बिना चेहरे वाला एक वैकल्पिक फ्रंट फ्लॉप शो की तरह

Tuesday, Jun 29, 2021 - 02:58 AM (IST)

राकांपा प्रमुख शरद पवार के निवास पर हाल ही में आयोजित बैठक के बाद एक वैकल्पिक फ्रंट का विचार फिर से उभर कर सामने आया है। यह मुद्दा आखिर क्यों उभारा जा रहा है जबकि अगले आम चुनावों में तीन वर्ष से ज्यादा का समय शेष है। कुछ विपक्षी नेता मानते हैं कि गैर भाजपा दलों को कांग्रेस के प्रयास के इंतजार से पहले हाथ से हाथ मिलाना चाहिए। पवार ने कहा था कि कोई भी नया गठबंधन कांग्रेस को शामिल करेगा ताकि भाजपा के साथ लड़ा जाए। उन्होंने आगे कहा था कि ऐसे गठबंधन के पास एक सामूहिक नेतृत्व होना चाहिए। 

कांग्रेस अभी भी अपनी पूर्व की शानो-शौकत में जी रही है। न तो यह विपक्ष को एकजुट करने का नेतृत्व कर रही है और न ही एक समॢथत भूमिका के साथ किसी भी फ्रंट में शामिल होने का सोच रही है मगर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, अकाली दल, तेलंगाना राष्ट्र कांग्रेस समिति तथा बीजू जनता दल जैसे कुछ दल कांग्रेस का विरोध करते हैं। यही कारण है कि पवार ने अब एक सामूहिक नेतृत्व का विचार आगे बढ़ाया है। ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए तो यह विचार उस समय धरातल पर नजर आता है जब राष्ट्रीय पार्टियां कमजोर हो जाती हैं तब क्षेत्रीय पार्टियां एक साथ आकर देश की बागडोर संभालने की इच्छुक दिखाई देती हैं। 

दूसरी बात यह है कि अपने राज्यों में अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के बाद ऐसे क्षेत्रीय दल और ज्यादा महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकताओं तथा नीतियों के बारे में बात करते हैं। तीसरा यह कि उनके अंदर प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा विकसित होती है जैसा कि हम देवेगौड़ा और आई.के. गुजराल के बारे में देख चुके हैं। हालांकि यदि ऐसे फ्रंटों का पिछला रिकार्ड देखा जाए तो यह साबित होता है कि इन्होंने पूर्व में कमजोर प्रधानमंत्री बनाए हैं। चौथा, राष्ट्रीय पार्टियां क्षेत्रीय दलों पर निर्भर रहना शुरू हो चुकी हैं। क्षेत्रीय दलों के बीच अहंकार, महत्वाकांक्षा और आपसी अविश्वास किसी भी फ्रंट के बारे में प्रयास नहीं करता। 

इस कारण पवार महसूस करते हैं कि एक गैर-भाजपा गठबंधन बनाने के लिए कांग्रेस को शामिल होना चाहिए क्या यह संभव है कि सहयोग में एक सामूहिक नेतृत्व की बात हो सकती है जहां पर क्षेत्रीय दल तथा कांग्रेस एक ऐसे गठबंधन का नेतृत्व करने की आशा रखते हों? ऐसे अद्भुत गठबंधनों में एक सहमति वाले नेता को खोजना मुश्किल दिखाई पड़ता है। बिना किसी चेहरे वाला एक वैकल्पिक फ्रंट एक लॉप शो की तरह है। यहां तक कि लोकसभा में भाजपा या कांग्रेस दोनों के बिना 272 सीटों वाले अपेक्षित बहुमत को पाना गैर-व्यावहारिक लगता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने करीब 38 प्रतिशत वोट हासिल किए तथा कांग्रेस ने 20 प्रतिशत। इतिहास यह भी दर्शाता है कि दोनों पाॢटयों के समर्थन के बिना एक तीसरे फ्रंट वाली सरकार का गठन नामुमकिन है। 

1989 में प्रथम तीसरे फ्रंट वाली सरकार का गठन वी.पी. सिंह ने किया था जिसे लैफ्ट और भाजपा का समर्थन प्राप्त था। ऐसा ही एक अन्य फ्रंट 1996 में उभर कर आया जिसे कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था मगर यह 2 साल ही चल सका। श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 24 सहयोगियों के एन.डी.ए. गठबंधन का नेतृत्व किया और उनकी सरकार 13 माह के भीतर गिर गई मगर उन्होंने अपना दूसरा कार्यकाल पूरी अवधि में स पूर्ण किया। डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार ने दो पूरे कार्यकालों को पूरा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए.-2 सरकार वर्तमान में अपने दूसरे कार्यकाल में प्रवेश कर गई। इसलिए भाजपा के खिलाफ एक वैकल्पिक फ्रंट कांग्रेस के समर्थन के बिना संभव नहीं, या तो कांग्रेस इसका समर्थन करे या इसका नेतृत्व। 

दूसरा यह कि हाल ही के विधानसभा चुनावों में अच्छी कारगुजारी के बाद क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा 2024 के आम चुनावों को जीतने की है। 2024 के बारे में किसी भी संभावना की बात करना अभी जल्दबाजी होगी। 3 साल के ल बे समय में भाजपा अपनी बिगड़ी हुई राजनीतिक छवि को अच्छी तरह से सुधार सकती है। सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के पास अपने आप को पुन: स्थापित करने की समर्था है। 

इन सब बातों के साथ कांग्रेस पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में 11 करोड़ मत हासिल किए थे मगर वह इतनी सशक्त नहीं थी कि अपने बलबूते पर भाजपा का मुकाबला कर सके। गैर-भाजपा पार्टियों को एक साथ लाने में शरद पवार की एक अग्रणी भूमिका हो सकती है। नेतृत्व के विवादास्पद सवाल को चुनावों के बाद सुझाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर एक नेतृत्व संकट तथा अपने द्वारा शासित प्रदेशों में अनुशासनहीनता तथा गुटबाजी झेल रही कांग्रेस पार्टी को अभी से अपने आपको तैयार करना होगा। एक बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते इसके पास 2 ही विकल्प हैं कि या तो यह नए मंच में शामिल हो जाए या फिर पवार के प्रयासों से दूरी बनाकर उनकी उ मीदों पर पानी फेर दे।-कल्याणी शंकर

 

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