हुनर की रोशनी : जेलों में आत्मनिर्भर होती महिला कैदियों की नई सुबह

punjabkesari.in Saturday, Apr 19, 2025 - 05:29 AM (IST)

कुछ कहानियां सिर्फ कहानियां नहीं बल्कि बदलाव की एक चिंगारी होती हैं, जो सोच और व्यवस्था दोनों को झकझोर देती हैं। ऐसी ही एक कहानी राजस्थान के भरतपुर जेल की कैदी कमला की है। कम पढ़ी-लिखी कमला को जेल में जब ब्यूटी-वैलनैस की ट्रेनिंग मिली तो न सिर्फ उसने आत्मसम्मान की नई परिभाषा गढ़ी, बल्कि जेल में रहते हुए सौंदर्य सेवाओं में दक्षता भी हासिल की। आज वह न केवल अन्य महिला कैदियों को ट्रेनिंग दे रही है बल्कि जेल में ‘ब्यूटी पार्लर सेवा’ की एक नई पहल की मिसाल भी बनी है।

तमिलनाडु के जेल विभाग के डी.जी.पी. महेश्वर दयाल ने जून, 2024 में चेन्नई की महिला जेल में कबाड़ से भरे एक स्टोर को सुसज्जित ब्यूटीशियन ट्रेनिंग सैंटर व पार्लर में बदलने का निर्णय लिया। कहने को पहले से ही इस स्टोर में एक कंघी, पुराना ट्रिमर और पानी का स्प्रे रखा था लेकिन आज यही स्टोर एक सैलून जैसी तमाम सुविधाओं से सुसज्जित है जहां महिला कैदियों को ये सेवाएं मुफ्त मिलती हैं। दयाल ने इस पहल की शुरूआत उस दिन की जब एक 34 वर्षीय महिला कैदी ने उनसे शिकायत की कि वह अपने बाल रंगवाना चाहती है लेकिन ऐसा न हो पाने की वजह से वह 60 की दिखती है।

पहले जब डी.जी.पी. दयाल जेल का निरीक्षण करते तो महिलाएं अपनी नाराजगी थाली बजाकर जताती थीं। अब वही महिलाएं आत्मविश्वास से भरी व सजी-संवरी नजर आती हैं, मानो ब्यूटी पार्लर से निकलकर आई हों। इस पहल ने उनमें आत्मनिर्भरता का संचार किया। हुनर सीखकर जेल से बाहर निकलने के बाद कई महिला कैदी ब्यूटीशियन का काम करके 5000 से 7000 रुपए महीना तक कमा रही हैं। इस बदलाव ने न केवल उनके आत्मविश्वास को जगाया है बल्कि उनके व्यवहार व मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर डाला है। ये घटनाएं एक ऐसी बड़ी तस्वीर की ओर इशारा करती हैं कि जहां जेल को सजा भर नहीं बल्कि सुधार व सशक्तिकरण का केंद्र बनाया जा सकता है।

भारत की जेलों में लगभग 23,000 से अधिक महिला कैदी हैं। इनमें करीब 70 प्रतिशत विचाराधीन कैदी हैं यानी जिनका अपराध अभी साबित नहीं हुआ है। अधिकतर महिलाएं सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से आती हैं। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एन.सी.आर.बी) के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, महिला कैदियों की संख्या में हर साल वृद्धि हो रही है। इनमें से अधिकांश महिलाएं घरेलू हिंसा, दहेज या आत्मरक्षा की परिस्थितियों में अपराध की दोषी ठहराई जाती हैं। लेकिन जेलों में उनके लिए न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं, न ही पुनर्वास के लिए स्पष्ट नीतियां। शिक्षा का अभाव, परिवार से टूटा संबंध और आॢथक आश्रय न होने के हालात उन्हें जेल से बाहर आने के बाद दोबारा अपराध की ओर धकेल सकते हैं, ऐसे में उन्हें हुनर के जरिए आत्मनिर्भर जीवन जीने का अवसर मिल सकता है। 

जेलों में यदि महिलाओं की रुचियों के अनुसार ब्यूटी-वैलनैस, सिलाई, बुटीक डिजाइनिंग, कुकिंग, पैकेजिंग, बागवानी, साबुन-अगरबत्ती निर्माण जैसे क्षेत्रों में स्किल ट्रेनिंग दी जाए तो वे न केवल आत्मनिर्भर बन सकती हैं बल्कि जेल से बाहर निकलने पर सम्मानपूर्वक जीवन भी जी सकती हैं। स्किल ट्रेनिंग उनका दूसरा जन्म साबित हो सकता है। ट्रेनिंग के साथ यदि जेल प्रशासन उन्हें मार्कीटिंग, एंटरपे्रन्योरशिप और बैंकिंग संबंधी बुनियादी ज्ञान भी दे तो वे अपने हुनर को प्रोफैशन के रूप में ढाल सकती हैं। दिल्ली की तिहाड़ जेल में बेकरी, सिलाई और फैशन डिजाइन की स्किल ट्रेनिंग दी जा रही है। यहां बनी वस्तुएं स्थानीय बाजार में ‘तिहाड़ हाट’ के जरिए बेची जाती हैं। चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल की बैरकों में बंद हुनरमंद महिला कैदी अपने हुनर का लोहा मनवा रही हैं, इनके तैयार फर्नीचर के खरीदारों में कई सरकारी विभागों समेत प्रबुद्ध लोग हैं।

विदेशों की बात करें तो ब्राजील में महिला कैदियों को बाल काटने और नाखून सजाने की ट्रेनिंग देकर जेल के अंदर ही ब्यूटी सैलून शुरू किया गया। इससे कैदियों को न केवल मासिक आमदनी होती है, बल्कि जेल से रिहा होने पर उन्हें सर्र्टीफिकेट भी मिलता है। अमरीका के कैलिफोर्निया में स्थित ‘दॅ लास्ट माइल’ कार्यक्रम के तहत महिला कैदियों को कोडिंग और डिजिटल स्किल्स की ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि वे टैक्नोलॉजी आधारित करियर बना सकें। 

मानना होगा कि जेलों में बंद महिलाएं भी हमारे समाज की ही एक परछाईं हैं। उन्हें सजा से पहले सम्मान, संवेदना और सबसे जरूरी आर्थिक सशक्तिकरण की जरूरत है। हुनर उन्हें यह अवसर देता है कि वे खुद को दोबारा खोज सकें। सरकार, जेल प्रशासन और सामाजिक संगठनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हर जेल एक ऐसा मंच बने, जहां महिला कैदी सिर्फ वक्त ही न कांटें बल्कि अपने भविष्य को संवारने की तैयारी भी करें।(लेखक ओरेन इंटरनैशनल के एम.डी एवं नैशनल स्किल डिवैल्पमैंट कार्पोरेशन (एन.एस.डी.सी) के ट्रेनिंग पार्टनर हैं।)-दिनेश सूद 
 


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