खनन क्षेत्र में नए अवसरों की तलाश
punjabkesari.in Thursday, Aug 12, 2021 - 05:09 AM (IST)

जब भारत ने 1991 में नई औद्योगिक नीति को अपनाया, तो हम उदार, वैश्विक और बाजार संचालित आॢथक विश्व व्यवस्था का हिस्सा बन गए और हमारे लगभग सभी व्यापार क्षेत्र स्वस्थ प्रतिस्पर्धा, नई कंपनियों और नए निवेश के लिए खुल गए। हालांकि, भारत का खनन क्षेत्र, नई औद्योगिक नीति से अलग और अप्रभावित रहा। नई औद्योगिक नीति में की गई कल्पना के अनुरूप, खनन क्षेत्र में न तो कोई घरेलू या विदेशी निवेश आया और न ही वाणिज्यिक खनन के लिए कंपनियों की महत्वपूर्ण भागीदारी सामने आई।
खान एवं खनिज विकास और विनियमन (एम.एम.डी.आर.) अधिनियम 1957 द्वारा खानों और सभी खनिजों के विकास और विनियमन के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित किया गया था। भारत के खनन क्षेत्र का भाग्य अपरिवर्तित रहा क्योंकि यह दशकों तक प्रतिबंधित (कैप्टिव) खनन और अंतिम उपयोग प्रतिबंध की बाधाओं के अधीन रहा, जिसमें कोयला ब्लॉक पहले-आओ-पहले-पाओ के आधार पर आबंटित किए जाते थे। परिणामस्वरूप, कोयले के लिए दुनिया का चौथा सबसे बड़ा भंडार, अभ्रक और बॉक्साइट के लिए 5वां सबसे बड़ा तथा लौह अयस्क और मैंगनीज के लिए 7वां सबसे बड़ा भंडार होने के बावजूद, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हम मु य रूप से आयात पर निर्भर हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में सरकार ने 2015 में एम.एम.डी.आर. अधिनियम में संशोधन पेश किया और खनन उद्योग को पारदर्शी नीलामी व्यवस्था के तहत लाया गया। 2015 के संशोधन का एक अन्य महत्वपूर्ण सुधार था- खनन पट्टाधारकों के योगदान से खनन प्रभावित क्षेत्रों के कल्याण के लिए जिला खनिज फाऊंडेशन (डी.एम.एफ.) की स्थापना करना। इन सुधारों के जरिए खनिज ब्लॉकों को मनमाने ढंग से आबंटित करने की प्रथा समाप्त कर दी गई। इस प्रकार भारत के खनन क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तनों की शृंखला की शुरूआत हुई।
अधिनियम और संबंधित नियमों में संशोधन के जरिये खनन क्षेत्र में ‘कारोबार में आसानी’ को ध्यान में रखते हुए अधिकांश परिवर्तन किए गए हैं। पट्टेदार को खुले बाजार में खनिजों की बिक्री की अनुमति देने से खनन उद्योग में उत्पादन और दक्षता बढ़ाने में मदद मिलेगी। दूसरे, इन सुधारों के माध्यम से, हमारा लक्ष्य उन सरकारी कंपनियों के खनिज ब्लॉकों को मुक्त करना है, जिन्हें अभी तक विकसित नहीं किया गया है। इस संशोधन के बाद, राज्य सरकारों द्वारा कई खनिज ब्लॉकों को आरक्षित की श्रेणी से हटाया और उन्हें नीलाम किया जाएगा। 2021 के संशोधन के माध्यम से किया गया एक अन्य महत्वपूर्ण सुधार है- एम.एम.डी.आर. अधिनियम की धारा 10(ए)(2)(बी) के तहत विरासत के मुद्दों को समाप्त करना। इस सुधार से लगभग 500 ब्लॉक नीलामी व्यवस्था के तहत आ जाएंगे, जो अब तक लंबित मामलों के कारण बंद पड़े थे।
पिछले कुछ दशकों से खनिजों की वैश्विक मांग में लगातार वृद्धि हुई है और नवीनतम प्रौद्योगिकियों की भारी मांग के चलते इसमें और बढ़ोतरी होने की स भावना है। अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ उपभोक्ता उत्पादों, लोक अभियांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिंग), रक्षा क्षेत्र, परिवहन और ऊर्जा (बिजली) उत्पादन के बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा करने के लिए खनिजों की आपूॢत को निरंतर बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
खनिजों की बढ़ती मांग को देखते हुए जरूरी हो गया है कि देश में खनिजों के उत्पादन को बढ़ाया जाए, इसके लिए हमारी सरकार ने 2015 में राष्ट्रीय खनन अन्वेषण न्यास (एन.एम.ई.टी.) की स्थापना की थी और इस पहल को आगे बढ़ाते हुए हमने एन.एम.ई.टी. को अब एक स्वायत्त शासी निकाय बना दिया है। मान्यताप्राप्त निजी एजैंसियों को अनुमति दे दी है कि वे इस वर्ष किए गए खनन सुधारों के अनुरूप खनन कार्य शुरू करें।
2021 के खनन सुधारों के तहत एक और बहुत महत्वपूर्ण संशोधन खनिजों के एक नए समूह का गठन है, जिसे भूस्तरीय (सतही) खनिज कहा जाता है- जिसमें चूना पत्थर, लौह अयस्क, बॉक्साइट और कोयला एवं लिग्नाइट शामिल हैं। खनिजों के इस वर्ग के लिए, खनन पट्टे के सन्दर्भ में अन्वेषण मानकों की आवश्यकताओं को युक्तिसंगत बनाते हुए इसे जी3 स्तर तक और समग्र पट्टे के लिए जी4 स्तर तक कम किया गया है तथा नीलामी व्यवस्था को आसान बनाकर नीलामी में अधिक ब्लॉकों की शामिल करने की सुविधा प्रदान की गई है । जिन खदानों में काम नहीं हो रहा है, उनके लिए स बन्धित राज्य पुन: आबंटन की प्रक्रिया प्रार भ कर रहे हैं, और सार्वजनिक उपक्रमों की उन खदानों, जिनमें अभी तक उत्पादन शुरू नहीं किया गया है, की भी राज्य सरकारों द्वारा नीलामी की जा रही है। केंद्र सरकार के निरंतर प्रयासों और राज्य सरकारों के सहयोग के कारण, यह गर्व की बात है कि 17 ब्लॉकों की नीलामी की गई है, 27 नए एन.आई.टी. जारी किए गए हैं और आने वाले महीनों के लिए 103 एन.आई.टी. हेतु प्रक्रिया चालू कर दी गई है।
ये सुधार, केंद्र और खनिज-संपन्न राज्यों के बीच मजबूत सहकारी संघवाद के प्रतीक हैं। ऊर्जा क्षेत्र की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने और भविष्य में खनिजों की आपूॢत सुनिश्चित करने के लिए भारत को स्थायी और सामाजिक रूप से उत्तरदायित्व को ध्यान में रखते हुए अन्वेषण और उत्पादन दोनों को बढ़ाने की जरूरत है। यह उस यात्रा की शुरुआत है, जिसे भारत इन सुधारों के साथ प्रधानमंत्री मोदी के आत्म-निर्भर खनन क्षेत्र और आत्म-निर्भर भारत की दिशा में शुरू कर रहा है।-प्रह्लाद जोशी (केंद्रीय कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्री)