सिलक्यारा सुरंग हादसे से सबक
punjabkesari.in Friday, Dec 01, 2023 - 05:21 AM (IST)

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में केंद्र सरकार की अति महत्वाकांक्षी बह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग परियोजना में मलबा गिरने से 17 दिन कैद रहे 41 श्रमिकों के सकुशल जीवित निकल आने से देश और दुनिया भर के करोड़ों लोगों ने राहत की सांस ली है। जिस समर्पण और कुशलता के साथ इस पूरे बचाव अभियान को सफलता तक पहुंचाया गया, वह काबिले तारीफ है। इसके बावजूद इस पूरे प्रकरण ने सबक भी दिया है और बहुत से सवाल भी खड़े किए हैं, जिनके उत्तर भी खोजने ही होंगे। भविष्य में सभी निर्माणाधीन योजनाओं में आने वाली संभावित आपदा की स्थिति में मानव जीवन को खतरे से कैसे सुरक्षित बाहर निकाला जा सके, इसकी योजना बना कर पूरी व्यवस्था बनानी पड़ेगी।
चारधाम मार्ग पर बन रही साढ़े चार किलोमीटर लंबी यह सुरंग आध्यात्मिक और धार्मिक पर्यटन के साथ ही सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। चारधाम यात्रा मार्ग पर निर्माणाधीन यह सुरंग लगभग 900 किलोमीटर लंबी सड़क परियोजना का एक हिस्सा है, जो सभी मौसमों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री के लिए यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी। आपात स्थिति में यह हमारी सेना के लिए भी चीन सीमा तक त्वरित गति से पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करने की सड़क मार्ग खोल देगी। इसकी लागत लगभग 900 करोड़ रुपए है।
यहां सवाल उठता है कि यदि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने टनल के निर्माण के समय अंतरराष्ट्रीय मानकों का कड़ाई से पालन किया होता तो सुरंग में काम करने वाले श्रमिकों और उत्तराखंड राज्य को इतनी बड़ी आपदा में इतने लंबे समय तक नहीं फंसे रहना पड़ता। नियमों के मुताबिक जब भी 3 किलोमीटर से लंबी सुरंग का निर्माण हो तो उसमें ‘एस्केप पैसेज’ बनाना जरूरी होता है। यह हर 375 मीटर पर मुख्य टनल से जुड़ा होना चाहिए, ताकि आपदा की स्थिति में सुरंग में फंसे लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके। टैंडर लेने वाली कंपनी को किसी स्वतंत्र कंपनी से इसका सेफ्टी और वित्तीय ऑडिट कराते रहना चाहिए। बिना ऑडिट रिपोर्ट की क्लीयरैंस के आगे निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। यह जांच का विषय है कि इन मानकों का पालन सिलक्यारा टनल निर्माण करने वाली कंपनी ने किया था या नहीं। फिलहाल टनल में दीपावली की सुबह 12 नवंबर को मलबा गिरने के बाद जब 41 मजदूर अंदर कैद हो गए तो पता चला कि एस्केप पैसेज बनाया ही नहीं गया था। ऐसा क्यों हुआ? मंत्रालय और विभाग से जुड़े लोगों ने इसकी अनदेखी क्यों, किसके इशारे और दबाव में की? इन सब सवालों का उत्तर तो ढूंढना ही पड़ेगा।
जब हादसा हुआ तो मीडिया सहित तमाम लोगों ने पर्वतीय क्षेत्रों में आवागमन के लिए सुरंग निर्माण पर ही सवाल खड़े कर दिए। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स के पूर्व निदेशक पी.सी. नवानी का कहना है कि पहाड़ों में सुरंग सर्वाधिक सुरक्षित विकल्प है। एक बार निर्माण के बाद इसकी उम्र 100 साल तक की होती है। उत्तराखंड में यह कोई पहली टनल दुर्घटना नहीं थी। हाल के वर्षों में 7 फरवरी 2021 को चमोली जिले में रैणी क्षेत्र में ऋषि गंगा में निर्माणाधीन तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना में अचानक आई बाढ़ से उत्पन्न आपदा में 105 लोगों के शव मिले थे। 204 लापता हो गए थे। 2004 में टिहरी बांध परियोजना में भी टी-3 सुरंग धंसने से 29 लोग दफन हो गए थे। इसके पूर्व में भी ऐसी परिस्थितियों से हिमालय का यह पर्वतीय क्षेत्र जूझता रहा है।
सिलक्यारा टनल हादसा इसलिए भी शोध का विषय है क्योंकि यह बचाव अभियान के लिए तकनीक, मानवश्रम और ईश्वरीय आस्था के साथ टीमवर्क का जीवंत उदाहरण है। इस पूरे अभियान में तमाम बचाव एजैंसियों को जोड़ा गया। आधुनिकतम तकनीक, संचार माध्यमों, मशीनों का संचालन कर रहे तकनीशियनों, दिशा-निर्देश दे रहे विशेषज्ञों, उस पर पूरी सतर्कता और समर्पण के साथ बचाव अभियान को अंजाम तक पहुंचाने वाले श्रमिकों की भूमिका भी किसी देवता जैसी रही। सुरंग बनाने के लिए जिस बाबा बौखनाग के मंदिर को हटा दिया गया था, बचाव अभियान में बड़ी बाधा आने के बाद स्थानीय ग्रामीणों की सलाह पर छोटे से मंदिर का निर्माण किया गया। अब यहां बौखनाग के बड़े मंदिर निर्माण की घोषणा भी कर दी गई है।
कुल मिला कर इस घटना से भविष्य में बनने वाली परियोजनाओं के लिए सुधार करने का सबक मिला है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री धामी ने इसका संज्ञान लेते हुए 28 नवंबर, 2023 को ही देहरादून में ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में आयोजित 4 दिन की विश्व आपदा प्रबंधन कांग्रेस का उद्घाटन करते समय ही हिमालय क्षेत्र में जोखिम न्यूनीकरण के लिए राज्य में ही ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान’ स्थापित करने की घोषणा भी कर दी। आने वाले समय में देश और दुनिया के लिए यह बहुत मददगार साबित होगा।-निशीथ जोशी