जिंदगी पहले या रोजगार?

punjabkesari.in Sunday, Apr 09, 2017 - 09:32 PM (IST)

निस्संदेह, शराबबंदी के मुद्दे पर देश में गर्मा-गर्म बहस हो रही है, पर यह कोई नई बात नहीं है। देश के कई राज्यों में पहले से शराबबंदी के कानून हैं। गुजरात में 1960 से ही शराब पर पाबंदी है। हालांकि, वहां उस वक्त भी पर्यटन प्रभावित हुआ, पर महात्मा गांधी के प्रदेश ने उनकी भावनाओं और अपेक्षाओं का आदर किया...शराब उद्योग देश के सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। इसमें भरपूर पैसा लगा है। आंकड़ों के मुताबिक देश के 11 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं, जो कि बड़ी संख्या है। औसतन हर 96 मिनट में एक भारतीय की मौत शराब की वजह से होती है। यह हमारी बदकिस्मती है कि देश में जान की कीमत कम है। जीवन से ज्यादा शराबबंदी से आजीविका प्रभावित होने पर बहस चल पड़ी है। शराब की मार से उजडऩे वाले परिवारों के बारे में सोचने की जगह शराबबंदी से पर्यटन, रोजगार के असर से संबंधित आंकड़े गिनाए जा रहे हैं।

जब भी शराब से जुड़ी समस्याओं के समाधान की कोशिश होती है, तो शराब से होने वाली आय के आंकड़े उजागर किए जाने लगते हैं। कुछ हद तक यह सही हो सकता है। दूसरे पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाए और उनके लिए भी निदान तलाशे जाएं। राजमार्गों पर 500 मीटर के दायरे में शराबबंदी के सर्वोच्च अदालत के हाल के आदेश के पहले 2004 में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद ने मोटर वाहन कानून, 1988 की पहल की थी, जिसके अनुसार सभी प्रदेश सरकारों को न केवल राष्ट्रीय राजमार्ग से शराब की दुकानें हटाने के निर्देश दिए, बल्कि लाइसेंस न देने की भी हिदायत दी गई।

यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वहां रहने वाले आम लोगों का जीवन सुरक्षित हो। लेकिन व्यावहारिक रूप में देखें तो कानून होते हुए भी उसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। अब सर्वोच्च अदालत के आदेश के बावजूद कई राज्य सरकारें ये संभावनाएं तलाश रही हैं कि राजमार्गों को डीनोटिफाई कर शराब की दुकानें बंद होने से बचाई जा सकें। निस्संदेह, शराबबंदी के मुद्दे पर देश में गर्मा-गर्म बहस हो रही है, पर यह कोई नई बात नहीं है। देश के कई राज्यों में पहले से शराबबंदी के कानून हैं। गुजरात में 1960 से ही शराब पर पाबंदी है। हालांकि, वहां उस वक्त भी पर्यटन प्रभावित हुआ, पर महात्मा गांधी के प्रदेश ने उनकी भावनाओं और अपेक्षाओं का आदर किया।

1989 में नागालैंड में शराबबंदी का कानून लाया गया। मणिपुर में 2002 से शराब प्रतिबंधित है। लक्ष्यद्वीप और बिहार का उदाहरण भी ले सकते हैं। आंध्र प्रदेश, मिजोरम, हरियाणा, तमिलनाडु ऐसे प्रदेश हैं, जहां शराबबंदी लागू हुई और फिर जनप्रभाव के कारण हटा ली गई। बहरहाल, यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सर्वोच्च अदालत का आदेश पूर्ण शराबबंदी का नहीं है। यह केवल नियमन है, जिससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। यदि कोई कदम किसी की जान बचाने के करीब ले जाए तो हमें उस पर गंभीरता से अमल करना चाहिए। देश में जीवन आजीविका से ज्यादा सस्ता है, हमें इस तथ्य को बदलना होगा। आजीविका में तो बदलाव हो सकता है, पर खोया हुआ जीवन कभी वापस नहीं आ सकता।

