डा. अर्चना शर्मा की शहादत से सबक

Monday, Apr 04, 2022 - 05:07 AM (IST)

दौसा (राजस्थान) की युवा डाक्टर अर्चना शर्मा की खुदकुशी के लिए कौन जिम्मेदार है? महिला रोग विशेषज्ञ, स्वर्ण पदक विजेता, मेधावी और अपने कार्य में कुशल डा. अर्चना शर्मा इतना क्यों डर गई कि उन्होंने मासूम बच्चों और डाक्टर पति के भविष्य का भी विचार नहीं किया और एक अखबार की खबर पढ़ कर आत्महत्या कर ली। 

पत्रकार होने के नाते डा. शर्मा की इस दुखद मृत्यु के लिए मैं उस संवाददाता को सबसे ज्यादा जिम्मेदार मानता हूं, जिसने पुलिस की एफ.आई.आर. को ही आधार बनाकर अपनी खबर इस तरह छापी कि उसके कुछ घंटों के भीतर ही डा. अर्चना शर्मा फांसी के फंदे पर लटक गई। लगता है कि इस संवाददाता ने खबर लिखने से पहले डा. अर्चना से उनका पक्ष जानने की कोई कोशिश नहीं की। 

आज मीडिया में यह प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है जब संवाददाता एकतरफा खबर छाप कर सनसनी पैदा  करते हैं, किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति की छवि धूमिल करते हैं। प्राय: ऐसा ब्लैकमेङ्क्षलग के इरादे से करते हैं जिससे सामने वाले को डराकर मोटी रकम वसूली जा सके। यह बात दूसरी है कि ऐसी ज्यादातर खबरें जांच पड़ताल के बाद निराधार पाई जाती हैं। पर तब तक उस व्यक्ति की तो जिंदगी बर्बाद हो ही जाती है। यह बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है। 

इस एक सावधानी का फायदा यह होता है कि आपको कभी मानहानि का मुकद्दमा नहीं झेलना पड़ता। प्रैस काऊंसिल ऑफ इंडिया, सर्वोच्च न्यायालय व पत्रकारों के संगठनों को इस विषय में गंभीरता से विचार करके कुछ ठोस कदम उठाने चाहिएं। डा. अर्चना शर्मा की मौत के लिए वे पुलिस अधिकारी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं जिन्होंने एफ.आई.आर. में बिना किसी पड़ताल के डा. शर्मा पर धारा 302 लगा दी, यानी उन्हें साजिशन हत्या करने का दोषी करार दे दिया। 

पूरे देश की पुलिस में यह दुष्प्रवृत्ति फैलती जा रही है, जब पुलिस बिना किसी तहकीकात के केवल शिकायतकत्र्ता के बयान पर एफ.आई.आर. में तमाम बेसिर-पैर की धाराएं लगा देती है, जिन्हें बाद में अदालत में सिद्ध नहीं कर पाती और उसके लिए न्यायाधीशों द्वारा फटकारा जाता है। पुलिस ऐसा तीन परिस्थितियों में करती है। पहला, जब उसे आरोपी को आतंकित करके मोटी रकम वसूलनी होती है। दूसरा, जब उसे राजनीतिक आकाओं के इशारे पर सत्ताधीशों के विरोधियों, पत्रकारों या सामाजिक कार्यकत्र्ताओं का मुंह बंद करने के लिए इन बेगुनाह लोगों को प्रताडि़त करने को कहा जाता है। तीसरा, जब बड़े और शातिर अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस गरीबों, दलितों और आदिवासियों को झूठे मकद्दमे में फंसा कर गुनाहगार सिद्ध कर देती है। 

1977 में जनता सरकार ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया था। तब से आज तक भारत की मौजूदा पुलिस व्यवस्था में सुधार की तमाम सिफारिशें सरकार को दी जा चुकी हैं। पर केंद्र और राज्य की कोई भी सरकार इन सुधारों को लागू नहीं करना चाहती, चाहे वो किसी भी दल की क्यों न हो। 1860 में अंग्रेजों की हुकूमत के बनाए कानूनों  का खामियाजा भारत का आम आदमी हर रोज भुगत रहा है। 

दरअसल आजादी के बाद राजनेताओं ने भी पुलिस को अंग्रेजों की ही तरह आम जनता को डरा कर व धमका कर नियंत्रित करने का शस्त्र बना रखा है। इसलिए वे अपनी इस नकारात्मक सत्ता को छोडऩे को तैयार नहीं होते। जिन दिनों मुझे भारत सरकार के गृह मंत्रालय से प्रदत्त ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी उन दिनों देश भ्रमण के दौरान उन प्रांतों की पुलिस फोर्स भी मेरी सुरक्षा में तैनात होती थी, इसलिए सारे देश की पुलिस व्यवस्था की असलियत को बहुत निकटता से जानने का उन वर्षों में मौका मिला। तब यह विश्वास दृढ़ हो गया कि पुलिस के हालात, बिना किसी अपवाद के सब जगह एक जैसे हैं और उसमें सुधार के बिना आम जनता को न्याय नहीं मिल सकता। 

इस मामले में डा. अर्चना शर्मा की मौत के लिए जिन राजनेताओं का नाम सामने आया है उन्होंने जानबूझ कर इस मामले को अकारण तूल दिया, जिसका उद्देश्य केवल डा. अर्चना शर्मा को ब्लैकमेल करना था। स्वयं को जनसेवक बताने वाले राजनेताओं और उनके कार्यकत्र्ताओं में इस तरह विवादों को अनावश्यक तूल देकर स्थिति को बिगाडऩा और उससे मोटी उगाही करना आम बात हो गई है। कोई भी राजनीतिक दल इसका अपवाद नहीं है। 

मैं यहां यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि डा. अर्चना शर्मा के मामले में प्रथम दृष्टया कोई कोताही या अनैतिक आचरण का प्रमाण सामने नहीं आया। परंतु इसमें भी संदेह नहीं कि मानव सेवा के लिए बना यह सम्मानित व्यवसाय भी आज लालची अस्पताल मालिकों और लालची डाक्टरों की लूट और अनैतिक आचरण के कारण अपनी आदर्श स्थिति से नीचे गिरता जा रहा है, जहां कुछ मामलों में तो इनका व्यवहार बूचडख़ाने के कसाइयों से भी निकृष्ट होता है, जिसमें भी सुधार की बहुत जरूरत है। 

हालांकि डा. अर्चना शर्मा का मामला बिल्कुल अलग है और इसलिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को स्वयं रुचि लेकर उस पत्रकार, पुलिस अधिकारी और उन नेताओं के खिलाफ कानून के अंतर्गत कड़ी से कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।-विनीत नारायण      
 

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