बिना चर्चा के कानून निर्माण संसद का अपमान

punjabkesari.in Wednesday, Aug 18, 2021 - 03:18 AM (IST)

सच्चाई कड़वी होती है। संसद के हाल ही में समाप्त हुए मानसून सत्र में हमारे नेतागणों द्वारा हमारे साथ किए गए क्रूर मजाक का यही सार है। संसद की कार्रवाई न केवल निर्धारित अवधि से 2 दिन पूर्व 11 अगस्त को अनिश्चित काल के लिए स्थगित की गई, अपितु हमारे माननीय सदस्यों ने संसद में शोर-शराबा कर, विधेयक फाड़ कर, महासचिव की टेबल पर खड़ा होकर, एक-दूसरे के साथ हाथापाई कर लोकतंत्र का अपमान भी किया है। 

भाजपा नीत सरकार ने अपने प्रचंड बहुमत के बल पर अनेक कानून इसी शोर-शराबे में पारित करवाए। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में यह सबसे कम और पिछले दो दशकों में यह तीसरा सबसे कम उत्पादक सत्र रहा है, जिसके दौरान 22 विधेयक पारित किए गए और प्रत्येक विधेयक को पारित करने में 10 मिनट से कम समय लिया गया। राज्य सभा में 19 विधेयक पारित किए गए। औसतन प्रतिदिन 1.1 विधेयक पारित किया गया। 

भारत के मुख्य न्यायाधीश रमन्ना ने इस पर खेद व्यक्त करते हुए कहा यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। जिस तरह से हमारी संसद में कार्रवाई चल रही है कानूनों में स्पष्टता नहीं है क्योंकि उन्हें कानून निर्माताआें द्वारा समुचित चर्चा के बिना पारित किया जा रहा है। इसके चलते विधानों में अनेक खामियां और अस्पष्टता बन रही है। एेसे कानूनों का क्या प्रयोजन, जिनके चलते मुकद्दमेबाजी हो रही है। 

इसके दो स्पष्ट उदाहरण हैं। सामान्य बीमा व्यवसाय राष्ट्रीयकरण संशोधन  विधेयक 2021 जिसके माध्यम से सामान्य बीमा कंपनियों का निजीकरण किया जाएगा। इस विधेयक को 8 मिनट की अवधि में पारित किया गया। दूसरा कराधान विधि संशोधन विधेयक 2021 है, जिसे विपक्ष द्वारा यह मांग किए जाने के बावजूद कि इसे प्रवर समिति को सौंपा जाए, पांच मिनट की अवधि में पारित किया गया। इससे भी हैरानी की बात यह है कि महत्वपूर्ण विधेयकों को स्थायी समितियों को सौंपे बिना पारित किया गया है। इन समितियों को संसद का मस्तिष्क माना जाता है, जिनकी मुख्य जिम्मेदारी है कि वे बारीकी से प्रत्येक विधान की समीक्षा करें ताकि एक अच्छा कानून पारित किया जा सके। 

समिति प्रणाली 1993 में शुरू की गई। वर्तमान में 21 स्थायी समितियां हैं। हालांकि समिति की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं किंतु वे बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। उदाहरण के लिए स्वास्थ्य संबंधी स्थायी समिति ने वर्ष 2017 में राष्ट्रीय आयुॢवज्ञान आयोग विधेयक के बारे में अनेक महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं और इनमें से अनेक सिफारिशों को विधेयक में शामिल किया गया, जिनमें आयुष डाक्टरों के लिए ब्रिज कोर्स की अनुमति देने के प्रावधान को समाप्त करना भी शामिल था। इन समितियों में सदस्यों को किसी भी मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखने की अनुमति दी जाती है और वे पार्टी की विचारधारा को मानने या राजनीतिक पक्ष लेने की ङ्क्षचता नहीं करते। फलस्वरूप विधानों के संबंध में गतिरोध को दूर करने के लिए सर्वसम्मति का निर्माण होता है। 

किंतु जब सरकार के पास कानून पारित करने के लिए पर्याप्त बहुमत होता है तो सरकार समिति को बेकार समझती है। कोई भी कारण हो समिति की उपेक्षा करने की प्रथा संसदीय लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है। इस सत्र में पेश किए गए 15 विधेयकों में से कोई भी संसदीय समितियों को नहीं सौंपा गया। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में केवल 11 प्रतिशत विधेयकों की समितियों द्वारा समीक्षा की गई। पिछले दस वर्षों में 47 प्रतिशत विधेयकों को बिना चर्चा के पारित किया गया और 31 प्रतिशत विधेयकों को स्थायी संसदीय समितियों या परामर्शदात्री समितियों द्वारा समीक्षा किए बिना पारित किया गया। 

कानून निर्माण की प्रक्रिया में समितियां महत्वपूर्ण हैं और वे सरकार के लिए बौद्धिक संपदा का कार्य कर सकती हैं। अत: उन्हें अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। समितियों की कार्रवाई सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए। उनका इंटरनैट पर सीधा प्रसारण किया जाना चाहिए। इससे उनके कार्यकरण में जनता की भूमिका बढ़ेगी और साथ ही समितियों की बैठक में सदस्यों की अनुपस्थित रहने की आदत पर भी अंकुश लगेगा। सभी महत्वपूर्ण विधेयकों को समितियों की समीक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए।  समय आ गया है कि हमारे राजनेता अपने महत्व को स्थापित करें और इसका एक उपाय यह है कि सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति का निर्माण हो, जिससे वे संकीर्ण राजनीतिक निष्ठाओं से ऊपर उठें, तर्क सम्मत बातों को महत्व दें और देश की आवश्यकताआें द्वारा निर्देशित हों। किंतु सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीव्र मतभेदों के चलते जो अविश्वास पैदा होता है, उससे संसद का महत्व और कम होगा तथा उसकी छवि को नुक्सान पहुंचेगा। 

कुल मिलाकर संसद हमारे लोकतंत्र की मेहराब है और यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है तथा उसकी भूमिका देश के हितों के संप्रभु संरक्षक की है। यदि वह इन कार्यों को करने में विफल रही तो न जाने भविष्य में क्या होगा। मोदी जी को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह इस जाल में न फंसें। अधिक सत्ता के साथ उसके दुरुपयोग का खतरा बढ़ जाता है।-पूनम आई. कौशिश
 


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