आ अब अपनी माटी की ओर लौट चलें

Saturday, Apr 01, 2023 - 05:03 AM (IST)

जड़ों से गहरा जुड़ाव माटी से बांधे रखता है। मातृभूमि के प्रति आत्मीयता का एहसास प्रबल हो तो स्वदेश की मजदूरी भी विदेश की चाकरी से लाख दर्जे बेहतर लगती है। किंतु भावनाओं के स्थान पर भौतिकतावाद एवं व्यावहारिकता को अधिक महत्व देने वाली आधुनिक पीढ़ी की सोच इस संदर्भ में सर्वथा भिन्न प्रतीत होती है। 

कतिपय उदाहरण छोड़ दें तो आज एक बड़ी संख्या उन युवाओं की है, जो होश संभालते ही विदेश जाने का सपना संजोने लगते हैं। इस विषय में पंजाब को अग्रणी प्रांत कहा जाए तो बिल्कुल गलत न होगा। लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्र के प्रत्युत्तर में विदेश राज्यमंत्री ने बताया कि 2016 से फरवरी 2021 के मध्य पंजाब व चंडीगढ़ से 9.84 लाख युवा विदेशों के लिए प्रस्थान कर चुके हैं। इनमें लगभग चार लाख छात्र तथा छह लाख से अधिक श्रमिक शामिल हैं। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, पंजाब से प्रतिवर्ष विदेश जाने वाले 2 लाख  लोगों में औसत एक लाख विद्यार्थी सम्मिलित हैं। इस वर्ष भी पंजाब के 1.5 लाख युवाओं ने स्टडी वीजा के आधार पर विदेश जाने हेतु स्वयं को पंजीकृत करवाया। 

जैसा कि सर्वविदित है, समृद्ध तथा कृषि प्रधान प्रांत के तौर पर पंजाब की एक स्थापित पहचान रही है। शिक्षा ग्रहण करना हो अथवा अच्छी कमाई से भौतिक सुख-सुविधाएं जुटाने की चाह, विदेशों के प्रति पंजाबियों का क्रेज कोई नई बात नहीं। एक समय था, जब अधिकतर सम्पन्न परिवारों के बच्चे ही विदेश जाकर शिक्षा ग्रहण करने का स्वप्न साकार कर पाते थे किंतु  विगत कुछ वर्षों से परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। भले ही ऋण सुविधा के आधार पर, सामान्य परिवारों के बच्चे भी इस दौड़ में सम्मिलित हो चुके हैं।  आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2012-13 में करीब 20366 छात्रों ने विदेश में शिक्षा प्राप्ति हेतु 1180 करोड़ का ऋण लिया, जो प्रतिवर्ष छात्र-संख्या तथा ऋण-राशि सहित बढ़ौतरी बनाता चला गया। वर्ष 2021-2022 के मध्य 69898 छात्रों ने 7576 करोड़ ऋण लिया। 

गौरतलब है, शिक्षा व अन्य खर्चों को मिलाकर एक छात्र पर औसतन 15 से 22 लाख रुपए वार्षिक खर्च आता है अर्थात प्रतिवर्ष पंजाब से अनुमानत: 15 हजार करोड़ की राशि बतौर फीस विदेशों में भेजी जा रही है। आइलैट्स परीक्षा पर प्रतिवर्ष आने वाला अनुमानित खर्च $500 करोड़ रुपए है। प्राथमिकता की बात करें तो अपनी मनभावन नीतियों के चलते कनाडा, आस्ट्रेलिया, यू.के. तथा यू.एस. छात्रों की पहली पसंद हैं। यू.के. न केवल अपनी उच्च गुणवत्ता वाली डिग्रियों के लिए जाना जाता है बल्कि भारतीय छात्रों के लिए कई प्रकार की छात्रवृत्तियां उपलब्ध होना तथा जीवनसाथी को वीजा प्रदान किया जाना भी आकर्षण के प्रमुख ङ्क्षबदू हैं। कनाडा से डिप्लोमा करने के उपरांत तीन साल का वर्क परमिट मिलने के साथ, प्रति सप्ताह 40 घंटे काम करने की अनुमति मिलती है। छात्रों के लिए प्रति सप्ताह निर्धारित अवधि 20 घंटे है। आस्टे्रलिया में भी घंटों के आधार पर अच्छा पारिश्रमिक मिलता है। 

