हिमाचल में भूस्खलनों का संबंध बिजली परियोजनाओं से!
punjabkesari.in Tuesday, Oct 05, 2021 - 06:06 AM (IST)

हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति और किन्नौर में हाल ही में आई विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन ने स्थानीय लोगों को बिजली पैदा करने के लिए नदी-घाटियों पर दर्जनों बिजली परियोजनाओं के निर्माण की केंद्र और राज्य सरकारों की मनमानी नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मजबूर कर दिया है। किन्नौर में 1,000 मैगावाट की करचम वांगटू और 300 मैगावाट की बास्पा परियोजना सहित कुछ सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी को बिगाड़ दिया है।
‘किन्नौर बचाओ : नहीं मतलब नहीं’ बैनर लेकर विरोध प्रदर्शन करने वाले ग्रामीणों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे प्रस्तावित 804 मैगावाट की जंगी थोपन जलविद्युत परियोजना के निर्माण की अनुमति नहीं देंगे। सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन, पंचायती राज संस्थान और महिला मंडल पर्यावरण क्षरण का विरोध दर्ज कराने के लिए आगे आए हैं, विशेषकर जल विद्युत उत्पादन के माध्यम से।
विशेषज्ञों के अनुसार कुल वैश्विक मौतों उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भूस्खलन के कारण होने वाली की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में देश में 65 प्रतिशत से अधिक भूस्खलन हुए हैं, इसके बाद उत्तर-पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। परंपरागत रूप से बारिश और भूकंप चट्टानों, मिट्टी और मलबे की बड़ी गतिशीलता का कारण माने जाते हैं लेकिन सड़कों और इमारतों, खनन और जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण अब ढलानों को अस्थिर कर रहा है, जिसने उन्हें फिसलने के लिए अधिक संवेदनशील बना दिया है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि किन्नौर और लाहौल-स्पीति के आदिवासी जिले पर्यावरण के लिहाज से कमजोर हैं और वहां बिजली परियोजनाओं की स्थापना पूरे क्षेत्र के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड ने भी बिजली परियोजनाओं के प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव किया है जहां भूस्खलन और अचानक बाढ़ अब एक सामान्य घटना है। लाहौल-स्पीति में चिनाब और अन्य नदियों के तट पर 16 मैगा और 30 से अधिक सूक्ष्म विद्युत परियोजनाओं का प्रस्ताव किया गया है। इन बिजली परियोजनाओं से ग्लेशियरों के पिघलने की गति भी तेज होगी।
13 जून से अब तक बारिश से संबंधित घटनाओं में मरने वालों की संख्या 381 हो गई है और इस मानसून के मौसम में 39 भूस्खलनों में 55 से अधिक लोगों की जान चली गई है। किन्नौर (38) में सबसे अधिक हताहत हुए, उसके बाद कांगड़ा (10), सोलन (2), शिमला (3) और लाहौल और स्पीति (1-1) में लोग हताहत हुए। राजस्व विभाग के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ द्वारा सांझा किए गए आंकड़ों के अनुसार लाहौल और स्पीति जिले में 16, मंडी और शिमला में 5-5, सोलन, किन्नौर और चंबा में 3-3, जबकि सिरमौर और कांगड़ा जिले में 2 भूस्खलन हुए। प्रमुख स्लाइड्स में 11 अगस्त को किन्नौर जिले के नुगलसारी की एक घटना शामिल थी, जिसमें 28 लोगों की जान चली गई थी जबकि 13 लोग घायल हो गए थे। 25 जुलाई को किन्नौर में सांगला-चितकुल मार्ग पर बटसेरी गांव के पास भूस्खलन के कारण हुए बड़े बोल्डर की चपेट में आने से एक टैंपो-ट्रैवलर में सवार 9 लोगों की मौत हो गई और 3 अन्य घायल हो गए।
पहाडिय़ों में पर्यावरण के क्षरण का एक अन्य कारण सड़कों और राजमार्गों का निर्माण है, विडंबना यह है कि इनकी आवश्यकता है। एमेरिटस, इंटरनैशनल रोड फैडरेशन के अध्यक्ष के.के. कपिला के अनुसार, ‘‘पहाडिय़ों में प्रभावित क्षेत्रों की मुरम्मत की योजना बनाते समय यह याद रखने की आवश्यकता है कि बाहरी और निचले हिमालय में पहाड़ों की परतें कमजोर होती हैं और तलछटी चट्टानें आपस में बहुत कमजोर जुड़ी होती हैं, जिससे उनमें अंतॢनहित ताकत का अभाव होता है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसी श्रेणियों और परतों में अत्यधिक सावधानियों और पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों की परवाह किए बिना सड़कों, बांधों और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण नींव या ढलानों को पर्याप्त सुरक्षा की गारंटी नहीं देता; ब्लास्टिंग, जिसका उपयोग बुनियादी ढांचे के निर्माण की तेज और किफायती विधि के रूप में किया जाता है, से बचा जाना चाहिए।
दुर्भाग्य से, भारत में अभी भी भूस्खलन और अचानक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए एक मजबूत तंत्र की कमी है। यह इन आपदाओं के कारण होने वाली कई मौतों की व्याख्या करता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आई.एम.डी.) के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्र कहते हैं, ‘‘पिछले साल से फ्लैश फ्लड डाटा उपलब्ध कराने में कुछ प्रगति हुई है, जब विभाग ने अमरीका स्थित हाइड्रोलॉजिकल रिसर्च सैंटर और विश्व मौसम विज्ञान संगठन के साथ सहयोग किया था।’’ भूस्खलन की भविष्यवाणी पर कुछ छोटे कदम भी उठाए गए हैं। सरकार को विश्वविद्यालयों में अनुसंधान परियोजनाओं पर और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की भविष्यवाणी संभव हो सके और जीवन और संपत्ति के नुक्सान को रोका जा सके।-बी.एस. पंवार