संजलि की हत्या के सबक

Thursday, Dec 27, 2018 - 04:22 AM (IST)

उत्तर प्रदेश के आगरा में संजलि दसवीं में पढ़ती थी। उसके पिता एक जूता फैक्टरी में काम करते हैं और 10 हजार रुपए महीना कमाते हैं।  संजलि पांच भाई-बहनों में दूसरे नम्बर पर थी।  वह साइकिल से घर लौट रही थी कि मोटरसाइकिल सवार कुछ लड़कों ने उसे घेर लिया। हैल्मेट और दस्ताने पहने एक लड़के ने संजलि पर पैट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। यहां तक कि बच्ची की किताबें और बस्ते को भी जला दिया गया। बच्ची बुरी तरह से जल गई। उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में लाया गया, मगर वह बच नहीं सकी। 

बच्ची के प्रति हुए अपराध के बारे में जिसने भी सुना, वह सन्न रह गया। इसलिए और भी कि आए दिन छोटी बच्चियां तरह-तरह के अपराधों की शिकार होती हैं। अब पुलिस ने इस हत्या में शामिल 2 अपराधियों को पकड़ा है। उनसे पूछताछ से पता चला कि संजलि पर पैट्रोल छिड़ककर आग लगाने वाला कोई और नहीं, उसके सगे ताऊ का लड़का योगेश था। वह संजलि से एकतरफा प्यार करता था। लड़की उसका विरोध करती थी। जिस साइकिल से संजलि स्कूल आती-जाती थी, वह भी योगेश ने ही उसे लाकर दी थी। इस घटना के बाद योगेश ने भी जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। 

हालांकि संजलि के घर वालों को इस पर यकीन नहीं आ रहा। उसकी मां का कहना है कि वे दोनों तो भाई-बहन थे। योगेश की मां का भी कहना है कि पुलिस झूठ बोल रही है। योगेश को पुलिस ने मारा-पीटा था। उसने शर्म के कारण आत्महत्या कर ली। पूरे गांव से पूछ लीजिए कि वह कितना शरीफ  लड़का था। 

लड़कियों ने स्कूल जाना छोड़ा
इस घटना का असर गांव की लड़कियों पर यह हुआ है कि उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया है। संजलि पढ़-लिखकर पुलिस में जाना चाहती थी। छोटे शहरों में बहुत-सी लड़कियां पुलिस में जाना चाहती हैं। पिछले दिनों इस लेखिका से बुलंदशहर, आजमगढ़, फरीदाबाद में बहुत-सी लड़कियों ने ऐसा कहा कि वे पुलिस में जाना चाहती हैं। वे पुलिस में ही क्यों जाना चाहती हैं, इसका कारण लड़कियों ने बताया था कि पुलिस में बहुत ताकत होती है। वह चाहे तो सब कुछ कर सकती है। पुलिस की छवि लड़कियों के बीच अच्छी है, पुलिस पर भरोसा है, इस कारण  पुलिस की यह जिम्मेदारी और भी बनती है कि वह लड़कियों को सुरक्षा दे, उन्हें अपराधों से बचाए। 

एक बच्ची की मौत की तरह नहीं देखा गया
इसके अलावा संजलि की मौत को एक बच्ची की मौत न मानकर एक दलित बच्ची के प्रति अपराध की तरह पेश किया गया। संजलि दलित थी लेकिन पहले वह एक लड़की थी। कोई भी लड़की किसी अपराध की शिकार होती है तो इसे उसी रूप में देखा जाना चाहिए। जिस तरह अगर किसी दुर्घटना में कोई मारा जाता है तो वह मनुष्य पहले होता है, दलित, सवर्ण, ओ.बी.सी., अल्पसंख्यक बाद में। संजलि की मौत पर अभियान भी चलाया जा रहा है-जस्टिस फॉर संजलि। आगरा में विरोध-प्रदर्शन भी हुए। यह एक अच्छी बात है। हालांकि इस बच्ची की मौत निर्भया की तरह कोई बड़ी खबर नहीं बन सकी। जब पुलिस ने योगेश द्वारा संजलि को लिखे गए पत्र, व्हाट्सएप मैसेज आदि के आधार पर इस केस को सुलझाने का दावा किया है, तब और भी हैरत होती है कि किसी भी घटना को जातीय या धार्मिक रंग क्यों दे दिया जाता है। 

जातीय रंग देना खतरनाक
इस घटना के बाद बहुत से राजनेता संजलि के घर गए थे। वहां जाकर भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने कहा कि अगर संजलि को जल्दी न्याय नहीं मिला, तो वह पूरे देश में आग लगा देंगे। इस तरह के फतवे किसी भी जांच-पड़ताल से पहले देना खतरनाक भी है। ऐसा क्यों है कि जब किसी के साथ अपराध हो और अगर वह दलित हो तो यह मान लिया जाए कि वह अपराध किसी सवर्ण ने ही किया होगा। इस तरह की सोच पहले से ही जातियों में विभाजित अपने देश में और भी अधिक वैमनस्य पैदा करती है। 

सच तो यह है कि अपराधियों की कोई जाति नहीं होती, न ही धर्म होता है। इसी तरह जो अपराध का शिकार हुआ, उसे भी जाति-धर्म के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। राजनेता तो वोट पॉलिटिक्स के लिए ऐसा करते हैं, मगर मीडिया को तो इस तरह की बातों से बचना ही चाहिए। अखबारों के पाठक या टी.वी. के दर्शक सभी जातियों, वर्गों से आते हैं और सभी न्यायप्रिय लोग चाहते भी हैं कि जिसने अपराध किया, उसे सख्त से सख्त सजा मिले। संजलि के सपने, उसकी इच्छाएं, जीने की उसकी चाहत सब उसके साथ चले गए। मगर अब कोई और लड़की इस तरह की दर्दनाक घटना का शिकार न हो, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।-क्षमा शर्मा

Pardeep

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