विदेशों की ओर रुझान में एक कारण इसे स्टेट्स सिंबल के तौर पर लिया जाना भी है। वहां बसने वाले लोगों की परीकथाओं के प्रभावाधीन अन्य कई लोग भी वहीं बसने के स्वप्न पालने लगते हैं, हालांकि तस्वीर के अनसुने-अनजाने पहलू से परिचय वहां पहुंचने के पश्चात ही होता है। विदेश गमन का एक बड़ा कारण प्रांत में समुचित रोकागार उपलब्ध न होना भी है। मौजूदा स्थिति पड़ोसी राज्यों से भले ही बेहतर आंकी जाए किंतु प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय औसत की 7.2' दर पर पंजाब में बेरोजगारी दर 8.2' है। 

पंजाब में नशे का फैला मकडज़ाल भी विदेश पलायन का प्रमुख कारण है जो प्रांत के यौवन को अपनी चपेट में ले रहा है। ङ्क्षचतित अभिभावक अपनी संतानों को विदेश भेजना एक बेहतर विकल्प मानते हैं ताकि प्रतिभा के उचित मूल्यांकन, भविष्य में बेहतरीन अवसरों के साथ ही वे प्रांत की जड़ों में गहरी पैठ बना चुके नशों की गिरफ्त से भी बचे रहें। 

पंजाब के ग्रामीण इलाकों में विदेशों के प्रति रुझान कहीं गहरा है। कहीं ऐश्वर्यशाली जीवन जीने की चाह है तो कहीं जीवनयापन की विवशता। कृषि धंधे की कटु वास्तविकता यही है कि आज भी यह कृषक के लिए समुचित मुनाफे का सशक्त  आधार बनना संभव नहीं हो पाया। व्यवस्थात्मक कुप्रबंधन, भंडारण, मंडीकरण आदि अनेक समस्याओं के चलते अधिकतर भावी कृषक पीढिय़ां जमीनें बेचकर अथवा ठेके पर देकर, विदेशों में जाकर मेहनत-मजदूरी करने को अधिमान देने लगी हैं। बिगड़ती कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, सड़क-मार्गों की दयनीय स्थिति, स्वच्छता का अभाव आदि ऐसे अनेक अन्य कारण हैं जो विदेश गमन के आंकड़ों में प्रतिवर्ष वृद्धि कारक बनते हैं। 

बात राष्ट्र की हो अथवा प्रांत की, इसमें कोई दोराय नहीं कि युवा ऊर्जा का वे प्रखर स्रोत हैं जो समाज के विकास सहित इसकी दशा-दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। विदेश गमन का यह सिलसिला यूं ही जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं जब पंजाब की गौरवशाली धरती युवाशक्ति  के एक बड़े अंश से वंचित हो जाएगी। माटी से जुड़ाव नि:संदेह भावना प्रधान

विषय है किंतु इसके पोषण की संभावनाएं कई गुणा बढ़ जाती हैं जब धरती-पुत्रों के परिश्रम का उचित मूल्यांकन हो, युवाओं को यथायोग्य रोजगार के भरपूर अवसर मिल पाएं, अव्यवस्था व अराजकता के  शुद्धिकरण पर विशेष बल दिया जाए।देश का कोई भी कोना हो, प्रतिभाओं के पलायन से बड़ी क्षति कोई नहीं, न राष्ट्रीय स्तर पर, न ही प्रांतीय आधार पर। सुरक्षा, प्रबंधन, शिक्षा गुणवत्ता, रोजगार, पारिश्रमिक के स्तर क्यों न पंजाब को इतना विकसित किया जाए कि विदेशी धरती पर स्थानांतरित होने वाले लोग, भले ही वे विवशता की श्रेणी में आते हों अथवा पाश्चात्य सुख-सुविधाओं के प्रति क्रेजी हों, अपनी माटी की ओर मुडऩे के लिए आतुर हो उठें?-दीपिका अरोड़ा    
 

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