कई मायनों में अहम हैं महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव

Wednesday, Sep 25, 2019 - 12:41 AM (IST)

चुनाव आयोग ने 2 भाजपा शासित राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र के लिए चुनाव संबंधी बिगुल बजा दिया है। इन दोनों राज्यों में 21 अक्तूबर को मतदान होगा। भाजपा न केवल इन दोनों राज्यों में वापसी को लेकर आश्वस्त है बल्कि उसे पहले से अधिक सीटें आने की भी उम्मीद है। भगवा पार्टी इन दोनों राज्यों में जीत के लिए इसलिए भी निश्चिंत है क्योंकि विपक्ष यहां पर बिखरा हुआ है। 

ये चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी परीक्षा होगी क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीत के बाद ये पहले विधानसभा चुनाव हैं। इन चुनावों में केन्द्र के महत्वपूर्ण फैसलों जैसे कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को हटाना, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तथा तीन तलाक पर रोक की भी परीक्षा होगी। मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडऩवीस का नेतृत्व भी दाव पर होगा, हालांकि भाजपा मोदी मैजिक पर निर्भर है। सबसे ज्यादा ये परिणाम इस बात को दर्शाएंगे कि कमजोर होती अर्थव्यवस्था मतदाताओं के लिए मायने रखती है या नहीं। मुम्बई देश की वित्तीय राजधानी है और अर्थव्यवस्था इन चुनावों में बड़ा मुद्दा है, हालांकि मोदी सरकार ने पिछले एक महीने में अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कुछ रियायतें देने की घोषणा की है। 

अम्ब्रेला पार्टी बनने के लिए प्रयासरत भाजपा
भाजपा को कांग्रेस और राकांपा से दल बदल कर आए लोगों के मामले में संभल कर फैसले लेने होंगे तथा टिकट वितरण में भी सावधानी बरतनी होगी। भाजपा एक अम्ब्रेला पार्टी के तौर पर उभरने का मौका देख रही है जैसे कि पहले कांग्रेस रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद भगवा दल में लगातार बढ़ौतरी दर्ज की गई है। 2014 के विधानसभा चुनावों में हुए चतुष्कोणीय मुकाबले में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी, जिसके बाद शिवसेना (63), कांग्रेस (42) और राकांपा (41) रही थीं।

भाजपा की सहयोगी शिवसेना अब भी सीट शेयरिंग के लिए संघर्ष कर रही है और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के लिए उपमुख्यमंत्री पद के लिए भी सौदेबाजी कर रही है। शिवसेना ने कांग्रेस और राकांपा से आए लोगों का खुले दिल से स्वागत किया है। शिवसेना को भाजपा की लगातार बढ़त से भी डर है। पिछले 24 वर्षों में भाजपा शिवसेना से आगे निकल चुकी है जिसने केवल 3.09 प्रतिशत की बढ़ौतरी दर्ज की है, जबकि भाजपा 16.3 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी।

बिखराव से जूझती कांग्रेस
जहां तक कांग्रेस की बात है, सोनिया के दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद यह उसके लिए पहला विधानसभा चुनाव होगा। भाजपा-शिवसेना गठबंधन के लिए कांग्रेस और उसकी सहयोगी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकांपा) मुख्य चुनौती हैं। कांग्रेस स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बिखराव की स्थिति में है और इसका उत्साह निम्नतम स्तर पर है। यह पार्टी न केवल नेतृत्व के संकट का सामना कर रही है बल्कि गुटबाजी और अनुशासनहीनता से भी जूझ रही है। पार्टी की इससे भी बड़ी ङ्क्षचता उसका लगातार कमजोर होना है क्योंकि नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्णा विखे पाटिल और पूर्व मंत्री हर्षवद्र्धन पाटिल सहित बहुत से नेताओं ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा ज्वाइन कर ली है। अब्दुल सत्तार शिवसेना में चले गए हैं। सोनिया गांधी पार्टी को सम्भालने की कोशिश कर रही हैं लेकिन इसमें काफी देर हो गई है। उधर भाजपा तथा शिवसेना ने पश्चिमी महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा में भी अपना जनाधार मजबूत कर लिया है। यदि महाराष्ट्र में भाजपा की जीत होती है तो उसका हौसला काफी बढ़ जाएगा। 

राकांपा की स्थिति पतली
कांग्रेस की सहयोगी राकांपा की स्थिति भी ठीक नहीं है। पवार की ओर से अपनी नई पार्टी बनाने के बाद दोनों दलों ने 1999 में हाथ मिलाया था। दोनों ने साथ मिल कर 15 वर्ष तक महाराष्ट्र में शासन किया लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव अलग लड़ा। इसके बाद भगवा दलों की तरह कांग्रेस तथा राकांपा भी 2019 के लोकसभा चुनावों में एक साथ हो गईं। पवार अपने पुराने सहयोगियों और कट्टर समर्थकों जैसे कि विजय सिंह मोहिते पाटिल, पद्म सिंह पाटिल तथा मधुकर पिछाद से अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं, जो उन्हें छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए हैं।

बुजुर्ग पवार का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और सियासत पर उनकी पकड़ ढीली हो गई है। राकांपा भी गुटबाजी और अनुशासनहीनता से जूझ रही है। ऐसे में इन दोनों बीमार दलों के लिए भाजपा-शिवसेना गठबंधन का मुकाबला करना मुश्किल होगा। हालांकि कांग्रेस-राकांपा गठबंधन भगवा दलों के लिए मुख्य चुनौती है लेकिन प्रकाश अम्बेदकर की वंचित बहुजन अगाड़ी (वी.बी.ए.) भी महाराष्ट्र में तीसरे मोर्चे के तौर पर उभरने का प्रयास कर रही है लेकिन वी.बी.ए. अन्य दलों के लिए केवल वोट कटुआ ही साबित होगी। इन चुनावों में विपक्ष के लिए कृषि संकट,अर्थव्यवस्था में मंदी, ग्रामीण संकट तथा बेरोजगारी मुख्य मुद्दे होंगे जबकि भाजपा मोदी सरकार और प्रदेश सरकार की उपलब्धियों को भुनाना चाहेगी। इसके अलावा वह राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व का सहारा लेगी। 

भाजपा का पलड़ा भारी
महाराष्ट्र कई मायनों में महत्वपूर्ण है। भाजपा अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहती है जबकि शिवसेना अपने गढ़ की रक्षा करना चाहती है। राकांपा के लिए यह अस्तित्व बचाने का मामला है और कांग्रेस अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जूझ रही है। प्रकाश अम्बेदकर एक बड़ी ब्रेक का मौका ढूंढ रहे हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि भाजपा के लिए यह एकतरफा मुकाबला है क्योंकि लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत और देवेन्द्र फडऩवीस के बढ़ते कद के चलते उसे चुनाव जीतने में कोई खास दिक्कत नहीं होगी। यदि दोनों भगवा दल बिना किसी खास प्रयास के चुनाव जीत जाएं तो भी कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी।-कल्याणी शंकर
 

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