पूर्वी-पश्चिमी जर्मनी की तरह भारत-पाक और बंगलादेश भी ‘एक’ हो सकते हैं

Monday, Jan 29, 2018 - 02:56 AM (IST)

जब से अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने पाकिस्तान की तरफ से हाथ खींचा है, तब से पाकिस्तान में हताशा का माहौल है। उधर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि आतंकवाद को संरक्षण देने वाले और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों का हनन करने वाले देश के रूप में बन चुकी है। ऐसे में पाकिस्तान की सरकार और उसका मीडिया तमाम कोशिशें करके अपनी छवि सुधारने में जुटा है। 

पिछले दिनों ‘यू-ट्यूब’ चैनलों पर ऐसी दर्जनों टी.वी. रिपोर्ट्स अपलोड की गई हैं, जिनमें पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं व सिखों के धर्मस्थलों, त्यौहारों और सामान्य जीवन पर प्रकाश डाला जा रहा है। ये बताने की कोशिश की जा रही है कि पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों को किसी किस्म का सौतेला व्यवहार नहीं झेलना पड़ता। उन्हें अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने की पूरी आजादी है और उन पर कोई अत्याचार नहीं होता। यह बात कराची के रहने वाले हिंदुओं और शेष पाकिस्तान में रहने वाले मुठ्ठीभर सम्पन्न हिंदुओं पर तो शायद लागू हो सकती हो, पर शेष पाकिस्तान में हालात ऐसे नहीं हैं जैसा दिखाया जा रहा है। 

एक सीधा-सा प्रश्न है कि आजादी के समय पाकिस्तान की अल्पसंख्यक आबादी कितने फीसदी थी और आज कितने फीसदी है? दूसरी तरफ भारत में अल्पसंख्यकों की आबादी कितने फीसदी थी और आज कितनी है? उत्तर साफ है कि पाकिस्तान में ये आबादी लगभग 90 फीसदी कम हो गई, जबकि भारत में ये लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। आज तक जो भी भारत से पाकिस्तान घूमने गया, उसने आकर वहां की मेहमान नवाजी की तारीफों के पुल बांध दिए। यहां तक कि पाकिस्तान के दुकानदार और होटल वाले, भारतीयों से अक्सर पैसा तक नहीं लेते और बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत करते हैं, जबकि भारत आने पर शायद पाकिस्तानियों को ऐसा स्वागत नहीं मिलता। इससे साफ जाहिर है कि पाकिस्तान का अवाम भावनात्मक रूप से आज भी खुद को आजादी पूर्व भारत का हिस्सा मानता है और उसके दिल में विभाजन की टीस बाकी है। पर ये टीस भी एकतरफा नहीं है। 

पिछले कुछ समय से कुछ उत्साही नौजवानों ने भारत, पाकिस्तान, इंगलैंड व कनाडा आदि देशों में उन बुजुर्गों के टी.वी. इंटरव्यू रिकार्ड कर अपलोड करने शुरू किए, जिन्हें विभाजन के समय मजबूरन अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भारत या पाकिस्तान जाना पड़ा था। इनकी उम्र आज 80 से 95 वर्ष के बीच है, पर इनकी याद्दाश्त कमाल की है। इन्हें अपने घर, गली, मोहल्ले, शहर, स्कूल, बाजार और आस-पड़ोस की हर बात बखूबी याद है। इनमें से कुछ ने तो अपने परिवार की मदद से भारत या पाकिस्तान जाकर उन जगहों को देखा भी है। ‘यू-ट्यूब’ पर इनकी भावनाएं देखकर, पत्थर दिल इंसान की भी आंखें भर आती हैं। इस कदर प्यार और गर्मजोशी से जाकर ये लोग वहां मिलते हैं कि बिना देखे विश्वास नहीं किया जा सकता। यह बात दूसरी है कि इनकी पीढ़ी का शायद ही कोई साथी इन्हें अब अपनी जगह मिल पाता हो, पर घर, दुकान तो वही हैं न। कुछ लोगों को तो अपने घरों में 70 बरस बाद जाकर भी अपनी तिजोरी और फर्नीचर ज्यों का त्यों मिला और उनके जज्बातों का सैलाब टूट पड़ा। 

भला हो इन नौजवानों का जिन्होंने ये कोशिश की। वर्ना इस पीढ़ी के चले जाने के बाद, हमें कौन बताता कि आजादी के पहले आज के ङ्क्षहदुस्तान और पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू, मुसलमान और सिखों के बीच कितना प्रेम व सौहार्द था। किसी तरह का कोई वैमनस्य नहीं था। सब एक-दूसरे के तीज-त्यौहारों में उत्साह से भाग लेते थे और एक-दूसरे की भावनाओं की भी कद्र करते थे। कभी उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त आएगा, जब उन्हें अपनों के बीच पराए होने का एहसास होगा। बहुत से लोगों को तो बंटवारे के दिन तक यह यकीन नहीं हुआ कि अब वे अपने ही देश में बेगाने हो गए हैं और उन्हें परदेस जाना पड़ेगा। 

ये सब बुजुर्ग एक स्वर से कहते हैं कि विभाजन सियासतदानों की महत्वाकांक्षाओं का दुष्परिणाम था और अंग्रेजों की साजिश थी, जिसने भारत के सीने पर तलवार खींचकर खून की नदियां बहा दीं। हम उस पीढ़ी के हैं, जिसने इस त्रासदी को नहीं भोगा। पर जब से हमारा जन्म हुआ है, विभाजन के मारों से इस त्रासदी की दुखभरी दास्तानें सुनते आए हैं। अब जब इन नौजवानों ने इन बुजुर्गों को इनका मादर-ए-वतन दिखाने की जो कोशिश शुरू की है, वह काबिल-ए-तारीफ है। काश ‘यू-ट्यूब’ पहले बना होता और ये कोशिश 50 बरस पहले शुरू की गई होती तो शायद अब तक ङ्क्षहदुस्तान व पाकिस्तान का अवाम फिर से गले मिलने और एक हो जाने को बेचैन हो उठता। नफरत का जो बीज कट्टरपंथियों ने इन दशकों में बोया और नई पीढिय़ों को गुमराह किया, वह शायद कामयाब न होता।

उम्मीद की जानी चाहिए कि पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी की तरह ही एक दिन फिर भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश एक राष्ट्र बनेंगे या कम से कम महासंघ बनेंगे। जहां हमारी ताकत और अरबों रुपए नाहक की जंगों और हथियारों के जखीरे खरीदने में बर्बाद होने की बजाय आम जनता के आर्थिक व सामाजिक विकास पर खर्च होंगे। हम ननकाना साहिब, कटास राज, तक्षशिला, हिंगलाज शक्तिपीठ, शारदा शक्ति पीठ और श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर जैसे तीर्थों में खुलकर जा सकेंगे और वे भी अजमेर शरीफ, निजामुद्दीन, सलीम चिश्ती जैसे अपने तीर्थों पर खुलकर आ सकेंगे। सारा भारतीय उपमहाद्वीप अमन, चैन व तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ेगा और अपनी मेहनत तथा काबिलियत के बल पर भारत फिर से सोने की चिडिय़ा बनेगा।-विनीत नारायण

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