सुलु वंशजों के साथ जमीनी विवाद में उलझा मलेशिया

punjabkesari.in Friday, Jul 29, 2022 - 06:40 AM (IST)

फ्रांसीसी कोर्ट ने मलेशिया सरकार को आदेश दिया है कि वह सुलु सुल्तान के वंशजों को 15 अरब डॉलर का मुआवजा दे। इस मुद्दे ने मलेशिया की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। बरसों से शांत पड़े सुलु और 2013 के लहद दातू कांड ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। आखिर यह मामला क्या है और इसका क्या असर होगा? 

दरअसल, मलेशिया की गैस और तेल उत्पादक सरकारी संस्था पैट्रोनास को कहा गया है कि वह सुलु सुल्तान के वंशजों को उपनिवेश काल से ब्रिटिश मलेशिया और सुलु राजाओं के बीच 144 साल पहले हुए समझौते के तहत 15 अरब डालर की मुआवजा राशि दे। ब्रिटिश काल के समझौते को मलेशिया ने 2013 में एकतरफा निर्णय लेकर खारिज कर दिया और सुलु पक्ष को मुआवजा मिलना भी बंद हो गया।

मलेशिया सरकार के इस निर्णय के विरोध में सुलु पक्ष ने 2017 में एक याचिका दायर की लेकिन मलेशिया में उसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया गया और अब ऐसा लग रहा है कि बात बहुत बढ़ गई है। इस साल की शुरूआत में फरवरी में फ्रांस की आर्बिट्रेशन कोर्ट ने सुलु सुल्तान के वंशजों के पक्ष में निर्णय दिया था। सुलु राजघराने के लोगों को फैसला तो मनचाहा मिल गया लेकिन उस फैसले को अमली जामा पहनाना एक बड़ी चुनौती था। 

इस काम को मलेशिया और उसके आस-पास के इलाके में करना बड़े विवाद को जन्म दे सकता था। शायद यही वजह है कि उन्होंने मुआवजे की वसूली के लिए पैट्रोनास की लक्जमबर्ग स्थित 2 इकाइयों पर कब्जे की कोर्ट से अपील की और उन्हें इस मामले में कोर्ट की अनुमति भी मिल गई। हालांकि सरकारी सूत्रों की मानें तो मलेशिया सरकार ने इस मामले में अपनी संप्रभुता पर संभावित खतरे की दुहाई देते हुए 13 जुलाई, 2022 को एक स्थगन आदेश पारित करा लिया। 

मलेशिया में घमासान : मलेशिया में यह बात दूर कहीं लगी आग के धुएं-सी पहुंची और चुनावी जंग में डूबने को बेचैन नेताओं को आपसी छींटाकशी का मौका मिल गया। मलेशिया के प्रधानमंत्री इस्माइल साबरी का यह बयान कि मलेशिया सबाह प्रांत की एक इंच जमीन भी किसी को नहीं देगा और इसकी सुरक्षा और सम्प्रभुता अक्षुण्ण रखेगा, अपने आप में दिखाता है कि मलेशिया इस बात को लेकर कितना संजीदा है। और क्यों न हो, आज सबाह मलेशिया का तेल और गैस निर्यात का प्रमुख स्रोत बन गया है। लेकिन साबरी की कठोर वाणी से भी विपक्ष नहीं पिघला। 

भ्रष्टाचार के मामलों, खासतौर पर 1 एम.डी.बी. गबन मामलों में अपनी सत्ता गंवा चुके और कोर्ट के चक्कर काट रहे नजीब रजाक ने मौके का फायदा उठाते हुए उनके बाद आई सरकारों और उनके मंत्रियों की लापरवाही पर सवालिया निशान लगाए और भूतपूर्व अटॉर्नी जनरल टॉमी थॉमस को इस बात का दोषी करार दे दिया। 

बात कुछ इस तरह तूल पकड़ चुकी है कि इस मुद्दे पर विपक्ष ने संसद में बहस कराए जाने की मुहिम भी चला दी। हालांकि सदन के अध्यक्ष ने नियमों और मामले के न्यायालय के विचाराधीन होने का हवाला देकर इसे किसी तरह फिलहाल के लिए टाल दिया है। सबाह के कुछ लोगों और राजनीतिज्ञों ने यह आवाज भी उठानी शुरू कर दी है कि सबाह प्रदेश के अतीत, वर्तमान और मलेशिया के साथ उसके भविष्य पर खुली चर्चा हो। 

उपनिवेशकाल की गलतियां : मलेशिया भी ब्रिटिश उपनिवेशवाद का शिकार रहा है। 1878 में अंग्रेजों ने विवादास्पद जमीन सुलु के सुल्तान से लीज पर ली थी, जो सबाह और आस-पास के तमाम द्वीपसमूहों में फैली थी। यह समझौता सुलु सुलतान जमाल अल आलम, हांगकांग की गुस्तावुस बैरन वोन ओवरबेक, और ब्रिटिश नार्थ बोॢनयो कंपनी के बीच हुआ था, जिसके तहत कंपनियों ने सुल्तान और उसके वारिसों को 5000 पेसो सालाना हमेशा के लिए देने की बात कही थी। 

सुलु वंशजों का कहना है कि यह जमीन किराए पर ली गई थी, लेकिन मलेशियाई सरकार मानती है कि समझौता सबाह के ऊपर मालिकाना हक का था, किराए पर जमीन लेने का नहीं। उस वक्त तो मलेशिया आजाद ही नहीं था और समझौते पर हस्ताक्षर भी ब्रिटिश और हांगकांग स्थित कंपनियों के थे। 1936 में सुल्तान जमाल के बेऔलाद मरने के बाद भी ब्रिटिश सरकार ने 9 नजदीकी वारिसों को चुना और उन्हें मुआवजे की रकम देनी चालू कर दी। 

1963 में मलाया को आजादी मिलने के बाद यह हिस्सा सुलु सल्तनत के पास जाने की बजाय आजाद मलाया का हिस्सा बन गया। सुलु वंश के वंशजों की मानें तो यह गलत था और अंग्रेजों को ऐसा नहीं करना चाहिए था। इस विवाद में मलेशिया और सुलू सुल्तान के वंशजों के बीच ही विवाद नहीं रहा, एक समय इंडोनेशिया का भी इस क्षेत्र पर कब्जा रहा था और ब्रुनेई का भी। हालांकि दोनों ही देश अब इस पचड़े में नहीं पडऩा चाहते। 

2013 तक मलेशिया और सुलु सुल्तान के वंशजों के बीच भी शांति रही थी लेकिन 2013 में एक सुलु वंशज की भेजी मिलिशिया से हिंसक संघर्ष के बाद मलेशिया सरकार ने सुलु वंशजों को दिए जाने वाले 5300 मलेशियाई रिंगिट के सालाना भत्ते को बंद कर दिया। बहरहाल अब मामले में नए पेंच निकल पड़े हैं। सुलु वंशज चाहते हैं कि जल्द से जल्द मामले का निस्तारण हो और इसके लिए न्यूयॉर्क कन्वैंशन का हवाला देते हुए उन्होंने किसी भी तीसरे हस्ताक्षरकत्र्ता देश में जाकर इस फैसले के अमल का मंसूबा बांधा है। 

जो भी हो, इस मुद्दे ने सबाह के मलेशिया के साथ संबंधों, मलेशिया की घरेलू राजनीति और विदेश नीति पर असर डालना चालू कर दिया है। सबाह की स्वायत्तता का मसला भी इस बात से उठेगा, यह भी तय है। मलेशिया पर इस मुद्दे के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।-राहुल मिश्र 


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