‘एल.ओ.सी.’ न केवल जमीन बांटती है, बल्कि इंसानी रिश्तों को भी

Monday, Mar 04, 2019 - 04:17 AM (IST)

814 कि.मी. लम्बी एल.ओ.सी. अर्थात नियंत्रण रेखा आखिर है क्या, जो पिछले 72 सालों से खबरों में है। सचमुच यह कोई सीमा है या फिर जमीन पर खींची गई लकीर जो दो देशों को बांटती है। जी नहीं, नदी, नालों, गहरी खाइयों, हिमाच्छादित पहाड़ों और घने जंगलों को जमीन पर खींची गई कोई इंसानी लकीर बांट नहीं सकती। यही कारण है कि पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच चार युद्धों के पारिणाम के रूप में जो सीमा-रेखा सामने आई वह मात्र एक अदृश्य रेखा है जो न सिर्फ जमीन को बांटती है बल्कि इंसानी रिश्तों, इंसान के दिलों को भी बांटने का प्रयास करती है।

जम्मू प्रांत के अखनूर सैक्टर में मनावर तवी के भूरेचक गांव से आरंभ होकर कारगिल में सियाचिन हिमखंड से जा मिलने वाली एल.ओ.सी. अर्थात नियंत्रण रेखा आज विश्व में सबसे अधिक खतरनाक मानी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जिस दिन दोनों पक्षों में गोलाबारी की घटना न होती हो। यही कारण है कि इसे विश्व में जीवित जंग के मैदान के रूप में भी जाना जाता है। रोचक बात यह है कि कहीं भी सीमा का कोई पक्का निशान नहीं है कि जिसे देख कर कोई अंदाजा लगा सके कि आखिर सीमा रेखा है कहां?

अधिकतर लोग समझ नहीं पाते कि भारत-पाक एल.ओ.सी. व भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा में अंतर क्या है? दरअसल भारत-पाक एल.ओ.सी. वह सीमा है जिसे सही मायनों में युद्धविराम रेखा कहा जाना चाहिए। दोनों देशों की सेनाएं इस रेखा पर एक-दूसरे के आमने-सामने हैं और युद्ध की स्थिति हर पल बनी रहती है।

इस अदृश्य रेखा को एल.ओ.सी.
अर्थात लाइन ऑफ कंट्रोल या नियंत्रण रेखा का नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि एक ओर पाकिस्तानी सेना का नियंत्रण है तो दूसरी ओर हिंदुस्तानी सेना का। लेकिन यह सच्चाई है कि उन लोगों पर दोनों ही सेनाओं में से किसी का भी नियंत्रण नहीं है। उनके आधे रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं तो आधे हिंदुस्तान में। यही कारण है कि एल.ओ.सी. के आर-पार आने जाने वालों का जो सिलसिला 1947 के बंटवारे के उपरांत आरंभ हुआ था वह अनवरत रूप से जारी है।

Advertising