भारत सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का ‘वैध हकदार’

Friday, Oct 02, 2020 - 04:06 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक कूटनीति की पेचीदा कला को आमतौर पर सहजता से लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र  सभा में इस  संगठन की 75वीं वर्षगांठ के ऐतिहासिक अवसर पर उनके भाषण ने वैश्विक मामलों में भारत की प्रमुख भूमिका को उजागर किया। उन्होंने पूछा कि ‘‘भारत को कब तक संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने के ढांचे से बाहर रखा जाएगा?’’संभवत: उनके मन में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट के लिए भारत की चिरलम्बित आकांक्षा थी। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के कर्ज के जाल की कूटनीति पर भी कटाक्ष किया जो राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बैल्ट एंड रोड कदम से सामने आई है, विशेषकर भारत के पड़ोस में। 

चीन तथा भारत के खिलाफ इसकी संदिग्ध भूमिका के बारे में बात करते हुए मुझे 1950 के दशक में नेहरू द्वारा सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के साथ संयुक्त राष्ट्र में पेइचिंग के प्रवेश के लिए चलाए गए अभियान की याद आती है। तब चीन का प्रतिनिधित्व च्यांग काई-शेक करता था न कि माओ। जो भी हो तब नेहरू की चीन समर्थक नीति का श्रेय उनके आदर्शवाद तथा एशियाई देशों की एकजुटता में विश्वास को जाता है। मगर वह एक अलग वैश्विक व्यवस्था थी। कोई हैरानी की बात नहीं कि नेहरू ने इस बात पर जोर दिया कि चीन एक ‘अच्छी तरह से स्थापित तथ्य’ है तथा इसे सुरक्षा परिषद से बाहर रखना एक ‘अवास्तविक मामला’ होगा। संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रवेश हेतु नेहरू के दावे को याद करने के पीछे मेरे एकमात्र उद्देश्य को शांतिपूर्वक देखा जाना चाहिए न कि पक्षपातपूर्ण रवैये के तौर पर। 

इसके साथ ही हमें इतिहास तथा अतीत में की गई गलतियों से सीखने की जरूरत है। भारत को पेइङ्क्षचग स्थित माओ के साम्यवादी शासन पर विश्वास करने की बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी है। मेरा ङ्क्षबदू बहुत साधारण, हमें आवश्यक तौर पर अपने देश के हितों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए  तथा हमें भावनाओं में नहीं बहना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी आज संभवत: कुछ समझदार हैं। मगर 2014 में नई दिल्ली में सत्ता में आने के शीघ्र बाद उन्होंने देश की विदेश नीति का संचालन अपने निजी दृष्टिकोण से किया और इस प्रक्रिया में 1962 के बाद से साम्यवादी चीन के व्यवहार से मिलने वाले कुछ कड़े सबकों को नजरअंदाज कर दिया। यह कहने का अर्थ यह नहीं है कि हमें चीन के साथ दोस्ती करने का प्रयास नहीं करना चाहिए मगर चीन तथा पाकिस्तान के साथ निपटने के दौरान हमें अधिक सतर्क तथा व्यावहारिक होने की जरूरत है। 

भारत की वैश्विक कूटनीति को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते हुए अफसोस होता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए इस देश के वैध दावे को उतना वैश्विक समर्थन नहीं मिला, जितने अधिक का यह पात्र है। निश्चित तौर पर भारत जनवरी से 2 वर्षों के लिए प्रतिष्ठित सुरक्षा परिषद का एक गैर-स्थायी सदस्य बन गया है। यद्यपि विश्व का सबसे बड़ा तथा सर्वाधिक जीवंत लोकतंत्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने के सम्मान का हकदार है। भारत एक अविकसित देश नहीं है। न ही एक ऐसा देश जिसकी कोई वास्तविकता न हो। इस देश की सभ्यता की जड़ें बहुत गहरी तथा समृद्ध हैं। इसने शांति स्थापित करने तथा सर्वांगीण मानव विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 50 के दशक से भारतीय नेताओं ने वैश्विक शांति को प्रोत्साहित करने तथा एक नई तथा न्यायपूर्ण व्यवस्था स्थापित करने के लिए सक्रियतापूर्वक कार्य किया है। इसने संयुक्त राष्ट्र की शांति कार्रवाइयों में हिस्सा लिया है तथा अमरीका के विपरीत भारत ने कभी भी इस वैश्विक संस्था को शुल्कों के भुगतान में देरी नहीं की। 

