केजरीवाल से सीखें काले धन को ‘सफेद धन’ में बदलना

punjabkesari.in Sunday, May 29, 2016 - 02:52 AM (IST)

(वीरेन्द्र कपूर): राजनीति में भ्रष्टाचार से अलिप्त रहना बहुत मुश्किल है। अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) के अन्य मुंहफट नेताओं के ईमानदारी के दावों के बावजूद सच्चाई यह है कि सत्ता में आने और बने रहने के दोहरे मकसद के लिए आम आदमी पार्टी वह सब कुछ कर रही है, जो अन्य सभी पार्टियां करती हैं। यह किसी भी तरह अन्य पार्टियों से अलग नहीं है। अपेक्षाकृत नई पार्टी होने के कारण इसे ‘संशय का लाभ’ (बैनीफिट ऑफ डाऊट) दिया जाता है, हालांकि यह प्रमाणित करने के लिए साक्ष्य मौजूद हैं कि ‘आप’ वही ओछे हथकंडे प्रयुक्त कर रही है जो सामान्यत: अधिकतर राजनीतिक पाॢटयों द्वारा प्रयुक्त किए जाते हैं। 

 
वास्तव में केजरीवाल मतदाताओं को उल्लू बनाने वाली ‘हाथ की सफाई’ दिखाने के मामले में अधिकतर अन्य राजनीतिज्ञों की तुलना में कहीं अधिक सनकी हैं और वह इस काम के लिए केवल मुफ्त पानी-बिजली पर ही निर्भर नहीं हैं। 
 
प्रमाण के लिए यह स्मरण करें कि किस प्रकार केजरीवाल ने गला फाड़-फाड़ कर प्रचार किया था कि ‘आप’  एक ‘ईमानदार’ पार्टी है। यह भी कहा था कि उनकी पार्टी राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाएगी और काले धन की एक कौड़ी भी स्वीकार नहीं करेगी, इत्यादि। इसने वायदा किया था कि प्रत्येक चंदा देने वाले का नाम, पता और पैन नम्बर अपनी वैबसाइट पर डालेगी ताकि इस पूरी प्रक्रिया में पारदॢशता आए। जैसा कि राजनीति में होता है, यह वायदा भी केवल लोगों को बुद्धू बनाने के लिए था। 
 
केजरीवाल द्वारा बहुत सलीके से चलाए जा रहे एक छोटे-से घोटाले को उन आदर्शवादी युवकों के एक गुट ने नंगा किया, जो अन्ना हजारे आंदोलन के दिनों में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे। अफसोसजनक गतिविधियों को करीब से देखकर इन लोगों का मोह भंग हो गया। उन्होंने ‘आप’ को अलविदा कहने और केजरीवाल के गंदे कामों को नंगा करने का बीड़ा उठाया। इन लोगों ने दावा किया कि ‘आप’ खुलेआम कालेधन में भारी-भरकम चंदे स्वीकार करती है। अपने आरोप को प्रमाणित करने के लिए उन्होंने दिल्ली विधानसभा के चुनाव अभियान दौरान एक संवाददाता सम्मेलन में 50-50 लाख रुपए के 4  बैंक ड्राफ्टों की फोटो प्रतियां लहराईं। इन लोगों ने दावा किया कि यह काला धन था, जिसे केजरीवाल ने बैंक ड्राफ्टों में बदल कर ‘आप’ के बैंक खाते में जमा कराने की व्यवस्था की थी। 
 
राजनीति में कूदने से पूर्व केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा में एक मध्यस्तरीय  अफसर थे। इसलिए वह स्वाभाविक रूप में इस बात से परिचित थे कि काला धन किस प्रकार इकठ्ठा किया जाता है और इसे सफेद धन में कैसे बदला जाता है। वह सफेद धन को काले में बदलने के तरीके भी जानते हैं। इसीलिए कुछ दानकत्र्ताओं से 2 करोड़ रुपए स्वीकार करने के बाद ‘आप’ नेता इस अभियान में जुट गए कि इसे वैध राजनीतिक चंदे का रूप कैसे दिया जाए। इस उद्देश्य हेतु एक हवाला व्यापारी की सेवाएं ली गई थीं। उसे 2 करोड़ नकद दिया गया था और कहा गया था कि इसे वैध बैंक किस्तों का रूप प्रदान करे ताकि इन्हें आम आदमी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते  में जमा करवाया जा सके। 
 
