खराब जीवन शैली के कारण जिंदगी दांव पर
punjabkesari.in Friday, Aug 04, 2023 - 05:26 AM (IST)

विभिन्न बीमारियां समूचे विश्व मेंं चिंता का विषय बनी हुई हैं। विभिन्न स्तरों पर बीमारियों की चुनौतियों से जूझने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन बीमारियों के रूप में नित नए खतरे सामने आ रहे हैं। दुनिया में संक्रामक रोग तो चिंता की वजह बने ही हैं, इसके साथ-साथ अब नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एन.सी.डी.) अर्थात गैर-संचारी रोग भी चुनौती बनते जा रहे हैं। मानव स्वास्थ्य को जितना खतरा जीवन शैली से जुड़े गैर संचारी रोगों से है, उससे ज्यादा खतरा इस बात से है कि समुदाय में गैर संचारी रोगों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, जितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। गैर-संचारी रोगों के कारण आम लोगों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है।
यह स्थिति तब है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) अपनी एक रिपोर्ट में बता चुका है कि दुनिया में कुल होने वाली मौतों में से प्रति वर्ष 75 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं। गैर संचारी रोग जिस तेजी से बढ़ रहे हैं और जितनी बड़ी तादाद मेंं यह मौतों की वजह बन रहे हैं, वह निश्चय ही चिंता का विषय होना चाहिए। इस बारे मेंं आम लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वह इससे बच सकें। डब्ल्यू.एच.ओ. ने चेताया है कि कुल स्वास्थ्य प्रगति के बावजूद गैर संचारी रोगों की वजह से हो रहे भारी नुक्सान के बड़े खतरे हैं। अगर यही चलन जारी रहा तो वर्ष 2050 तक हृदय संबंधी बीमारियों, कैंसर, डायबिटीज और सांस संबंधी बीमारियां हर साल होने वाली लगभग 9 करोड़ मौतों में से 86 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार होंगी।
गैर-संचारी रोगों के मामले में भारत की स्थिति भी चिंताजनक है। यहां लोगों में डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, फेफड़ों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं। डब्ल्यू.एच.ओ. के मुताबिक भारत में 2019 में हुई कुल मौतों में से 66 प्रतिशत मौतों के लिए गैर संचारी रोग ही जिम्मेदार रहे। डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, फेफड़ों से संबंधित ये रोग संक्रामक नहीं हैं, फिर भी बढ़ रहे हैं और मौत का कारण बन रहे हैं। तम्बाकू एवं शराब पीने, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और अच्छे आहार की कमी ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से लोगों का जीवन जोखिम में पड़ रहा है। डॉक्टर देश में फैल रहे गैर-संचारी रोगों की मुख्य वजह खराब जीवन शैली को मानते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों एवं बड़ों में बढ़ते मोटापे के कारण उन बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है, जो जीवन शैली से जुड़ी हुई हैं। लोग पैदल चलना ही छोड़ गए हैं। आरामतलब जीवन उन्हें एक स्थान पर पड़े रहने का आदी बना रहा है। समय-समय पर जांच के अभाव में लोगों को इन बीमारियों की भनक भी नहीं पड़ पाती।
जब तक मालूम पड़ता है, तब तक कई बार स्थिति गंभीर हो चुकी होती है। मोटापे की वजह से न केवल बड़ों बल्कि बच्चों में भी लिवर समस्याएं, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, हाई कोलैस्ट्रोल, पित्ताशय की पत्थरी की दिक्कतें सामने आ रही हैं। गैर संचारी रोगों का खतरा कितना बढ़ रहा है, इसका अंदाजा डब्ल्यू.एच.ओ. की ङ्क्षचताओं से लगाया जा सकता है। डब्ल्यू.एच.ओ. की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि निम्न और निम्नतर से मध्य आय वाले देशों में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति एक डॉलर से भी कम अतिरिक्त निवेश करके, वर्ष 2030 तक लगभग 70 लाख मौतों की रोकथाम की जा सकती है।
डब्ल्यू.एच.ओ. ने गैर-संचारी बीमारियों की रोकथाम व उपचार के नजरिए से तत्काल उपाय किए जाने की वकालत की है क्योंकि विश्व में हर 10 में से सात मौतें गैर संचारी रोगों के कारण होती हैं, जिनमें हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर और श्वसन तंत्र रोगों सहित अन्य बीमारियां शामिल हैं। दुखद पहलू है कि इसके बावजूद, निम्नतर-मध्य और कम आय वाले देशों में इन बीमारियों के असर को कम आंका जाता है। डब्ल्यू.एच.ओ. का मानना है कि बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मिस्र, इंडोनेशिया, बोलिविया, रवांडा, सीरिया, वियतनाम, मोरक्को, मोलदोवा सहित अन्य देशों में ये बीमारियां, स्वास्थ्य और सामाजिक-आॢथक नजरिए से एक बड़ा बोझ हैं। 30 से 69 वर्ष आयु वर्ग में, गैर-संचारी रोगों के कारण असामयिक होने वाली 85 फीसदी मौतें निम्न और मध्य-आय वाले देशों में होती हैं। इसके दृष्टिगत रिपोर्ट में गैर-संचारी बीमारियों की रोकथाम और उनके प्रबंधन में तत्काल निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है।-अमरपाल सिंह वर्मा