मणिपुर : चांद का अंधेरा पक्ष!

punjabkesari.in Sunday, Sep 15, 2024 - 05:44 AM (IST)

पिछले कॉलमों को पलटते हुए, मैंने मणिपुर के बारे में ज्यादा बार न लिखने के लिए खुद को डांटा। मैंने आखिरी बार 30 जुलाई, 2023 को मणिपुर पर लिखा था और अब 13 महीने से ज्यादा हो गए हैं। यह अक्षम्य है। सभी भारतीयों के लिए मणिपुर को अपनी सामूहिक चेतना के सबसे गहरे कोने में भेजना अक्षम्य है। जब मैंने पिछले साल लिखा था, तो संकेत अशुभ थे। मैंने कहा था ‘यह जातीय सफाई की शुरूआत है’। मैंने कहा था ‘आज, मुझे जो भी रिपोर्ट मिली या पढ़ी हैं, उनसे पता चलता है कि इम्फाल घाटी में व्यावहारिक रूप से कोई कुकी-जोमी नहीं है और कुकी-जोमी के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में कोई मैतेई नहीं है’। मैंने यह भी कहा था कि ‘मुख्यमंत्री और उनके मंत्री अपने घर के दफ्तरों से काम करते हैं और प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा नहीं करते या नहीं कर सकते हैं’। मैंने यह भी कहा था कि ‘मणिपुर पुलिस पर किसी भी जातीय समूह को भरोसा नहीं है’ और ‘कोई भी हताहतों की आधिकारिक संख्या पर विश्वास नहीं करता है’। 

तीन लोग कटघरे में : मैंने जो भी लिखा, वह दुर्भाग्य से सच साबित हुआ। संसदीय लोकतंत्र में मणिपुर की दुखद स्थिति के लिए एक या अधिक सत्ताधारियों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यहां 3 लोग हैं जो सत्ता में हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा संकल्प लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे मणिपुर राज्य का दौरा नहीं करेंगे। उनका रवैया ऐसा लगता है कि ‘मणिपुर जलता रहे, मैं मणिपुर की धरती पर कदम नहीं रखूंगा’। 9 जून, 2024 को अपने तीसरे कार्यकाल की शुरूआत के बाद से, प्रधानमंत्री ने इटली (13-14 जून), रूस (8-9 जुलाई), ऑस्ट्रिया (10 जुलाई), पोलैंड (21-22 अगस्त), यूक्रेन (23-24 अगस्त), ब्रूनेई (3-4 सितंबर) और सिंगापुर (4-5 सितंबर) की यात्रा करने का समय निकाला है। 

2024 के बचे हुए महीनों के लिए उनके कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमरीका, लाओस, समोस, रूस, अजरबैजान और ब्राजील की यात्राएं शामिल हैं। यह निॢववाद है कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा समय या ऊर्जा की कमी के कारण नहीं किया है, बल्कि इसलिए नहीं किया है क्योंकि वे इस असहाय राज्य का दौरा नहीं करने के लिए दृढ़ हैं। मणिपुर का दौरा करने से उनका इन्कार उनकी जिद का एक पैमाना है। गुजरात दंगों, सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनों और 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हमें इसकी झलक मिली जब उन्होंने अपने मंत्रियों को संसद के दोनों सदनों में सभी स्थगन प्रस्तावों का विरोध करने का निर्देश दिया, चाहे वह कोई भी जरूरी मामला रहा हो। गृह मंत्री अमित शाह के निर्देशों में राज्य सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर सुरक्षा बलों की तैनाती तक मणिपुर के शासन के हर पहलू को शामिल किया गया है। वे मणिपुर की सरकार हैं। उनके कार्यकाल में हिंसा तेजी से बढ़ी है। मणिपुर के लोग केवल बंदूकों और बमों से एक-दूसरे से नहीं लड़ रहे हैं। स्वतंत्र भारत में पहली बार रॉकेट और हथियारबंद ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। 

पिछले हफ्ते 2 जिलोंं में कफ्र्यू लगा दिया गया है, स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं, 5 जिलोंं में इंटरनैट बंद कर दिया गया और पुलिस इम्फाल की सड़कों पर छात्रों से लड़ रही है। पहले से तैनात 26,000 कर्मियों को मजबूत बनाने के लिए सी.आर.पी.एफ. की 2और बटालियनें (2000 पुरुष और महिलाएं) मणिपुर भेजी गई हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री  एन. बीरेन सिंह अपनी ही बनाई जेल में बंदी हैं। वे और उनके मंत्री इम्फाल घाटी में भी नहीं जा पा रहे हैं। कुकी-जोमी उनसे नफरत करते हैं। मैतेई लोगों ने सोचा था कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, लेकिन उनकी पूरी तरह से विफलता ने उन्हें मणिपुर में सबसे अलोकप्रिय व्यक्ति बना दिया है, जिसमें मैतेई भी शामिल हैं। प्रशासन का कोई नामो-निशान नहीं है। उनका अयोग्य और पक्षपातपूर्ण शासन नागरिक अशांति का कारण था, अब वे समस्या बन गए हैं और सभी पक्षों को उकसा रहे हैं। उन्हें कई महीने पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था। उनका पद पर बने रहना मोदी और शाह के निरंकुश, कभी गलती न मानने वाले रवैये को दर्शाता है। 

वास्तव में विभाजित : मणिपुर वास्तव में 2 राज्य हैं। चूड़ाचांदपुर, फेरजवाल और कांगपोकपी जिले पूरी तरह से कुकी लोगों के नियंत्रण में हैं और तेंगनौपाल जिला (जिसमें सीमावर्ती शहर मोरेह भी शामिल है) में कुकी-जोमी और नागा की मिश्रित आबादी है, व्यावहारिक रूप से कुकी-जोमी के नियंत्रण में है। कुकी-जोमी एक अलग प्रशासन चलाते हैं। कुकी-जोमी नियंत्रित क्षेत्र में कोई भी मैतेई सरकारी कर्मचारी नहीं हैं; वे घाटी के जिलों में बसे हुए हैं। कुकी-जोमी ऐसे राज्य का हिस्सा नहीं बनना चाहते जहां मैतेई बहुमत में हों (60 सदस्यों वाले सदन में 40 विधायक)। मैतेई मणिपुर की पहचान और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना चाहते हैं। समुदायों के बीच दुश्मनी का स्तर बहुत ऊंचा और गहरा है। सरकार और जातीय समूहों के बीच या मैतेई और कुकी-जोमी के बीच कोई बातचीत नहीं है। नागाओं की केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ अपनी ऐतिहासिक शिकायतें हैं और वे मैतेई बनाम कुकी-जोमी संघर्ष में उलझना नहीं चाहते। 

कहीं कोई रोशनी नहीं : मणिपुर संदेह, छल और जातीय संघर्ष के जाल में फंसा हुआ है। मणिपुर में शांति बनाए रखना और सरकार चलाना कभी आसान नहीं रहा। केंद्र सरकार की लापरवाही और राज्य सरकार की अक्षमता के कारण यह अकल्पनीय रूप से बदतर हो गया है, दोनों ही भाजपा द्वारा संचालित हैं। भारत के प्रधानमंत्री को शायद यह एहसास हो गया है कि संघ के एक राज्य मणिपुर की उनकी यात्रा, चंद्रमा के अंधेरे पक्ष की यात्रा जितनी खतरनाक होगी।-पी. चिदम्बरम


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