सामान्य तौर पर हवाला व्यापारी जो फीस लेते हैं, अपनी सेवाओं के लिए वह पैसा लेकर उसने ‘आप’  के पक्ष में 50-50 लाख के 4 बैंक ड्राफ्ट बनाए। इस प्रकार काला धन सफेद धन में बदल गया और केजरीवाल यह शेखी बघारने के योग्य हो गए कि ‘हमने नकद चंदे के रूप में एक पाई भी स्वीकार नहीं की है।’ 
 
कितनी हैरानी की बात है कि अन्य पाॢटयां तो बड़े-बड़े कार्पोरेट घरानों से भारी-भरकम राशियां लेती हैं और फिर इनमें हजारों शुभचिन्तकों द्वारा दिए गए छोटे-छोटे चंदे के रूप में प्रचारित करती हैं ताकि दानकत्र्ताओं के बारे में वैधानिक रूप में खुलासा करने से बच सकें। ये पार्टियां हवाला सौदों के माध्यम से इस काले धन को सफेद में बदलने की जहमत नहीं उठातीं। लेकिन आई.आर.एस. अफसर से राजनीतिज्ञ बने केजरीवाल ने बिल्कुल इसके विपरीत किया। उन्हें भी करोड़ों रुपए नकद मिले और अपनी राजनीतिक ईमानदारी सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बदनाम हवाला व्यापारी के माध्यम से इसे रातों-रात जाली कम्पनियों द्वारा दिए गए 50-50 लाख के 4 बैंक ड्राफ्टों का रूप दे दिया। 
 
लेकिन क्या यह कोई हैरान होने की बात है? हमारा विचार है नहीं। केजरीवाल तो सदा से ही नौसरबाजी कर रहे हैं। सरकारी नौकरियों में शामिल होकर उन्होंने एक भी दिन ईमानदारी से काम नहीं किया, बल्कि पूरा वेतन  और भत्ते लेते रहे, जबकि अमरीका के फोर्ड फाऊंडेशन द्वारा वित्त पोषित एक एन.जी.ओ. के लिए ‘सामाजिक कार्य’ करते रहे और इसके एवज में इस संस्था से भारी-भरकम राशि वसूल करते रहे। 
 
‘सोशल वर्कर’ के रूप में वह किसी अन्य की कार प्रयुक्त करते रहे जबकि अपना पैसा बचाकर फ्लैट खरीदने में निवेश करते रहे। जब राजनीतिज्ञ बनने पर उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी तो उन्होंने अपने पर बकाया लगभग 7 लाख रुपए में से एक पाई भी अदा नहीं की। एक बार फिर किसी अन्य ने इस राशि का भुगतान किया था, जबकि यह केजरीवाल का व्यक्तिगत कर्ज था। इस तरह के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। केवल इतना कहना ही काफी होगा कि केजरीवाल ‘दुनिया के तौर-तरीकों’ में किसी से भी कम विशेषज्ञता नहीं रखते। वास्तव में ‘आप’ प्रमुख न तो ईमानदार हैं और न ही लोकतंत्रवादी। वह बहुत महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं। वह सत्ता की खातिर परम्परागत राजनीतिज्ञों से कहीं आगे जाते हुए हर हथकंडा अपना सकते हैं। 
 
इसी बीच गत वर्ष एक कारोबारी समूह के कुछ पत्रकारों को तब इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया, जब यह खुलासा हुआ कि उन्होंने कुछ दिनों तक समूह की कार एवं गैस्ट हाऊस का प्रयोग किया था लेकिन केजरीवाल ठहरे ‘ईमानदार आदमी’। वह कार किसी अन्य की प्रयुक्त करते हैं और अपने निजी ऋण भी अन्य लोगों से अदा करवाते हैं। यह दोगलापन नहीं तो और क्या है?      
 

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