लम्बी सियासी पारी नहीं खेल पाए ‘नेता’ बने अभिनेता

Sunday, Apr 28, 2019 - 03:00 AM (IST)

तमिल फिल्मों की ‘हीरो वरशिप’ अब उत्तर भारत की राजनीति में भी अपना प्रभाव बढ़ाने लगी है। कभी तमिल फिल्मों के हीरो रहे एम.जी. रामचंद्रन वहां के लोगों के लिए एक आदर्श थे। चार-पांच बार एम.जी.आर. की तरह ही करुणानिधि भी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। द्रविड़ राजनीति के पुरोधा करुणानिधि दक्षिण भारत के फिल्मी उद्योग से ही तो आए थे। तमिल फिल्मों के हीरो एम.जी. रामचंद्रन के तो लोग दीवाने थे। दक्षिण में एम.जी.आर. का इतना क्रेज था कि लोगों ने उनके मंदिर बना लिए। दशकों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। उन्हीं की शिष्या कुमारी जयललिता न केवल तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं, बल्कि वर्षों आल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कषगम की भी यह फिल्मी हीरोइन अध्यक्षा रहीं।

यही हाल आंध्रप्रदेश में पौराणिक फिल्मों के हीरो एन.टी. रामाराव का रहा। आंध्रप्रदेश के कामयाब मुख्यमंत्री रहे। भारत की राजनीति में भी रामाराव-एक फिल्मी हीरो ने अपना प्रभाव छोड़ा। आज भी तेलुगु देशम पार्टी के चंद्रबाबू नायडू आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उन्हें एन.टी. रामाराव का दामाद होने का सौभाग्य प्राप्त है। दक्षिण में रजनीकांत, कमल हासन जैसे सफल फिल्मी नायक राजनीति में कदम बढ़ाने लगे हैं। केरल में मलयालम फिल्मों के हीरो मधु, एस. नजीर और एक्ट्रैस शीला को लोग देवता मानते हैं। और भी कई एक्टर जहां फिल्मों में कामयाब हैं वहीं राजनीति में भी उतने ही माहिर हैं। 

दक्षिण भारत में आज भी लोगों में फिल्मी नायकों के प्रति भावनात्मक लगाव है। दक्षिण भारत के सिने प्रेमी इन एक्टर्स और एक्ट्रैसिज के दीवाने हैं। जहां उत्तर भारत में सिनेमाघर बंद होते जा रहे हैं, वहीं दक्षिण भारत में सिनेमाघरों की गिनती उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। दक्षिण भारत की संस्कृति उत्तर भारत की संस्कृति से पूर्णतया भिन्न है। दक्षिण भारत में फिल्मों से दर्शकों का प्यार पागलपन की हद तक देखा गया है। कुमारी जयललिता, एम.जी. रामचंद्रन, एन.टी. रामाराव जहां सफल फिल्मी हीरो थे, वहीं राजनीति में भी पूर्ण पारंगत थे। दक्षिण भारत के सिने दर्शकों के मनों में बैठे हैं उनके फिल्मी हीरो। दक्षिण में ‘हीरो वरशिप’ है। अपने हीरो को जान से ज्यादा प्यार करते हैं। 

उसी की देखा-देखी उत्तर भारत की राजनीतिक पाॢटयां भी धड़ाधड़ फिल्मी हीरोज पर दाव लगाने लगी हैं। अपने कार्यकत्र्ताओं की या तो निष्ठा पर उन्हें विश्वास नहीं या उन्हें लगने लगा है कि फिल्मी हीरोज बेरोक-टोक जीत जाएंगे। एक बार तो इन राजनीतिक दलों की हांडी चढ़ जाती है। परन्तु दूसरी बार या तो जनता इन फिल्मी हीरोज को नकार देती है या ये फिल्मी हीरो राजनीति की तपिश से तौबा कर लेते हैं। ये फिल्मी हीरो राजनीति की मार नहीं सह सकते। हकीकत में राजनीति एक पूजा है, सेवा है। 

सच्चा राजनेता अपने वोटरों को देवता मानता है। एक राजनेता चौबीस घंटे अपने घर के दरवाजे खुले रखेगा, उनके ऊंच-नीच को सुनेगा। थाने-कचहरी में उनका साथ देगा। ‘न’ तो एक सच्चा राजनेता अपनी जनता को कर ही नहीं सकता। इन फिल्मी नायकों ने दौड़ा-दौड़ी नायिकाओं के इर्द-गिर्द ही की होती है। रोने के पैसे, हंसने पर भी पैसे। भागदौड़ तो धूप में ये फिल्मी हीरो कर ही नहीं सकते। कलाकार कोमल भावनाओं का प्रतीक है। राजनीति बड़ी कठिन डगर है। अपने वोटरों की गालियां खाकर भी राजनेता को मुस्कुराना पड़ता है। फिल्मी हीरो नहीं कर सकते ऐसा। अपवाद सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना हो सकते हैं। परन्तु प्राय: राजनीति में फिल्मी हीरो फेल हैं। 

