बिहार में दो स्थापित गठबंधनों के बीच होगी मुख्य लड़ाई

punjabkesari.in Saturday, Oct 18, 2025 - 03:45 AM (IST)

बिहार विधानसभा चुनाव की राजनीति स्वाभाविक ही चरम पर है । जब तक किसी चुनाव का परिणाम नहीं आता तब तक हर प्रकार के विश्लेषण और अनुमान आते रहते हैं,आते रहेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आम विश्लेषण यह है कि भाजपा जद-यू वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन या राजग और राजद, कांग्रेस, वामदल आदि के गठबंधन के बीच जबरदस्त टक्कर है और प्रशांत किशोर की नवगठित जन सुराज तीसरा स्थान पाने की स्थिति में है। एक विश्लेषण यह भी है कि जन सुराज पार्टी दोनों पक्षों को क्षति पहुंचा कर प्रभावी स्थान बना सकती है। 

 प्रश्न है कि आखिर बिहार चुनाव में इस समय क्या संभावनाएं दिखती हैं? 2020 विधानसभा चुनाव में दोनों मुख्य गठबंधनों के बीच केवल12,768 वोटों का अंतर था। तब राजग को 37.26 प्रतिशत (1,57,01,226) मत मिले थे जबकि महागठबंधन के खाते में 37.23 प्रतिशत (1,56,88,458) मत गए। दोनों के बीच .03 प्रतिशत मतों का मामूली अंतर था। इतने मामूली अंतर से राजग को 125 एवं राजद नेतृत्व वाले गठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। अन्य को 8 पर विजय हासिल हुई। इसके आधार पर पहला निष्कर्ष यही है कि अगर विरोधी गठबंधन को थोड़े मत और आ जाते तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की सरकार नहीं बनती। इसका निष्कर्ष यह भी है कि पुन: 5 वर्ष के शासन के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार को लेकर लोगों में कुछ न कुछ  असंतोष होगा और इस सत्ता विरोधी रुझान का लाभ विरोधी गठबंधन को मिल सकता है। 

पिछली बार बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा की 52 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का अंतर भी 5 हजार से भी कम वोटों का था। लेकिन चुनाव का अंकगणित इतना सरल नहीं होता। पिछले चुनाव में चिराग पासवान की लोजपा अकेले 137 सीटों पर लड़ गई थी और उसे 5.66 प्रतिशत यानी 23 लाख 83 हजार, 457 मत मिले थे। इस बार चिराग पासवान गठबंधन में हैं और इन मतों को मिला दें तो दोनों के बीच बड़ा अंतर आ जाता है। तब 83 सीटों पर 10 हजार से भी कम से हार-जीत हुई थी। इन 83 सीटों में 28 पर राष्ट्रीय जनता दल और 10 पर कांग्रेस को जीत मिली थी। वास्तव में 2025 के विधानसभा चुनाव पूर्व का आकलन न 2020 और न 2015 के आधार पर हो सकता है। पिछले चुनाव में राजग गठबंधन में जीतनराम मांझी की ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा की ‘रालोमो’ भी नहीं थी। इसी तरह मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी या ‘वी.आई.पी.’ राजग में थी जो इस बार दूसरे गठबंधन में है। अब महागठबंधन में कुल 8 दल हो गए हैं। इस समय चुनाव पूर्व राजग के पास 131 सीटें हैं, जिसमें भाजपा के पास 80, जद-यू  45 और हम (एस)को 4 सीट है । इनके अलावा दो निर्दलीय विधायकों ने भी राजग को समर्थन दिया था।

महागठबंधन के पास 111 सीटें हैं, जिनमें राजद को 77, कांग्रेस को 19,सी.पी.आई. (एम.एल.) को 11, सी.पी.आई. (एम) 2 और सी.पी.आई. के पास 2 सीट हैं। इस बार इसमें वी.आई.पी., झारखंड मुक्ति मोर्चा और पशुपति पारस की लोजपा भी आ गई है। इस तरह विरोधी गठबंधन में 8 दल हो गए हैं । 2024 लोकसभा चुनाव के अनुसार देखें तो भाजपा को 20.52 प्रतिशत मत और 12 सीट, जद-यू को 18.52 प्रतिशत मत और 12 सीट , लोजपा 5.47 प्रतिशत मत व 5 सीट, ‘हम’-1, दूसरी ओर राजद को 22.5 प्रतिशत मत एवं 4 सीट ,कांग्रेस को 9.20 प्रतिशत मत एवं 3 सीट, सीपीआई एमएल को 2.99 प्रतिशत मत एवं 2 सीटें मिलीं थीं। 

अंकगणित के इन तथ्यों के आईने में वर्तमान चुनाव को देखिए और निष्कर्ष निकालिए। लंबे समय की सत्ता के कारण सरकार, विधायकों , मंत्रियों, नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री आदि सभी को लेकर कुछ न कुछ असंतोष का भाव होता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह भाजपा को छोड़ राजद और राजद छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया उनसे उनकी साख और विश्वसनीयता काफी क्षीण हुई। बीच के काल में गुस्सा, तिलमिलाहट और वक्तव्यों में काफी असंतुलन उनकी पहचान बन रहा था। 
किंतु पिछले 6 महीना में आप इसमें गुणात्मक आमूल परिवर्तन देख रहे होंगे। पहले लगता था कि दोबारा साथ आने के बावजूद भाजपा उन्हें चुनाव में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने से परहेज करेगी। तेजस्वी यादव सहित विरोधी नेताओं ने लगातार प्रचारित भी किया कि चुनाव लडऩे के बाद भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। भाजपा के ज्यादातर शीर्ष नेताओं ने इधर लगातार बयान दिया कि हम नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं और फिर से वही मुख्यमंत्री होंगे। तो इसे लेकर संदेह बिल्कुल समाप्त हो गया है। 

इस कारण नीतीश कुमार के समर्थक मतदाताओं के अंदर का ऊहापोह भी खत्म हो गया होगा। सीटों को लेकर गठबंधन में समस्याएं हमेशा रही हैं और इस बार भी हैं। बावजूद नीतीश कुमार चुनाव प्रचार कर रहे हैं और सभी घटक दल उनके साथ खड़े हैं। सबसे बढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सभी एकजुट हैं और उनका आभामंडल सब पर भारी है। भाजपा और राज्य की ओर से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नेतृत्वकारी राजनीतिक भूमिका का भी गहरा प्रभाव दिखाई देता है। तो कुल मिलाकर बिहार में मुख्य लड़ाई दो स्थापित गठबंधनों के बीच ही है। नि:संदेह, कुछ उम्मीदवारों को लेकर भाजपा के अपने ही कार्यकत्र्ताओं व समर्थकों में असंतोष है और उसका थोड़ा असर भी होगा, किंतु दूसरे गठबंधन में कलह और विद्रोह कहीं ज्यादा है ।- अवधेश कुमार 
 


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