मद्रासी बनाम बिहारी : फिर सिर उठाने लगा क्षेत्रवाद

punjabkesari.in Wednesday, Mar 08, 2023 - 04:33 AM (IST)

एक पुरानी कहावत है ‘बिना आग के धुंआ नहीं उठता’। यदि तमिलनाडु की हौजरी राजधानी में पिछले कुछ सप्ताहों से धीमी आग में धुंआ धीरे-धीरे उठ रहा हो और वह कोयम्बटूर से लेकर चेन्नई तक फैल रहा हो तो क्या होता है? यहां पर अप्रमाणित दावों के बीच अफवाहें फैल रही हैं कि उत्तर भारत के प्रवासी मजदूरों पर हमला किया जा रहा है और इस बारे में बिहार और उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया पर अनेक पोस्टें प्रसारित की जा रही हैं। यदि यह सच है तो ‘मेरा भारत एक’ पर यह एक घातक हमला है।

इस घटना ने स्टालिन की द्रमुक सरकार को चकित कर दिया, किंतु बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रवासी मजदूरों पर हमलों से वह सख्ती से निपटे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘बिहार के मजदूर हमारे मजदूर हैं और हम उन्हें सुरक्षा देंगे।’’ जबकि राज्य पुलिस ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई पर इन हमलों को द्रमुक से जोडऩे, दुष्प्रचार करने तथा धर्म और जाति के नाम पर दो समूहों के बीच दुश्मनी फैलाने के लिए मुकद्दमा दायर किया है।

बात यहीं समाप्त नहीं हुई। द्रमुक के दो वरिष्ठ नेताओं को कैमरे पर प्रवासी मजदूरों के बारे में अप्रिय टिप्पणियां करते सुना गया, जिनमें से एक नेता ने कहा कि वे यहां केवल पानी-पूरी बेचने लायक हैं। इसके साथ-साथ कुछ तमिल पाॢटयों और स्वयंभू सामाजिक संगठनों और उनकी सोशल मीडिया पोस्टों में प्रवासी कामगारों को निशाना बनाया गया कि वे कम मजदूरी, अधिक समय तक काम करने, खराब स्थितियों में रहने और खराब कार्य दशाओं को स्वीकार कर स्थानीय लोगों के रोजगार को छीन रहे हैं।

राज्य में प्रवासी मजदूर अनेक उद्योगों की रीढ़ की हड्डी बन गए हैं क्योंकि उनका स्थान कोई नहीं ले सकता। गलियों के कोनों में चाय की दुकान से लेकर घरेलू नौकर, ड्राइवर से लेकर ब्यूटी पार्लर, गारमैंट फैक्टरी आदि में वे नियोजित हैं और स्थानीय भाषा सीख रहे हैं। इसका उदाहरण यह है कि राज्य में हॉस्पिटैलिटी उद्योग और निर्माण में 70 प्रतिशत कामगार और कपड़ा इकाइयों में 20 प्रतिशत कामगार प्रवासी मजदूर हैं।

आशानुकूल द्रमुक के भाजपा और गैर-भाजपा आलोचकों के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया। इसमें स्टालिन के भाषण की एक पुरानी वीडियो क्लिप पोस्ट की गई है, जिसमें कहा गया है कि भाजपा राजनीतिक और चुनावी कारणों से राज्य में हिन्दी भाषी लोगों को ला रही है। भाजपा की बिहार इकाई ने दावा किया है कि जब 12 बिहारी प्रवासियों की हत्या की जा रही थी तो राजद के उपमुख्यमंत्री स्टालिन का जन्म दिन मना रहे थे। इसके बाद मजदूरों के साथ दुव्र्यवहार का एक वीडियो जारी किया गया और राज्य सरकार पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने यह मुद्दा तमिलनाडु सरकार के साथ नहीं उठाया, जिसका राज्य सरकार ने जोरदार खंडन किया है।

द्रमुक समर्थक और उसकी सहयोगी कांग्रेस का कहना है कि ये अफवाहें ऐसे समूहों द्वारा जानबूझकर फैलाई जा रही हैं, जो स्टालिन के जन्मदिन के समारोह से परेशान हैं क्योंकि इसमें विभिन्न विपक्षी दल एकजुट होकर एक मंच पर आए हैं और वे अगले वर्ष लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा का मिलकर मुकाबला करेंगे। देश में क्षेत्रीय विविधता के कारण जन्म स्थान, भाषा, भोजन, रीति-रिवाजों आदि के बारे में हमारी पूर्व धारणा होती है, जिसके चलते हम विभिन्न समुदायों को वैचारिक दृष्टि से या संसाधनों के रूप में एक दूसरे के विरुद्ध पाते हैं।

