्होंने समझा कि मास्क उतर गए हैं। किसान बिना किसी इंटरनैट के अपने मोबाइल फोनों की स्क्रीनों पर घूरने लगे। राजधानी में उन्होंने धीरे-धीरे लम्बी वार्ताओं के बाद महसूस किया कि वे उन लोगों के साथ जिन्होंने संयम से उनकी बात सुनी, उन्होंने उन व्यक्तियों की अभिव्यक्तियों तथा इरादों को देखा जिन्होंने मास्क के पीछे सब कुछ छिपा रखा था।-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स

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