मार-काट की राजनीति छोड़ विकास पर हो जोर

punjabkesari.in Monday, Mar 20, 2023 - 06:55 AM (IST)

हरबंस सिंह धालीवाल उर्फ हर्ब धालीवाल पहले पंजाबी सिख थे जो कनाडा सरकार में 1993 में केंद्रीय मंत्री बने थे। उनके साथ मेरे बहुत पुराने दोस्ताना संबंध रहे हैं। मंत्री बनने के उपरांत जब वह पहली बार भारत आए तो अमृतसर में मेरे पास ही ठहरे थे और उन्होंने बहुत सारे भारतीय राजनीतिक नेताओं से मुलाकात भी की। धालीवाल इस बात पर हैरान थे कि भारतीय राजनीतिक नेता अपनी ओर से देश के कानून तोडऩे तथा जेल जाने को एक बहुत बड़ी कामयाबी बताते थे। उस आधार पर वे लोगों को अपनी ओर खींचने का यत्न करते थे। उस समय पंजाब में करीब 8 प्रतिशत वोटों से स. बेअंत सिंह की सरकार बनी थी।

पंजाब में असुरक्षा का माहौल था,  मगर धालीवाल अपने गांव चहेड़ू भी गए तथा लोगों के साथ वहां की समस्याओं के बारे में चर्चा भी की। तीन बार कनाडा के केंद्रीय मंत्री रहने के बाद धालीवाल युवावस्था में ही राजनीति से अलग हो गए। चंडीगढ़ में कनाडा का पासपोर्ट कार्यालय भी उन्होंने बनवा कर दिया और खुद ही उद्घाटन करने के लिए कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जीन क्रेशियन को भी भारत लेकर आए। इसका आवेदन दिल्ली हाई कमीशन में मैंने और मेरे दोस्तों ने किया था।

देश को आजाद हुए 75 वर्ष बीत चुके हैं। भारतीय लोग आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। भारत जी-20 देशों का इस बार अध्यक्ष भी है। भारतीय रुपए को अंतर्राष्ट्रीय करंसी के तौर पर मान्यता मिलने की बात भी चल रही है। पाल ली जो अभी भी कायम है। अपने मुल्क को तरक्की की राह पर ले जाने की बजाय उसकी मंशा कुछ और ही है। आजादी मिलने के बाद पहले चुनावों में पंजाब की 2 प्रमुख प्रार्टियां कांग्रेस तथा शिरोमणि अकाली दल थीं। पैप्सू में स. ज्ञान सिंह राड़ेवाला के नेतृत्व में अकाली सरकार अस्तित्व में आई थी।

आजादी के बाद भाषा के आधार पर राज्य का पुनर्गठन करने का निर्णय किया गया। 1956 में  धर कमिशन ने भाषा के आधार पर राज्य न बनाने की सिफारिश कर पंजाबी सूबे की मांग को ठुकरा दिया। इसके बाद पंजाबी सूबे की मांग शिरोमणि अकाली दल ने आरंभ की जो 10 साल तक चली। पंजाब के पुनर्गठन के बाद 1967 में जस्टिस गुरनाम सिंह के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल तथा अन्य विरोधी पाॢटयों की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार पंजाब में अस्तित्व में आई।

इसके बाद अकाली सरकार स. लक्ष्मण सिंह गिल तथा प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में भी बनी। 1973 में जब पंजाब में ज्ञानी जैल सिंह की सरकार थी तो श्री आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव शिरोमणि अकाली दल की ओर से पास किया गया।1980 में स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल की सरकार समय पूरा होने से पहले ही कांग्रेसी प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की ओर से बर्खास्त कर दी गई।

इंदिरा गांधी की ओर से दरियाई पानी का फैसला तत्कालीन मुख्यमंत्री पंजाब दरबारा सिंह पर दबाव डालकर कर दिया गया, जिस पर सतलुज यमुना ङ्क्षलक नहर बनाने का नींव-पत्थर कपूरी गांव में 8 अप्रैल 1982 में रख दिया गया। इसके विरोध में शिरोमणि अकाली दल तथा अन्य विरोधी पाॢटयों की ओर से  24 अप्रैल 1982 में ‘नहर रोको मोर्चा’ आरंभ कर दिया गया, मगर इसे कोई बड़ा समर्थन न मिला। इस मोर्चे के दौरान ही 4 अगस्त 1982 को अकाली दल ने जरनैल सिंह भिंडरांवाले के साथी अमरीक सिंह तथा ठारा सिंह की रिहाई की मांग को लेकर धर्मयुद्ध मोर्चा आरंभ कर दिया। कई बार केंद्र से बातचीत के बाद भी धर्मयुद्ध मोर्चा बिना किसी प्राप्ति के रहा जिसमें 1.5 लाख सिखों ने गिरफ्तारियां दीं। 

रास्ता रोको, रेल रोको आदि प्रदर्शनों में करीब 190 सिख मारे गए। आप्रेशन ब्लू स्टार तथा अन्य घटनाओं में मरने वालों की एक लम्बी सूची है जिसके बाद 1985 में राजीव-लौंगोवाल समझौते के बाद स. सुरजीत सिंह बरनाला की अकाली सरकार बनी। 1992 में बनी बेअंत सिंह सरकार की नीति से पंजाब में आतंकवाद नियंत्रण में आ गया। मगर इस दौरान हुए पंजाब के कत्लेआम का अगला लाभार्थी प्रकाश सिंह बादल बने जिन्होंने कुल 3 बार पंजाब की सत्ता संभाली। परन्तु उक्त मुद्दे केंद्र सरकार के साथ कभी भी चर्चा में लाए नहीं गए। 

2007 से श्री गुरु ग्रंथ साहिब तथा सिख गुरु साहिबान के खिलाफ बोलने, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के कारण पंजाब अशांत ही रहा। ये मुद्दे आज भी बने हुए हैं। जो पंजाबी भारत छोड़कर विदेशों में बस गए उनमें से कुछ भारत के खिलाफ बोलने तथा यहां पर आतंकवाद बढ़ाने और पंजाब को अशांत करने में लगे रहते हैं। अमरीका में सिखों के खिलाफ नस्ली भेदभाव के 214 केस वर्ष 2021 में दर्ज किए गए परन्तु 1984 के बाद भारत में कभी भी सामूहिक रूप में सिखों के प्रति ङ्क्षहसा नहीं हुई। आज पंजाब को फिर से ङ्क्षहसा की आग में झोंका जा रहा है। पंजाब आज विकास और शांति चाहता है।

पंजाब के युवक बेरोजगारी के कारण विदेशों का रुख कर रहे हैं। मार-काट की राजनीति को छोड़ विकास की राजनीति करने की जरूरत है। पुरानी गलतियों से सबक लेकर पूर्ण विकास तथा अमन-शांति के लिए समस्त पंजाबियों को एकजुट  होना पड़ेगा।  अपराधियों के स्थान पर विकास का मार्ग बताने वाले नेताओं की ओर देखने की जरूरत है, नहीं तो यह सरहदी राज्य हमेशा विदेशी ताकतों के कारण असुरक्षित ही रह जाएगा। -इकबाल सिंह लालपुरा (लेखक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, भारत सरकार के चेयरमैन हैं।)


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