ये अंतर लोगों को उनके बारे में आशंकित कर देते हैं और हम जैसे लोग एकजुट हो जाते हैं। वर्ष 2012 में एस.एम.एस. के द्वारा पूर्वोत्तर के लोगों के बारे में कहा गया कि तुरंत भाग जाओ अन्यथा परिणाम भुगतने होंगे और वे लोग बेंगलूर, हैदराबाद, मुंबई, पुणे आदि से अपने राज्यों में वापस चले गए। इससे पूर्व 2008 में महाराष्ट्र में राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण सेना ने कहा कि वह महाराष्ट्र को सभी उत्तर भारतीयों से मुक्त करना चाहते हैं।

तमिलनाडु में क्षेत्रवाद ने अपना सिर 60 के दशक के आरंभ में उठाया था, जहां केन्द्र के प्रति लोगों की अलग-थलग भावना के कारण द्रमुक का जन्म हुआ। बाद में द्रमुक में विभाजन होकर अन्नाद्रमुक का गठन किया गया। उसके बाद यह क्षेत्रवाद महाराष्ट्र तक पहुंचा, जहां पर कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे मराठियों के स्वयंभू हितैषी बने। उन्होंने मराठी मानुस के नाम पर शिव सेना का गठन किया, जिसके चलते मुंबई में 28 प्रतिशत मराठियों को छोड़कर हर कोई बाहरी बताया गया।

1970 के दशक में विदेशियों के मुद्दे पर असम जला, जब आसू ने बंगलादेश से अवैध अप्रवासियों को बाहर करने के नाम पर आंदोलन शुरू किया। वर्ष 2003 में असमियों ने 30 हजार बिहारियों को गुवाहाटी में भर्ती परीक्षा में भाग नहीं लेने दिया। बिहारियों ने इसका प्रत्युत्तर पूर्वोत्तर से आने वाली रेलगाडिय़ों को रोक कर दिया, वहां के यात्रियों को खदेड़ा और कुछ लोगों के साथ मारपीट की तथा कुछ मारे गए। इसके प्रत्युत्तर में असम में 52 बिहारी मारे गए।

नि:संदेह इस दुखद स्थिति का कारण यह है कि असली भारत हमारे राजनेताओं के चक्र में फंसा हुआ है। हमारे नेताओं के वोट बैंक के षड्यंत्र के चलते उत्तर-दक्षिण, धर्मनिरपेक्ष, सांप्रदायिक आदि मतभेद पैदा हो रहे हैं। प्रवासी मजदूरों को सांप्रदायिक चेहरा पहनाया जा रहा है, जबकि भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में 80 प्रतिशत श्रम शक्ति प्रवासी मजदूर हैं और वे रोजगार के मामले में सबसे निचले स्तर पर हैं।

यही नहीं, धरती पुत्र के मुद्दे को और बढ़ावा देने के लिए स्थानीय युवक अपने क्षेत्रों में, जहां पर विशेषकर नए उपक्रम या सार्वजनिक क्षेत्र के संयंत्र या अन्य परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, रोजगार में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वस्तुत: इसके लिए कई आंदोलन भी चलाए जा चुके हैं। फिर इस समस्या का समाधान क्या है? क्या हम इस कट्टरवाद को बढ़ावा देते रहेंगे? क्या हम वोट बैंक की राजनीति के समक्ष झुक जाएंगे?

केन्द्र और राज्यों दोनों को ही हमारी सामाजिक प्रणाली की इन खामियों को दूर करना होगा और किसी विशेष समुदाय के विरुद्ध ङ्क्षहसा की घटनाओं के विरुद्ध कठोर उपाय करने होंगे तथा प्रवासी मजदूरों के बेहतर भविष्य के लिए कदम उठाने होंगे। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश के सभी नागरिकों को पूरे देश में रोजगार के समान अवसर मिलने चाहिएं।त्रासदी यह है कि हमारे राजनेता जाने-अनजाने में क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते हैं और इस तरह राष्ट्रीय एकता के साथ खिलवाड़ करते हैं।

समय की मांग है कि हम इस मुद्दे की गंभीरता को समझें और इसके समाधान के लिए ठोस कदम उठाएं। स्थानीय या बाहरी के मुद्दे को एक बड़ा मुद्दा क्यों बनने दिया जाना चाहिए? आखिर भारत राज्यों का संघ है। हमें मद्रासी-बिहारी से परे देखना होगा। जब वोट बैंक की राजनीति हमारे राजनेताओं की राजनीतिक विचारधारा और उनके दृष्टिकोण को निर्देशित करेगी और जब प्रत्येक मुद्दे को वोट बैंक के दृष्टिकोण से तोला जाएगा, तो आम आदमी के लिए आशा की कोई किरण नहीं बचेगी। क्या हमारे राजनेता इस पर ध्यान देंगे? -पूनम आई. कौशिश


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