नेहरू कहा करते थे कि हम बेशक गरीब, कमजोर, अच्छे अथवा बुरे हैं लेकिन ‘भारत मायने रखता है’। हमारा आकार, स्थिति, दर्जा तथा विश्व की परिस्थितियां, जिसमें हम रह रहे हैं, साथ ही हमारे प्रयासों ने इस देश को प्रतिबद्ध राष्ट्रों में एक देश के तौर पर गिने जाने के काबिल बनाया है। संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आम सभा में महामारी के दिनों की कठिन परिस्थितियों में विश्व में एक बड़ी भूमिका निभाने की इच्छा पर जोर दिया। निश्चित तौर पर सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट का प्रश्र बहुत हद तक संयुक्त राष्ट्र के चिरलम्बित  सुधारों से जुड़ा हुआ है। यह आम सभा के एजैंडे में शीर्ष पर है। लेकिन जीवन के अन्य पहलुओं की तरह वैश्विक स्तर पर ताकत की राजनीति इस वैश्विक संस्था के सुधार तथा समय के अनुकूल बदलाव के रास्ते में एक बड़ा अवरोध बन गई है। 

एक समय था कि वाशिंगटन संयुक्त राष्ट्र में सर्वेसर्वा के तौर पर काम करता था। आज परमाणु शक्ति सम्पन्न भारत को लेकर अमरीकी तथा पश्चिमी दृष्टिकोण में काफी बदलाव आ गया है। यद्यपि आज विश्व के बदलते हुए  सत्ता के खेलों में मैं भारत के प्रति चीन के व्यवहार को लेकर सुनिश्चित नहीं हूं।

लद्दाख में भारत-चीन गतिरोध के मद्देनजर पेइचिंग ने इस देश के विरुद्ध शत्रुतापूर्ण होने का आभास दिया है। इसलिए हमें चीन के साथ निपटने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा। आज की पेचीदा वैश्विक व्यवस्था में नई दिल्ली से अपने पत्ते अच्छी तरह से खेलने की आशा की जाती है। निश्चित तौर पर भारतीय कूटनीति परीक्षा की स्थिति में है। मगर साऊथ ब्लॉक को देश के उस स्थान को लेकर क्षमाशील होने की जरूरत नहीं है। आज की वैश्विक व्यवस्था में भारत की एक शक्ति के तौर पर पहचान है। इसकी तुलना पाकिस्तान के साथ नहीं हो सकती। कुछ भी हो भारत को चीन के बराबर देखा जाना चाहिए। यदि चीन सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य हो सकता है तो कोई कारण नहीं कि भारत को वह पद देने से इंकार किया जाए, जिसका वह हकदार है। 

आज नई सख्त दुनिया नई सख्त सोच तथा रणनीतियों का आह्वान करती है। आज के पेचीदा विश्व में जल्दबाजी में बनाई गई कूटनीतियां काम नहीं करेंगी। आज भारत ने बाजार संचालित वैश्विक राजनीति में एक विशेष महत्व हासिल कर लिया है। विश्व भारत की आॢथक क्षमता तथा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए इसकी परमाणु शक्ति को नजरअंदाज नहीं कर सकता। गत 72 वर्षों में इस देश ने लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर खुद को एक शानदार उदाहरण के रूप में स्थापित किया है इसलिए भारत के मामले का उदारतापूर्ण समर्थन करना बड़ी ताकतों तथा 186 से अधिक सदस्य देशों के हित में होगा।-हरि जयसिंह
 

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