क्या होगा कोरोना का हमारी ‘शिक्षा’ पर असर

Thursday, Jun 04, 2020 - 01:34 PM (IST)

कोरोना वायरस का प्रभाव : कोरोना का देश की शिक्षा पर बड़ा असर पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने एक रिपोर्ट जारी की है। जिसके अनुसार कोरोना महामारी से भारत में लगभग 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है जिसमें 15.81 करोड़ लड़कियां और 16.25 करोड़ लड़के शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर  इस महामारी से दुनिया के 193 देशों के 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है, जो विभिन्न स्तरों पर दाखिला लेने वाले छात्रों का 91.3 प्रतिशत है। शिक्षा पर इस बड़े असर की विवेचना से अनेक बदलावों और चुनौतियों के बारे में पता चल रहा है। यह प्रभाव पोस्ट कोरोना वक्त में हमारी शैक्षणिक प्रणाली का अभिन्न अंग बन सकती है इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह कि कोरोना महामारी (Corona Pandemic) और उसके कारण लागू लॉकडाऊन का दौर बीतने के बाद स्कूल और कालेजों को स्थायी तकनीकी अवसंरचना में निवेश करना होगा। इसमें अध्यापकों का प्रशिक्षण डिजीटल वातावरण में काम करने के कौशल पर केंद्रित होगा। उच्च शिक्षण संस्थानों में परीक्षा पारंपरिक तरीकों की बजाय ऑनलाइन माध्यम से कराई जाएगी।

कोरोना का शिक्षा पर प्रभाव : 


कोविड-19 का दौर बीतने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में उभरने वाले आयामों पर किए गए एक अध्ययन में कहा गया  है कि कोविड-19 महामारी के कारण डिजीटल माध्यम से अधिक मात्रा में लोग पढ़ाई कर रहे हैं और कम अवधि वाले पाठ्यक्रम भी लोकप्रिय हो रहे हैं। इन बदलावों से कठिनाई तो हो रही है लेकिन इनसे शिक्षा के क्षेत्र में नए विचारों के उदाहरण भी सामने आ रहे हैं। इससे यह साफ है कि शैक्षणिक जगत में डिजीटल माध्यम का प्रभाव लंबे समय तक रहने वाला है। कोरोना के दबाव के कारण स्कूल और कालेजों में पढ़ाई करने के लिए डिजीटल माध्यम का प्रयोग और अधिक किया जाएगा। शैक्षणिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए व्हाट्सएप, जूम, टीम जैसे एप और ई-मेल का प्रयोग बढ़ेगा। अकादमिक संस्थान ऐसी संरचना का विकास करेंगे जिसमें अध्यापक और छात्र अकादमिक परिसर से बाहर रहते हुए भी पठन-पाठन कर सकेंगे। संस्थान ऐसे स्थायी तकनीकी अवसंरचना में निवेश करेंगे जिसके माध्यम से गुणवत्तापूर्ण ऑनलाइन शिक्षा दी जा सकेगी।  इसमें विदेशी निवेश भी आकर्षित होगा।

विभिन्न देशों में अपनाए जा रहे तरीकों के आधार पर उच्च शिक्षण संस्थान परीक्षा के पारंपरिक तरीकों की बजाय ऑनलाइन माध्यम से छात्रों का मूल्यांकन करेंगे।  देश में ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ी दिक्कतों को दूर करना होगा। इंटरनैट व सूचना तकनीक की पहुंच बेहद संकुचित है। देश में सबके लिए अच्छी स्पीड वाली इंटरनैट उपलब्धता अभी मुश्किल है। नैशनल सैंपल सर्वे के 2017-18 के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 42 फीसदी शहरी और 15 प्रतिशत ग्रामीण घरों में इंटरनैट की सुविधा है। अगर एक महीने में एक बार इंटरनैट का इस्तेमाल करने वालों को इंटरनैट से जुड़ा हुआ माना जाए तो सिर्फ 34 प्रतिशत शहरी और 11 प्रतिशत ग्रामीण लोग ही इंटरनैट का इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन अभी तक हर छात्र के हाथ में नहीं पहुंचा है। कोविड-19 वैश्विक महामारी ने विदेशों में पढऩे की इच्छा रखने वाले 48 प्रतिशत से अधिक भारतीय छात्रों का निर्णय प्रभावित किया है। विश्व भर में उच्च शिक्षा संस्थाओं का विश्लेषण करने में विशेषज्ञता रखने वाली और इन संस्थाओं को रैंकिंग देने वाली एक ब्रितानी कम्पनी की रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेश में महंगी पढ़ाई में निवेश पर मिलने वाला लाभ कम होना और कोविड-19 के बाद रोजगार के अवसर कम हो जाने की वजह से छात्रों की विदेश में पढऩे की योजनाएं प्रभावित हुई हैं। 

आज भारत के विश्वविद्यालयों तक पहुंचने वालों की संख्या काफी कम है। उच्च शिक्षा में ग्रॉस एनरोलमैंट रेशियो 26 प्रतिशत ही है जो ज्यादातर देशों से कम है।  देश के शिक्षा संस्थानों के लिए यह एक बेहतर मौका है हमें अपने यहां अकादमिक गुणवत्ता के स्तर को और सुधारना होगा ताकि देश के छात्रों का विदेशी पढ़ाई से मोह भंग हो। एक फुर्तीले संगठन की तरह, हमारे शिक्षण संस्थानों को पोस्ट कोरोना अवसर पर और आगे बढऩा चाहिए और शिक्षा जगत से जुड़े लोगों को डिजीटल वितरण की कला के सबसे क्रिएटिव   तरीके सीखने चाहिएं, कोरोना  महामारी का एक प्रभाव यह भी है कि उच्च शिक्षा संस्थानों के भविष्य में संचालित होने के तरीकों में एक मौलिक बदलाव होने की उम्मीद है।

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