फिल्मी हीरो एक फिल्मी करिश्मे की तरह एक बार जीत गए तो जीत गए, दूसरी दफा स्वयं राजनीति से किनारा कर जाएंगे। नहीं तो जनता ही उन्हें राजनीति से बेदखल कर देगी। हां, एक बात अवश्य अफसोस से कह सकता हूं कि इन फिल्मी हीरोज ने मंझे हुए राजनेताओं और राजनीति के सच्चे सेवकों की खटिया जरूर खड़ी कर दी। अगर विश्वास नहीं तो एक-एक करके उदाहरण गिनाता जाता हूं। निर्णय आप स्वयं कर लें। 

उत्तर प्रदेश के सशक्त मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम याद होगा आपको? अपने वक्त के बड़े ‘डाइनामिक’  राजनेता। उनके विरुद्ध 1984 में कांग्रेस की टिकट पर इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ा आज के महानायक अमिताभ बच्चन ने। अमिताभ बच्चन को वोट मिले 2,97,461 और हेमवती नंदन को वोट मिले 1,90,666, बेचारे बहुगुणा जी हारे क्या, उनका राजनीतिक करियर ही खत्म हो गया। पर जीतने वाले अमिताभ बच्चन दो साल में ही राजनीति से तौबा कर गए। यहां तक कि नेहरू परिवार से उनकी कटुता भी बढ़ती ही गई। और सुनो, राजनीति के भीष्म पितामह श्री लाल कृष्ण अडवानी नई दिल्ली के उपचुनाव को 1991 में सुपर स्टार राजेश खन्ना से हार गए, वह भी महज 1570 वोटों से। 1992 का चुनाव शत्रुघ्न सिन्हा और राजेश खन्ना के मध्य नई दिल्ली में हुआ और राजेश खन्ना जीत गए। 

राजनीति में सिर्फ शत्रुघ्न सिन्हा ही हैं जो आज तक अड़े हुए हैं। राजेश खन्ना की तो दो साल में ही राजनीति खत्म हो गई। राजस्थान के बीकानेर से 2004 में ‘ही मैन’ धर्मेंद्र लोकसभा का चुनाव लड़े। उन्हें वोट मिले 5,17,802 और उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के उम्मीदवार रामेश्वर लाल को वोट मिले 4,60,621, रामेश्वर लाल बेचारे इस हार से उबरे ही नहीं परन्तु धर्मेंद्र के विरुद्ध साल में ही पोस्टर लग गए ‘हमारे उम्मीदवार को ढूंढ कर लाने वाले को एक लाख ईनाम।’ 

आखिर धर्मेंद्र को यह कह कर त्यागपत्र देना पड़ा कि ‘राजनीति मेरे वश का खेल नहीं।’ एक और अभिनेता परेश रावल 2014 का लोकसभा चुनाव गुजरात के अहमदाबाद से लड़े और जीत गए। अगले ही चुनाव में रावल थक कर चूर हो गए। विनोद खन्ना ने पांच बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाली एक बहुत ही शालीन महिला को गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से हराया तथा बेचारी जिंदगी से ही हाथ धो बैठी। एक वक्त था गुरदासपुर में श्रीमती सुखबंस कौर ङ्क्षभडर का ही डंका बजता था। अमृतसर के रघुनंदन लाल भाटिया राजनीति के प्रकाण्ड पंडित और उच्चकोटि के नेता थे। उन्हें क्रिकेट खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू ने ऐसी पटखनी दी कि वह राजनीति से ही बाहर हो गए। 

मुझे अपनी पार्टी के वयोवृद्ध और 6 बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले राम नायक पर तरस आता है। बेचारे फिल्मी एक्टर गोविंदा से मुम्बई नार्थ से हार गए। सुनील दत्त फिल्मी हीरो ने मधुकर सर पोतदार को चुनाव में हरा दिया। मधुकर जी फिर दिखे ही नहीं। जयाप्रदा को देख लें। उन्होंने फिल्मी दुनिया छोड़ राजनीति का सफर तेलुगु देशम से शुरू किया। फिर आई राष्ट्रीय लोकदल में, वहां से पहुंचीं समाजवादी पार्टी में और अब पनाह मिली है भारतीय जनता पार्टी में। 2014 में ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी ने मथुरा में पटखनी दी बेचारे जयन्त चौधरी को और 2019 के  लोकसभा चुनाव में उन्हें स्वयं जीतने के लाले पड़े हुए हैं। 

कहने का तात्पर्य यह है कि ये फिल्मी एक्टर राजनीति में भले ही स्थापित नेताओं को हरा दें परन्तु इनका स्वयं का राजनीति में टिकाव बहुत देर नहीं रहता। लोग ढूंढते रहते हैं और ये दिखाई नहीं देते। राजनीति के यथार्थ धरातल का इन्हें ज्ञान नहीं होता। हां, एक्टर होने का लाभ ये फिल्मी हीरोज एक बार भले ही उठा ले जाते हैं। ये फिल्मी हीरोज तूफान की तरह राजनीति में आते हैं और आंधी की तरह आलोप हो जाते हैं। राजनीति इनके वश की नहीं, ये अल्पकाल के राजनेता हैं। हां, इन्हें राज्यसभा में भेजो। रेखा जी गई हैं न? जया भादुड़ी भी वहीं हैं। नर्गिस, वैजयन्ती माला, पृथ्वीराज कपूर जैसे एक्टर राज्यसभा का शृंगार रहे हैं। फिल्मी हीरोज को राजनीतिक दल राज्यसभा में भेजें।-मा. मोहन लाल पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री, पंजाब

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