मैगी पर प्रतिबंध लगाने और हटाने का सच

punjabkesari.in Monday, Oct 19, 2015 - 03:01 AM (IST)

इसकी शुरूआत उत्तर प्रदेश से हुई थी जहां खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन  (Food Safety and Drug Administration)  ने मैगी नूडल्स के कुछ नमूने एकत्रित करके जांच के लिए कोलकाता भेजे थे। जांच रिपोर्ट में पाया गया कि इनमें स्वाद बढ़ाने वाले मोनो सोडियम ग्लूटामेट (एम.एस.जी.) तथा सिक्के (लैड) की मात्रा बहुत अधिक है। इसी वर्ष जून में पहले केवल उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों ने और फिर देश भर में मैगी इंस्टैंट नूडल्स की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इसके चलते खाद्य पदार्थों के स्विस निर्माताओं नैस्ले एस.ए. की सहयोगी कम्पनी  नैस्ले इंडिया लिमिटेड ( मैगी की निर्माता) ने बाजार से समस्त मैगी उत्पाद वापस मंगवा लिए। तब लगता था जैसे खाद्य सुरक्षा व मानक प्राधिकरण ने अंतत: काम करना शुरू कर दिया है। हालांकि यूरोप व अमरीका में खाद्य गुणवत्ता मानक बहुत ऊंचे और कठोर हैं परन्तु भारत में इनमें सभी प्रकार के सुरक्षित व असुरक्षित रंगों का खुला इस्तेमाल किया जाता है। 
 
न सिर्फ स्ट्रीट फूड में, जहां ज्यादातर मामलों में इस्तेमाल किए जाने वाले पानी में सिक्के की अत्यधिक मात्रा होती है बल्कि तेल, मसालों और यहां तक कि प्रयुक्त सब्जियों और फलों तक की भी खाद्य सुरक्षा के लिहाज से पड़ताल नहीं की जाती। यहां तक कि अनेक रेस्तरांओं में भी नहीं।
 
इसीलिए मैगी नूडल्स पर प्रतिबंध को ‘नए जिम्मेदार भारत’ के एक प्रतीक के रूप में देखा गया था लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इसे जांच में निरापद बताते यह कहा गया है कि कम्पनी 2-3 सप्ताह में उत्पादन फिर से शुरू कर सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय भारत के राष्ट्रीय खाद्य नियामक, खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-F.S.S.A.I.) के कार्यकलाप पर प्रश्र चिन्ह लगाता है कि जिस उत्पाद को इंसानी इस्तेमाल के लिए कोलकाता की प्रयोगशाला ने ‘असुरक्षित और विनाशकारी’ करार दिया था वह अब खाने के लिए सुरक्षित कैसे हो गया? क्या कोलकाता प्रयोगशाला की रिपोर्टें गलत थीं या मुम्बई वाली प्रयोगशाला की रिपोर्ट में कोई गड़बड़ है?
 
नैस्ले इंडिया हमेशा इस बात पर कायम रही है कि मैगी नूडल्स सुरक्षित हैं और उन्होंने 20 करोड़ पैकेटों से चुन कर इसके 3500 परीक्षण मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में करवाए हैं जिन्होंने इन्हें निरापद बताया है। इनके अलावा इंगलैंड, अमरीका, सिंगापुर व आस्ट्रेलिया सहित अनेक देशों ने भारत में निर्मित मैगी नूडल्स को निरापद पाया।
 
यह विवाद पैदा होने के बाद नैस्ले इंडिया ने अपने पुराने मैनेजिंग डायरैक्टर को हटा कर सुरेश नारायणन को नियुक्त किया है। मैगी पर प्रतिबंध लगाए जाने के पश्चात नैस्ले इंडिया को 30 जून को समाप्त होने वाली तिमाही में 64.4 करोड़ रुपए का घाटा पड़ा है, जबकि इसे भारतीय बाजार से मैगी को वापस लेने और नष्टï करने पर 451.6 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े।
 
इस सारे मामले में विचारणीय मुद्दा केवल यह नहीं है कि भारतीय अधिकारियों के काम करने के तरीके के चलते एक विदेशी कम्पनी को भारी घाटा उठाना पड़ा बल्कि विचारणीय मुद्दा भारतीय उद्योगों के प्रति प्रतिबद्धता और सम्मान को लगने वाले आघात का है। इसका सामना इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी करना पड़ रहा है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या हम पैकेट बंद खाद्य उद्योग के जोखिमों को गंभीरतापूर्वक ले रहे हैं? 
 
भारतीय अफसरशाही अभी भी ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ के हैंग ओवर की शिकार है जिसका इस्तेमाल आम तौर पर किसी विदेशी कम्पनी पर प्रतिबंध लगा कर स्वयं को अधिक राष्टï्रभक्त दिखाने के लिए किया जाता है। 
 
अनेक लोगों का आरोप है कि मैगी पर प्रतिबंध लगाने का यह भी एक कारण है कि एक भारतीय ब्रांड बाजार में आने का इच्छुक था और वह चाहता था कि विदेशी ब्रांड को ठिकाने लगा कर उसकी सहायता की जाए।
 
उस समय जबकि हमारे प्रधानमंत्री विदेशी निर्माताओं को ‘मेक इन इंडिया’ के लिए निमंत्रित कर रहे हैं, क्या हमारी सरकार और सम्बद्ध अधिकारियों को अपने गुणवत्ता मानक कठोर करते हुए अपनी प्रयोगशालाओं को अपडेट करने और केवल विदेशी खाद्य पदार्थों पर ही नहीं बल्कि भारतीय खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच की दिशा में कदम नहीं उठाना चाहिए?
 
बेशक बाजार में मैगी की वापसी कुछ समय लेगी क्योंकि नैस्ले को अभी भी एक बार फिर से एफ.एस.एस.ए.आई. सहित संबंधित अधिकारियों से अनुमति लेनी है परन्तु आवश्यकता इस बात की है कि भारत में खाद्य पदार्थों की जांच संबंधी कार्यप्रणाली और इसके अधिकारियों की सूझबूझ में सुधार किया जाए। तभी भारतीय उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में स्थान मिल पाएगा और अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों को भारत में। 

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