(डीन, विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज) 1. देश में कितने लोग पीते हैं शराब? 11 फीसदी लोग देश भर में शराब का सेवन करते हैं, जो कि बड़ी संख्या है 2. क्या कहते हैं शराब से मौत के आंकड़े? 96 मिनट में औसतन एक भारतीय की मौत शराब की वजह से होती है 3. कोर्ट के आदेश पर अमल क्यों है जरूरी? कोई कदम किसी की जान बचाने के करीब ले जाए तो उस पर गंभीरता से अमल होना चाहिए? कैसे आया राजमार्गों पर शराबबंदी का आदेश? 1. 2013 में सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय को पॉलिसी बनाने को कहा, ताकि राजमार्गों से शराब की दुकानें हटवाने के लिए राज्य सरकारों को हिदायत दी जा सके 2. 2015 में सर्वोच्च अदालत ने ये संकेत दे दिए थे कि वह राष्ट्रीय राजमार्गों पर शराब की दुकानों पर पूर्ण पाबंदी चाहती है 3. दिसंबर, 2016 में सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर शराब की खरीद-बिक्री पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी ।

4. इस साल 18 जनवरी को ऑल असम इंडियन मेड फॉरेन लिकर्स रीटेलर्स एसोसिएशन ने अदालत से आदेश में संशोधन की गुहार लगाई। एसोसिएशन का कहना था कि स्थानीय कानून के मुताबिक राज्य राजमार्ग की परिभाषा सभी सड़कों पर लागू होती है, लिहाजा असम की सभी शराब की दुकानें बंद करवा दी गई हैं 5. 23 मार्च को तमिलनाडु ने सर्वोच्च अदालत से 28 नवंबर तक का वक्त मांगा, ताकि राजमार्गों से शराब की दुकानें हटाकर नई जगह आवंटित की जा सके 6. कई याचिकाकर्ताओं ने सर्वोच्च अदालत से आदेश में संशोधन की मांग की, जिनमें कई राज्य सरकारें भी शामिल थी। जिसके बाद अदालत ने 29 मार्च की तारीख सुनवाई के लिए तय की 7. 31 मार्च को सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में कोई भी बदलाव से इनकार कर दिया शराबबंदी से 10 लाख नौकरियों पर खतरा? 1. होटल एंड रेस्टोरेंट्स एसोसिएशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया का कहना है कि राजमार्गों पर शराबबंदी के सर्वोच्च अदालत के आदेश से 10 लाख नौकरियां खतरे में हैं 2. देश की जीडीपी में पर्यटन और परिवहन सेक्टर की हिस्सेदारी 7 फीसदी है, जो 3.74 करोड़ नौकरियां पैदा करता है। राजमार्गों पर शराबबंदी के बाद इनमें करीब 5 फीसदी यानी 10 लाख नौकरियों में कमी का अनुमान है।

3. नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के अध्यक्ष रियाज अमलानी का कहना है कि राजमार्गों पर शराबबंदी से राज्यों को 50,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो सकता है, वहीं रेस्टोरेंट और पब को 10,000-15,000 करोड़ रुपए का झटका लग सकता है 4. नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने ट्वीट किया, 'टूरिज्म से रोजगार के मौके बनते हैं। इसे खत्म क्यों करना? सर्वोच्च अदालत के राजमार्गों पर शराबबंदी के फैसले से 10 लाख लोगों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ सकती है। 5. शराब सेवन के लिए अलग-अलग उम्र तय है। यूपी में 18 साल की उम्र तो दिल्ली में 25 साल से कम उम्र का आदमी शराब नहीं पी सकता। इन सबके बावजूद देश की 30 फीसदी आबादी शराब की लत का शिकार है 6. आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर होने वाले हादसों में से लगभग 4 फीसदी दुर्घटनाएं और मृत्यु शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण होती हैं।

7. बिहार में नीतीश सरकार ने शराबबंदी लागू की है, जिससे हर साल 5000 करोड़ रुपए से ज्यादा के राजस्व के नुकसान का अनुमान है। राज्य में 1977 में भी कर्पूरी ठाकुर की सरकार ने शराबबंदी लागू की थी, पर तस्करी और अवैध शराब की बिक्री के चलते सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा 8. शराबबंदी में पूरी तरह कामयाबी किसी राज्य सरकार को नहीं मिल पाई है। गुजरात में 1960 से शराबबंदी के बाद भी वहां जहरीली शराब से मौतें होती हैं 9. यूपी में भी शराबबंदी लागू हो सकती है। योगी सरकार ने उत्तम प्रदेश बनाने का वादा किया है। उन्होंने इसे मोदी के सपने का प्रदेश बनाने की बात कही है, ऐसे में माना जा रहा है कि वह गुजरात की तरह शराबबंदी लागू कर सकते हैं 10. अगले लोकसभा चुनाव के पहले महिला मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए भी यूपी के सीएम शराबबंदी लागू कर सकते हैं, क्योंकि उन पर पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कायम रखने का दबाव है


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