राजनीतिक तौर पर अभी भी प्रासंगिक हैं लालू

punjabkesari.in Wednesday, Jul 26, 2017 - 12:26 AM (IST)

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव चारों तरफ से घिर चुके हैं मगर इसका अर्थ यह नहीं कि वह राजनीतिक तौर पर समाप्त हो गए हैं।

वह अपने अस्तित्व को बचाए रखने की प्रवृत्ति के लिए जाने जाते हैं क्योंकि कई अदालती मामलों तथा सजाओं के बावजूद उन्होंने हैरानीजनक रूप से राज्य के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में वापसी की और न केवल एक बार बल्कि कई बार। एक ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसने रेल मंत्री तथा बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर काम किया है, अगले कुछ महीने अस्तित्व बचाए रखने की उनकी ताकत का परीक्षण हो सकते हैं क्योंकि उनके विरोधियों का कहना है कि इसमें बदलाव की सम्भावना है क्योंकि इस बार न केवल राजद सुप्रीमो बल्कि उनका पूरा परिवार भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहा है। 

लालू कैसे अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं? उन पर बिल्ली को 9 जीवन मिलने की कहावत लागू होती है। 1994 में नीतीश कुमार तथा जॉर्ज फर्नांडीज ने भाजपा के साथ गठबंधन बनाया। मगर 1995 में लालू ने बिहार में शानदार वापसी की। अक्तूबर 2013 में चारा घोटाले में सजा होने तथा 5 वर्षों के लिए जेल होने के बाद वह 2015 में वापसी करने में सफल रहे जब उनकी पार्टी ने जबरदस्त वापसी की (बिहार में सबसे अधिक संख्या में विधायक)। जैसी आशा थी लालू ने इस सारे मामले को अपने तथा अपने परिवार के खिलाफ भाजपा की बदले की राजनीति करार दिया है। पटना में पार्टी के 21वें स्थापना दिवस पर कार्यकत्र्ताओं को सम्बोधित करते हुए गत माह लालू ने कहा था कि भाजपा लालू को खत्म करना चाहती है क्योंकि मैं भाजपा को खत्म करना चाहता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा विपक्ष में दरार डालना चाहती है क्योंकि वे जानते हैं कि हमारी संयुक्त ताकत उनके 2019 के अभियान को विफल बना सकती है। 

लालू 1990 में रोशनी में आए थे जब उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री के नाते लाल कृष्ण अडवानी की ‘रथयात्रा’ को रोक दिया था। हालांकि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में1990 के दशक में अधिकतर समय शासन किया, लालू ने 2005 तक उसे पड़ोसी बिहार में घुसने नहीं दिया। उन्होंने 1997 में अपने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया जब आई.के. गुजराल सरकार ने चारा घोटाले में उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया। जब एक अदालत ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिए तो लालू ने त्याग पत्र दे दिया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर पृष्ठभूमि से बिहार का शासन चलाने लगे। लालू की मुख्यमंत्री के तौर पर कभी वापसी नहीं हुई यद्यपि वह 2004 में यू.पी.ए. के सांझीदार बने और रेल मंत्री बनाए गए। 

इसी कार्यकाल के दौरान रेलवे के दो होटलों से संबंधित सौदों के लिए अब वह सी.बी.आई. के स्कैनर के नीचे हैं। राजद सुप्रीमो ने छपरा में एक रैली में कहा था कि उन्हें जेल होने के बाद उन्होंने (विरोधी) कहा था कि लालू समाप्त हो गया मगर मैं समाप्त नहीं हुआ। मैं सभी साम्प्रदायिक तथा विघटनकारी ताकतों को खत्म करने के बाद ही समाप्त होऊंगा। दूसरे, 2013 में 5 वर्ष की जेल होने के बाद भी लालू का राजनीतिक करियर समाप्त नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी। लालू तथा नीतीश कुमार के बीच संबंध उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। लालू से अलग होने के बाद नीतीश की राजनीति मुख्यत: गैर-यादव पिछड़ी जातियों के वोटों को लालू प्रसाद के मुस्लिम-यादव के खिलाफ एकजुट करने पर केन्द्रित रही। 

नीतीश ने 2005 में भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव जीता और फिर 2010 में भी मगर भाजपा को 2015 में सत्ता से बाहर रखने के लिए राजनीतिक बाध्यताओं के चलते  दोनों फिर साथ हो गए। जद (यू)-राजद-कांग्रेस गठबंधन को सफलता मिली जिसमें राजद को 80, जबकि जद (यू) को 71, कांग्रेस को 27 तथा भाजपा को 53 सीटें प्राप्त हुईं। तीसरे, लालू अब तक राजनीतिक रूप से प्रासंगिक रहे हैं। गत 4 चुनावों से राजद की मत हिस्सेदारी 18-20 प्रतिशत रही है। यहां तक कि 2005 में बिहार के चुनाव हारने के बाद भी। जद (यू), राजद तथा भाजपा जैसी तीन प्रमुख पाॢटयों वाले राज्य में 20 प्रतिशत मत हिस्सेदारी हासिल करना कोई कम उपलब्धि नहीं है। मुसलमान- यादव, जो बिहार की जनसंख्या का 30 प्रतिशत हिस्सा हैं, लालू को अपना मसीहा मानते हैं। 

चौथे, लालू एक योद्धा तथा धमकाने वाले व्यक्ति हैं। इसीलिए सी.बी.आई. द्वारा उनके परिवार पर छापे मारने के 12 घंटों के भीतर ही उन्होंने रांची से गर्जना की थी, ‘‘सुनो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, मैं अपने तथा अपने पारिवारिक सदस्यों को निशाना बनाने के तुम्हारे प्रयासों से लड़ूंगा। और चाहे जो भी हो, मैं तुम्हें बिहार में महागठबंधन के परीक्षण को नष्ट नहीं करने दूंगा।’’ लालू अगस्त में एक महारैली के लिए तैयारियों में व्यस्त हैं, जिसका मकसद शानदार तरीके से सफल महागठबंधनकोबिहार से आगे ले जाते हुए राष्ट्रीय स्तर पर लांच करना है। 

यद्यपि लालू तथा नीतीश के बीच अब अविश्वास पैदा हो गया है और नीतीश एक बार फिर भाजपा की ओर बढ़ रहे हैं। राज्य के साथ-साथ केन्द्र में भी सत्ता से बाहर रहने से लालू के लिए जोखिम बढ़ गया है क्योंकि भाजपा के समर्थन से नीतीश मुख्यमंत्री बने रहेंगे। सबसे खराब स्थिति में वह एक बार फिर 4 मामलों में दोषी करार दिए जा सकते हैं। इससे चुनावी राजनीति से उनका निष्कासन और लम्बा होकर 2024 से भी अधिक आगे जा सकता है। अपना साम्राज्य स्थापित करने की उनकी योजना भी खतरे में है। इसलिए लालू अब अपनी सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं।  


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