राजनेताओं के प्रेम प्रसंग

punjabkesari.in Monday, Dec 09, 2024 - 04:46 AM (IST)

हमेशा की तरह राजनेताओं के प्रेम प्रसंग लगातार चर्चा में रहते हैं। यह बात दूसरी है कि ऐसे सभी मामलों को बलपूर्वक दबा दिया जाता है। जल्दी ही ऐसी घटनाएं जनता के मानस से गायब हो जाती हैं। पर दुनिया भर के राजनेताओं के चरित्र और आचरण पर जनता और मीडिया की पैनी निगाह हमेशा लगी रहती है। जब तक राजनेताओं के निजी जीवन पर परदा पड़ा रहता है, तब तक कुछ नहीं होता। पर एक बार सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। फिर तो उस राजनेता की मीडिया पर ऐसी धुनाई होती है कि कुर्सी भी जाती है और इज्जत भी। ज्यादा ही मामला बढ़ जाए, तो आपराधिक मामला तक दर्ज हो जाता है।

विरोधी दल भी इसी ताक में लगे रहते हैं और एक-दूसरे के खिलाफ सबूत इकट्ठे करते हैं। उन्हें तब तक छिपाकर रखते हैं, जब तक उससे उन्हें राजनीतिक लाभ मिलने की परिस्थितियां पैदा न हो जाएं। मसलन चुनाव के पहले एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने का काम जमकर होता है। पर यह भारत में ही होता हो, ऐसा नहीं है। उन्मुक्त जीवन व विवाह पूर्व शारीरिक संबंध को मान्यता देने वाले अमरीकी समाज में भी जब उनके राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का अपनी सचिव मोनिका लेविंस्की से प्रेम संबंध उजागर हुआ तो अमरीका में भारी बवाल मचा था। इटली, फ्रांस व इंगलैंड जैसे देशों में ऐसे संबंधों को लेकर अनेक बार बड़े राजनेताओं को पद छोडऩे पड़े हैं। 

मध्य युग में फ्रांस के एक समलैंगिक रूचि वाले राजा को तो अपनी दावतों का अड्डा पैरिस से हटाकर शहर से बाहर ले जाना पड़ा। क्योंकि आए दिन होने वाली इन दावतों में पैरिस के नामी-गिरामी समलैंगिक पुरुष शिरकत करते थे और जनता में उसकी चर्चा होने लगी थी। आजाद भारत के इतिहास में ऐसे कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं, जहां मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों आदि के प्रेम-प्रसंगों पर बवाल मचते रहे हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री जी.बी. पटनायक पर समलैंगिकता का आरोप लगा था। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल एन.डी.तिवारी का 3 महिला मित्रों के साथ शयनकक्ष का चित्र टी.वी. चैनलों पर दिखाया गया। 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के संबंधों को लेकर पार्टी में काफी विरोध हुआ था। ऐसे अनेक मामले हैं। पर यहां कई सवाल उठते हैं। वर्तमान समय में भी जितने भी धर्मों के नेता हैं, वे गारंटी से यह नहीं कह सकते कि उनका समूह शारीरिक वासना की पकड़ से मुक्त है। ऐसे में राजनेताओं से यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे भगवान राम की तरह एक पत्नी व्रतधारी रहेंगे? विशेषकर तब जब सत्ता का वैभव सुंदरियों को उन्हें अर्पित करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। ऐसे में मन को रोक पाना बहुत कठिन काम है।

प्रश्न यह उठता है कि यह संबंध क्या पारस्परिक सहमति से बना है या सामने वाले का शोषण करने की भावना से? अगर सहमति से बना है तो सामने वाला किसी लाभ की अपेक्षा से स्वयं को अर्पित कर रहा है तो राजनेता का बहुत दोष नहीं माना जा सकता। सिवाय इसके कि नेता से अनुकरणीय आचरण की अपेक्षा की जाती है। किन्तु अगर इस संबंध का आधार किसी की मजबूरी का लाभ उठाना है, तो वह सीधे-सीधे दुराचार की श्रेणी में आता है। लोकतंत्र में उसके लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। यह तो राजतंत्र जैसी बात हुई कि राजा ने जिसे चाहा उठवा लिया। 

ऐसे संबंध प्राय: तब तक उजागर नहीं होते, जब तक कि संबंधित व्यक्ति चाहे पुरुष हो या स्त्री, इस संबंध का अनुचित लाभ उठाने का काम नहीं करता। जब वह ऐसा करता है, तो उसका बढ़ता प्रभाव, विरोधियों में ही नहीं, अपने दल में भी विरोध के स्वर प्रबल कर देता है। वैसे शासकों से जनता की अपेक्षा होती है कि वे आदर्श जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। पर अब हालात इतने बदल चुके हैं कि राजनेताओं को अपने ऐसे संबंधों का खुलासा करने में संकोच नहीं होता। 

फिर भी जब कभी कोई असहज स्थिति पैदा हो जाती है, तो मामला बिगड़ जाता है। फिर शुरू होता है, ब्लैकमेल का खेल जिसकी परिणति पैसा या हत्या दोनों हो सकती है। जो राजनेता पैसा देकर अपनी जान बचा लेते हैं, वे उनसे बेहतर स्थिति में होते हैं जो पैसा भी नहीं देते और अपने प्रेमी या प्रेमिका की हत्या करवाकर लाश गायब करवा देते हैं। इस तरह वे अपनी बर्बादी का खुद इंतजाम कर लेते हैं। 

मानव की इस प्रवृत्ति पर कोई कानून रोक नहीं लगा सकता। आप कानून बनाकर लोगों के आचरण को नियंत्रित नहीं कर सकते। यह तो हर व्यक्ति की अपनी समझ और जीवन मूल्यों से ही निर्धारित होता है।अगर यह माना जाए कि मध्य युग के राजाओं की तरह राजनीति के समर में लगातार जूझने वाले राजनेताओं को बहुपत्नी या बहुपति जैसे संबंधों की छूट होनी चाहिए तो इस विषय में बाकायदा कोई व्यवस्था की जानी चाहिए। ताकि जो बिना किसी बाहरी दबाव के, स्वेच्छा से, ऐसा स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं, उन्हें ऐसा जीने का हक मिले। पर यह सवाल इतना विवादास्पद है कि इस पर दो लोगों की एक राय होना सरल नहीं। इसलिए देश, काल और वातावरण के अनुसार व्यक्ति को व्यवहार करना चाहिए, ताकि वह भी न डूबे और समाज भी उद्वेलित न हो। -विनीत नारायण


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