लोकसभा चुनाव-2019 ‘लड़ाई शुरू हो गई है’

Tuesday, Feb 12, 2019 - 04:48 AM (IST)

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आने वाले चुनाव प्रचार की एक अपेक्षाकृत शांत झलक दिखाई। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने गठबंधन सरकार के खिलाफ चेतावनी दी। ‘मिलावटी सरकार’ बनाम ‘पूर्ण बहुमत की सरकार’ का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि बहुमत की सरकार राष्ट्रीय हित में काम करती है यानी देशवासियों के लिए समॢपत होती है, जबकि दूसरी नहीं। 

उन्होंने कहा कि ‘महामिलावट’ अथवा महागठबंधन अस्थिरता, भ्रष्टाचार, परिवारवाद की राजनीति से संबंधित है और देश के स्वास्थ्य के लिए खराब है। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने सभी उपलब्धियों का श्रेय गांधियों (नेहरू- गांधी परिवार) को देने के लिए इतिहास को बी.सी. यानी बिफोर कांग्रेस (कांग्रेस से पहले) तथा ए.डी. यानी आफ्टर डायनास्टी (वंश के बाद) में विभाजित कर दिया, जैसे कि उसके सत्ता में आने से पहले कुछ हुआ ही नहीं था। 

55 साल बनाम 55 महीने
हालांकि इसके साथ ही खुद मोदी ने बार-बार पहले तथा बाद के परिदृश्य का जिक्र किया-सत्ता भोग के 55 साल बनाम सेवा भाव के 55 महीने। उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ कांग्रेस की इस आलोचना का डट कर सामना करते हुए कि इसने संस्थाओं के प्रति सम्मान नहीं दिखाया है, पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस वही पार्टी है जिसने आपातकाल लगाया था और धारा 356 का दुरुपयोग किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब कांग्रेस उनकी या भाजपा की आलोचना करती है तो उसमें खुद देश की आलोचना का जोखिम होता है। 

लोकसभा के महत्वपूर्ण चुनावों से पहले काफी आक्रामक संघर्ष की आशा की जाती है। यदि लोकसभा में गत वीरवार को प्रधानमंत्री ने जो कहा और जो उन्होंने नहीं कहा एक संकेत है तो 2019 के लिए चुनाव प्रचार आशा के लिए वायदे की बजाय डर पैदा करने को लेकर अधिक होगा। मूल रूप से यह स्पर्धा 2014 से भिन्न होगी, जब मोदी नीत भाजपा एक लहर पर सवार होकर केन्द्र में सत्ता में आई थी। 5 वर्ष पूर्व चुनाव आक्रामकता के साथ एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए लड़ा गया था लेकिन यह कहा जा सकता है कि गाली-गलौच के बावजूद विजेता सपने की ताकत से जीता न कि गड़े मुर्दे उखाडऩे से। 

सपना एक बदलाव था
वह सपना एक बदलाव था, यथास्थिति से अलग और जिन नेताओं तथा पार्टियों की सोच में वह था, वे उससे जुड़ गईं। इसने एक ‘नए भारत’ यानी देश के बहुसंख्यक आकांक्षावान युवाओं तथा पहली बार वोट डालने वालों को एक नई तरह के राजनीतिक प्रतिनिधि को दिखाते हुए ड्राइविंग सीट पर बैठा दिया। 5 वर्ष पूर्व मोदी की भाजपा ने उस पल को उतना ही ग्रहण कर लिया जितना उसने उसे तैयार किया था। निश्चित तौर पर अगले संसदीय चुनावों या उससे पहले ही ऐसा दिखाई देता है कि भविष्य को लेकर आशाओं का सूखा न केवल सत्ताधारी पार्टी की स्पष्ट रणनीति का प्रतिङ्क्षबब है बल्कि विपक्ष की राजनीति का भी। अभी तक पार्टियों द्वारा उठाया गया सर्वश्रेष्ठ कदम, जिन्होंने मोदी-भाजपा के खिलाफ खुद को इकट्ठा कर लिया है, यह कि वे मोदी-भाजपा विरोधी हैं। लड़ाई तो शुरू हो ही गई है।     

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