‘कमल’ से कमल पर वार

punjabkesari.in Saturday, Mar 07, 2020 - 03:55 AM (IST)

ऐसा  प्रतीत हो रहा है कि राज्यों के चुनावों में अपनी एक के बाद एक हार के बाद भाजपा ने आप्रेशन लोटस (कमल) द्वारा राज्य सरकारों को गिराने से अपना कदम पीछे नहीं हटाया। कुछ नाखुश विधायकों को खरीद कर बहुमत से कम बहुमत पर बनी राज्य सरकारों को गिराने की कोशिश की जा रही है। कर्नाटक और गोवा में इसके निरंतर प्रयासों की तरह भाजपा मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही करना चाहती है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के 114 विधायकों के सामने भाजपा के पास 107 विधायक हैं। 

भाजपा 15 साल पुराने अपने गढ़ को खोने के अपमान को नहीं भूली है। वह कमलनाथ सरकार को पछाडऩे में लगी है। कमलनाथ ऐसे नेता के रूप में जाने जाते हैं जो जमीनी स्तर पर कार्य करते हैं जो यह जानते हैं कि झुंडों का प्रबंधन कैसे किया जाता है। भाजपा तुनकमिजाज कांग्रेसी को उकसाने से हट नहीं रही जिसके नेता निश्चित तौर पर थोड़ा-सा भी क्षेत्र भाजपा के हवाले करना नहीं चाहते। कांग्रेस की कठिन परिस्थिति में गौर करें तो उसके पास कमलनाथ, अमरेन्द्र सिंह तथा अशोक गहलोत जैसे दिग्गज बचे हैं जिन्होंने अपने-अपने गढ़ कायम कर रखे हैं और संघवाद को जिंदा रखा हुआ है। कांग्रेस का दावा है कि वर्तमान संकट में 8 ऐसे विधायक हैं जिन्हें भाजपा द्वारा चार्टर विमान से गुरुग्राम ले जाया गया जहां पर उन्हें एक आलीशान होटल में रखा गया। हालांकि मध्य रात्रि के एक नाटक के दौरान चार को बचाने में कांग्रेस कामयाब हुई। बाकी के विधायकों को बेंगलूर में शिफ्ट कर दिया गया मगर वे भी शाम तक पार्टी के खेमे में पहुंच गए। 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने दावा किया है कि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा नरोत्तम मिश्रा इन विधायकों को 35 करोड़ रुपए दे रहे हैं। इस बीच भाजपा ने पूरे घटनाक्रम में अपना हाथ होने से इंकार किया है। हालांकि चार्टर विमान एक वरिष्ठ पार्टी नेता का था। भाजपा ने 26 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनावों से पहले कांग्रेस पर इस नाटक का आरोप लगाया है। भाजपा ने अपनी दो सीटों को बरकरार रखने के लिए भरपूर कोशिश की है और कांग्रेस एक से बढ़कर दो सीटें चाहती है। कांग्रेस के पास इस समय अधिक विधायक हैं। 

कुछ निर्दलीयों, सपा और बसपा के समर्थन से राज्य में सत्ता में आने के बाद से कांग्रेस कमजोर रही है। राज्य में पार्टी के भीतर गुटबाजी दिखाई देती है और भाजपा इस झगड़े का फायदा उठाना चाहती है। 2018 का जनादेश अपने आप में खंडित था। नतीजे न तो कांगे्रस के, न ही भाजपा के पक्ष में दिखाई दिए। भाजपा ने अपने लोकतांत्रिक प्रदर्शन से अस्थिरता प्रयासों को नए सिरे से जन्म दिया। कमलनाथ को पार्टी के भीतर और बाहर दोनों तरफ से घेरा जा रहा है। कमलनाथ जैसे अनुभवी रणनीतिकार को सभी मोर्चों पर लड़ाई लडऩी है। सबसे पहले केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 1984 सिख विरोधी दंगों से संबंधित 7 मामलों को फिर से खोलने का फैसला किया जिसमें कमलनाथ को फंसाने की कोशिश की गई। इससे आगे निकलते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) ने कमलनाथ के भतीजे को 354.51 करोड़ के कथित बैंक लोन फ्राड के संबंध में गिरफ्तार किया। कमलनाथ के पास मुख्यमंत्री पद तथा प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष का चार्ज भी है। महत्वाकांक्षी युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी नेतृत्व पर अपना दावा ठोंक रहे हैं। उन्होंने भी विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के लिए अपने योगदान की बात कही थी और इसका श्रेय लेना चाहा था। 

कमलनाथ ने स्वयं दीवार पर लिखे लेख को केवल इसलिए नजरअंदाज कर दिया क्योंकि भाजपा के विधायकों को घूस देने की चेतावनी दिग्विजय सिंह ने दी थी। सी.एम. काफी उतावले थे, उन्होंने विधायकों से कहा कि अगर यह पैसा मुफ्त में दिया जा रहा है तो वे यह पैसा ले लें। सोनिया गांधी भले ही पार्टी प्रमुख के रूप में लौटी हों लेकिन दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे पुराने योद्धाओं को खुश रखने के लिए वह सिंधिया खेमे द्वारा विद्रोह और सम्भवत: दल-बदल का जोखिम उठा रही हैं। कमलनाथ मुख्यमंत्री के रूप में पिछली दिसम्बर से भाजपा के लगातार अवैध प्रयासों के बावजूद अपनी चमक को बढ़ा रहे हैं। पार्टी के भीतर उन्हें वास्तविकता से तालमेल बिठाना होगा। 


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