‘लव जेहाद : अदालतों के फैसले से फिर जागी उम्मीद’

Thursday, Feb 11, 2021 - 04:32 AM (IST)

ऐसे समय में जब भारतीय जनता पार्टी के कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और हरियाणा तथाकथित ‘लव जेहाद’ के खिलाफ प्रतिगामी कानून ला रहे हैं, तो देश की विभिन्न अदालतें वयस्कों को अपने जीवन साथी चुनने के अधिकार को रेखांकित करने के लिए कदम बढ़ा रही हैं। इस सप्ताह के शुरू में सर्वोच्च न्यायालय ने न केवल इस बिंदू को रेखांकित किया बल्कि इस बात पर भी जोर दिया कि यह ऐसा समय है जब समाज जोड़ों को तंग किए बिना अंतर्जातीय और अंत:धर्म विवाह को स्वीकार करना सीखे। 

सर्वोच्च न्यायालय की पीठ जो न्यायाधीश संजय किशन कौल और ऋषिकेश राय से संबंधित थी, ने आगे बढ़ते हुए जोर दिया कि इस तरह के सामाजिक संवेदनशील मामलों से निपटने के लिए पुलिस कर्मियों के लिए विशेष दिशा-निर्देश तथा ट्रेनिंग मॉड्यूल की जरूरत है। इसलिए जोड़ों को कानून के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त हो। कानून को माता-पिता या किसी और के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने चाहिएं। 

इस बात पर भी ध्यान दिया गया कि शिक्षित युवा लड़के और लड़कियां अपने जीवनसाथी अपने दम पर चुन रहे हैं जिसे समाज और माता-पिता द्वारा झुकाव के तौर पर देखा जा रहा है। मगर पुलिस प्रशासन ऐसे जोड़ों को नुक्सान से बाहर रखने के लिए बाध्य थे अगर कानून का उल्लंघन नहीं होता। कर्नाटक में एक मामले में दर्ज एफ.आई.आर. को रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि वयस्कों को यह कहते हुए अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है कि यह ऐसा समय है जब समाज को अंतरजातीय और अंत:धर्म शादियों को स्वीकार करना सीखना चाहिए। ऐसे मामलों से निपटने के लिए पुलिस अधिकारियों को बातचीत तथा ट्रेनिंग होने पर भी अदालत ने जोर दिया। 

एक अन्य महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों को तोड़ दिया जिसके तहत जोड़ों को शादी करने के अपने इरादे को 30 दिन के पब्लिक नोटिस को प्रकाशित करना अनिवार्य था जो अक्सर उन्हें सतर्क समूह और पारिवारिक सदस्यों से धमकी और यहां तक कि हिंसा से उजागर करता है। उत्तर प्रदेश प्रोहिब्शन ऑफ अनलॉफुल कन्वर्शन ऑफ रिलीजन ऑडनैंस 2020 जो शादी के लिए धर्म परिवर्तन को एक अपराध मानता है, के पास इस प्रावधान का अधिक कठोर संस्करण है जो जिला मैजिस्ट्रेट को 60 दिन का नोटिस देने और वास्तविकता का पता लगाने के लिए पुलिस जांच की मांग करता है। इस कानून का उद्देश्य  स्पष्ट रूप से अंत:धर्म विवाहों को हतोत्साहित करता है। 

मध्यप्रदेश सरकार ने एक कदम और आगे जाते हुए अंत:धर्म शादियों को राज्य में करने वाले लोगों के लिए 10 वर्ष की जेल का प्रावधान किया है जो महिलाओं, नाबालिगों तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का धार्मिक परिवर्तन करेंगे। इसमें एक विशेष खंड भी जोड़ा गया कि उन लोगों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की जाएगी जो लोग अपने मूल धर्म में लौट आते हैं। 

लोगों का मानना है कि यहां पर हिंदू लड़कियों के साथ शादी और उन्हें अपने धर्म में परिवर्तन करने के लिए मुस्लिम वर्ग के बीच एक षड्यंत्र है। उनका मानना है कि अगले कुछ वर्षों में मुस्लिम जनसंख्या देश में ङ्क्षहदुओं  की जनसंख्या को पार कर जाएगी और देश एक मुस्लिम राष्ट्र में बदल जाएगा। इस तरह की आशंका को खारिज किया जा सकता है। इस तरह की धारणा चरमपंथी तामझाम के बीच असुरक्षा की भावना से भरी हुई है। भले ही मुसलमानों की आबादी भारतीय आबादी के 15 प्रतिशत से कम हो। हालांकि अदालतों को अभी विवादास्पद लव जेहाद विरोधी कानूनों को खत्म करना है।-विपिन पब्बी
 

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